स्वच्छता के लिए आंकड़ों का मकड़जाल

राकेश अचल

केन्द्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा आयोजित ‘स्वच्छ महोत्सव’ में कुल 129 शहरों में प्रथम स्थान पर मध्‍यप्रदेश के इंदौर शहर के लगातार चौथी बार अव्वल आने पर बधाई तो बनती है, क्योंकि राजनीतिक रूप से प्रदेश का ये सबसे गंदा शहर है। राजनीतिक रूप से दस नंबरी ग्वालियर शहर को इस प्रतिस्‍पर्धा में 13 वां स्थान मिला है। स्‍वच्छता  को लेकर देश में होने वाली इस स्पर्धा से शहरों में साफ़-सफाई का स्तर क्या सचमुच सुधरा है, ये बहस का विषय हो सकता है, किन्तु जो आंकड़े कहते हैं उन्हें भी मान्यता देते हुए मानना पड़ेगा कि इंदौर ने मेहनत की।

देश में स्वच्छता की स्थिति बेहद दयनीय है लेकिन इस विषम स्थिति में यदि कुछ कोशिशें इसी स्पर्धा के माध्यम से होती हैं तो उन्हें सराहा जाना चाहिए। स्वच्छता का सीधा सम्बन्ध नागरिकों के आचरण और स्थानीय निकायों की व्यवस्थाओं से जुड़ा है। दोनों में यदि तालमेल है तो स्थितियों को बदला जा सकता है, जैसा कि इंदौर में हुआ, लेकिन बाक़ी के शहरों में आंकड़े कुछ और कहते हैं और हकीकत कुछ और होती है।

आंकड़ों के बल पर पोजीशन पाना एक अलग बात है लेकिन वास्तव में स्थितियां बदलना दूसरी बात। देश के जो प्रथम 10  शहर स्वच्छता सूची में शामिल हैं वहां के नागरिकों और स्थानीय निकायों से दूसरे शहरों को सीख लेना चाहिए। क्या वजह है कि सूरत, नवी मुम्बई, विजयवाड़ा,  अहमदाबाद, राजकोट, भोपाल, चंडीगढ़, विशाखापत्तनम और बड़ोदरा अपने आपको दूसरे शहरों के मुकाबले ज्यादा साफ़-सुथरा रख पाए।

इस प्रतिस्पर्धा में 13वें स्थान पर आये ग्वालियर की बात करूँ तो मुझे हैरानी होती है कि ये चमत्कार कैसे हो गया? ग्वालियर नगर निगम के पास न तो कचरा संग्रहण की पर्याप्त व्यवस्था है और न ही कचरा निष्पादन का कोई संयंत्र फिर भी यहां साफ़-सफाई की स्थिति पहले के मुकाबले सुधरी है तो निश्चित ही कोई न कोई जादू जरूर हुआ होगा। मैं अपने शहर के नागरिकों और स्थानीय निकाय की निंदा कर उनसे दुश्मनी मोल नहीं ले सकता किन्तु अपनी हैरानी अवश्य प्रकट कर सकता हूँ, क्योंकि ग्वालियर ने पहले के मुकाबले अपनी स्थति को काफी कुछ सुधारा है।

जन-जीवन में सफाई के साथ ही राजनीति में भी साफ़-सफाई की जरूरत है, लेकिन इसे कोई प्राथमिकता नहीं देना चाहता। कोरोनाकाल में भी राजनीति अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही। एक तरफ प्रशासन ने स्कूल-कॉलेज, सिनेमाघर, पूजा-पंडाल सब बंद कर रखे हैं, दूसरी तरफ राजनीतिक दलों को सारे कार्यक्रम करने की इजाजत किस प्रावधान के तहत दी जा रही है। लोग गणपति पंडाल नहीं लगा सकते लेकिन सदस्यता अभियान के लिए जगह-जगह समारोह कर सकते हैं। राजनीतिक कार्यक्रमों से कोरोना नहीं फैलता, कोरोना केवल जमातों से फैलता है।

आप सोच रहे होंगे कि विषयांतर हो रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है। मामला सफाई का है और सफाई जीवन के हर क्षेत्र में होना चाहिए। आप गंदी राजनीति और पंगु प्रशासन के चलते समाज में सफाई की कल्पना कैसे कर सकते हैं? कोरोना प्रोटोकॉल में पक्षपात और एक तरफा स्वतंत्रता कैसे दी जा सकती है? इसका जवाब न प्रशासन के पास है और न शासन के पास। गैरजिम्मेदार जब सरकार ही हो तो प्रशासन क्या कर सकता है?

सरकार ने प्रदेश में सार्वजनिक परिवहन की इजाजत दी है,  ये अच्छा काम किया है, क्योंकि बिना सार्वजनिक परिवहन के प्रदेश को लकवा सा मार गया था। लेकिन सरकार को राजनीतिक गतिविधियों के जरिये कोरोना फैलाने का समाजिक अपराध नहीं करना चाहिए। दुर्भाग्य तो ये है कि कोई सजग संस्था या नागरिक इस मुद्दे को लेकर अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाता।

क्या आप अपनी सरकार से सवाल नहीं कर सकते कि जिस कोरोना का आतंक बताकर आप विधानसभा का मानसून सत्र स्थगित कर सकते हैं, तो उसी के चलते दीगर राजनीतिक गतिविधियों को विराम क्यों नहीं दे सकते? क्या लोकजीवन की सुरक्षा से महत्वपूर्ण राजनीति ही है। कोरोना की जांच में मध्यप्रदेश पहले से दूसरे राज्यों के मुकाबले बहुत पीछे है ऊपर से यहां राजनीतिक गतिविधियों के लिए खुली छूट दी जा रही है, ये विसंगतिपूर्ण और अविवेकपूर्ण नहीं है? किसी में साहस नहीं जो इस गंदगी के खिलाफ अपना मुंह खोल सके।

मुझे हैरानी होती है कि कोरोना से पीड़ित रह चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राज्य सभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद इस कोरोना प्रसार अभियान में शामिल हैं। राजनीतिक कार्यक्रमों में सोशल डिस्टेंसिंग का खुला उल्लंघन होता है,  कोई मास्क नहीं लगाता। कोई तापमान की जांच नहीं करता, किसी को पता नहीं चलता कि कौन कोरोना वाहक है और कौन नहीं? नेताओं को उप चुनाव जीतने की पड़ी है।

शहरों की सफाई और राजनीतिक गंदगी दोनों ही लोकजीवन से जुड़े हैं, इसलिए सबको मिलकार इस मामले में सजगता दिखाना चाहिए। विरोध करना चाहिए। अदालतों की शरण लेना चाहिए। प्रशासन से तो ये उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि प्रशासन में अब जिम्मेदार पदों पर रीढ़ वाले अधिकारी हैं ही नहीं, सबके सब कठपुतलियां है। सबको अपनी कलेक्ट्री और कप्तानी प्यारी है। मुश्किल ये है कि गृहमंत्री जब खुद राजनीतिक गतिविधियों का हिस्सा हैं तो कोई दूसरा क्या कर सकता है, सिवाय प्रार्थना के। तो आइये आप भी प्रार्थना कीजिये कि आपका शहर और आपके शहर की राजनीति स्वच्छ बनी रहे, ताकि कोरोना का प्रसार न हो और लोग अकाल मौत न मरें।

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