मुंबई/नागपुर- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा है कि आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सबसे पहले आत्मविश्वास होना जरूरी है। आत्मनिर्भर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ‘आत्म’ और ‘निर्भर’ इसमें सबसे पहले हमें ‘आत्म’ शब्द यानी स्वयं को ही समझना होगा। हमारी परंपराएं और विरासत दुनिया में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध रही हैं। हमें उन्हें पहचानना होगा। उसके आधार पर ही हम आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
‘आत्मनिर्भर भारत’ पर केंद्रित एक फेसबुक लाइव कार्यक्रम में श्री वैद्य ने कहा कि सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के समय तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्रप्रसाद ने कहा था कि मंदिर की तो प्राणप्रतिष्ठा हो गई लेकिन मैं मंदिर का निर्माण पूरा तभी मानूंगा जब हम अपने सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों की भी प्राण प्रतिष्ठा करेंगे।
आज भारत के लिए जरूरी है कि वह ‘आत्म’ को पहचान कर योजनाएं बनाए। हमारी बहुत समृद्ध विरासत रही है। पश्चिम के ग्लोबलाइजेशन के चक्कर में हम अपनी परपंराओं को भूल गए, आत्म शक्ति को भूल गए। ग्लोबलाइजेशन का विचार मूलत: विकसित देशों के शोषण पर आधारित है। हम तो मानते हैं कि हरेक देश को आत्मनिर्भर होना चाहिए। हर देश अपनी क्षमता के अनुसार अपने को खड़ा करे और जहां उसे जरूरत हो परस्पर अवलंबन के आधार पर विश्व व्यापार की गतिविधियां हों। आत्मनिर्भर होने का अर्थ क्वारेंटाइन हो जाना नहीं है, हम अपनी जरूरत की चीजें अपने सामर्थ्य और अपनी मेधा एवं मेहनत के बल पर तैयार करें और जिसे नहीं कर सकते उसे ही बाहर से लाएं।
उन्होंने कहा कि आज भारतीय समाज और राजनीति की निर्णय शक्ति सही दिशा में जा रही है। देश में जो राजनीतिक परिवर्तन हुआ है, वह उससे पहले हुए सामाजिक परिवर्तन का ही परिणाम है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहेब देवरस से एक बार किसी ने पूछा था कि हमने गोहत्या का मामला उठाया उसे छोड़ दिया, 370 का मामला उठाया उसे भी छोड़ दिया, क्या राम मंदिर मामले का हश्र भी ऐसा ही होगा, तो देवरस जी ने जवाब दिया था कि वास्तव में ऐसे आंदोलनों से राष्ट्रीय चेतना जाग्रत होती है। जैसे जैसे राष्ट्रीय चेतना का स्तर बढ़ेगा, उन्नत होगा तो हो सकता है सारे प्रश्नों का सामाधान एकसाथ ही हो जाए। आज हम देवरस जी के कथन को सत्य होता हुआ देख रहे हैं। वास्तव में किसी भी राष्ट्र के विकास में अनेक छोटी छोटी प्रक्रियाएं समानांतर रूप से चलती रहती हैं और अचानक एक दिन वे सब मिलकर एक बहुत बड़े फलित के रूप में हमारे सामने आती हैं।
5 अगस्त को हुए राम मंदिर के भूमिपूजन का जिक्र करते हुए श्री वैद्य ने कहा कि राम मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं है वह भारतीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। अतीत में उस स्थल को जबरदस्ती विवाद का विषय बनाया गया जो कि इस्लामिक मान्यताओं के अनुरूप भी ठीक नहीं था। मंदिर का भूमिपूजन अतीत के गौरव की पुनर्स्थापना है। वह भगवान राम के जीवन चरित को आदर्श के रूप में अपनाने का प्रतीक है। राम सर्वसमावेशी हैं और हमारा समाज भी वैसा ही होना चाहिए। इस मंदिर से भारतीय मानस में आत्मगौरव का भाव जाग्रत होगा।
नई शिक्षा नीति पर अपने विचार रखते हुए श्री वैद्य ने कहा कि इसकी बहुत लंबे समय से प्रतीक्षा थी। मातृभाषा में आरंभिक शिक्षा समाज को जोड़ने और सर्वसमावेशी बनाने में सहायक होगी। यह भावी पीढ़ी को देश की समृद्ध विरासत से एकात्म करेगी। किसी भी वृक्ष की ऊंचाई और उसका फलना फूलना इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी जड़ें कितनी गहरी हैं। हमें अपनी जड़ों की ओर ध्यान देना होगा। अभी केवल नीति आई है, शिक्षा को संचालित करने वाला तंत्र वही है। हमें उस तंत्र और उसके मानस को भी बदलना होगा। हमें लगता है कि यह नीति नए भारत के निर्माण में सहायक होगी। भारत इस नीति के माध्यम से व्यक्ति और पर्यावरण को साथ लेकर समाज के समन्वित विकास की दिशा में अग्रसर हो सकेगा।
युवाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि युवा वही है जो चुनौतियों को स्वीकार करे। हमें अब नए प्रयोग और अनुसंधान करने की क्षमता विकसित करने पर ध्यान देना होगा। अब तक एक ढर्रे में चीजें चल रही थीं, उन्हें बदलकर नए प्रयोग और नई चुनौतियों को खोजना होगा, उन्हीं में से अवसर भी पैदा होंगे और हमारे पुरुषार्थ से भारत का भविष्य तय होगा।
ग्रामीण भारत, खासतौर से कृषि क्षेत्र की तरफ खास ध्यान देने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि तकनीक के जरिये किसानों की मदद करने के प्रयास अधिक से अधिक होने चाहिए। जो लोग तकनीक जानते हैं वे किसानों और ग्रामीण जनजीवन की मदद के लिए आगे आएं। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने से लेकर खेती के उन्नत तरीके खोजने और उनकी उपज को संरक्षित रखने की दिशा में तकनीक बहुत मदद कर सकती है। इससे गांव के लोगों को गांव में ही रोजगार मिलेगा। भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है। हम जब अमेरिका द्वारा तकनीक देने से इनकार करने पर परम जैसा सुपर कंप्यूटर बना सकते हैं तो हमारी प्रतिभा और मेधा में क्या कमी होगी?
कोरोना संकट की चर्चा करते हुए श्री वैद्य ने कहा कि स्वस्थ समाज, व्यक्ति और राष्ट्र दोनों के लिए जरूरी है। इस काल में जहां कई संकट आए हैं तो कुछ अच्छी बातें भी हुई हैं। जैसे हम बहुत ज्यादा बहिर्मुखी होकर अपने घर परिवार को ही भूल गए थे। कोरोना ने परिवार को एक होने और परिवार के सदस्यों को एकदूसरे को जानने समझने का अवसर दिया है। बाहर का जंक फूड खाने के बजाय लोगों ने घर का खाना अपनाया है।
कोरोना काल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस संकट में संघ के 5 लाख से अधिक स्वयंसेवकों ने करोड़ों लोगों तक मदद और राहत पहुंचाने का काम किया है। इसमें राशन और आवश्यक वस्तुएं पहुंचाने से लेकर हर तरह की मदद शामिल है। यह भूकंप या बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा में की जाने वाली गतिविधि नहीं थी। सभी को मालूम था कि कोरोना बहुत संक्रामक बीमारी है और जो लोग समाजसेवा के काम में लगे हैं वे खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं, लेकिन स्वयंसेवकों ने अपनी जान की परवाह किये बिना जरूरतमंदों की मदद की। उनका कार्य अभिनंदनीय है।
संघ के कार्यों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि शाखा के माध्यम से समाज में इस भाव का ही विस्तार होता है कि सभी अपने हैं। मूल बात है सेवा। समाज ने यदि हमें कुछ दिया है तो हमें भी समाज को लौटाना है, यह भाव बना रहना चाहिए और संघ यही शिक्षा देता है। इससे समाज का तानाबना मजबूत होता है। समाज की सेवा करना और समाज को लौटाने का यही भाव हमारी शिक्षा का भी अनिवार्य अंग होना चाहिए। स्कूल से लेकर कॉलेज तक। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि भारत कभी ‘वेलफेयर स्टेट’ नहीं रहा। यहां तो समाज ही सर्वोपरि रहा है। यदि हम युवा पीढ़ी को समाज के प्रति जवाबदेह बनाने के संस्कार दें तो समाज की ताकत बढ़ेगी।
चीन की विस्तारवादी नीति और पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को पोषित किए जाने संबंधी सवाल पर श्री वैद्य ने कहा कि संघ का स्पष्ट मानना है कि विस्तारवाद तो आज की दुनिया में किसी का भी नहीं चलेगा। चीन की विस्तारवादी नीतियों से अनेक देश त्रस्त हैं। लेकिन चीन के भीतर भी हालात ठीक नहीं हैं। वहां की आर्थिक स्थिति भी जल्दी ही खराब हो सकती है। आने वाले दिनों में हमें चीन के भीतर ही बड़े परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।
जहां तक पाकिस्तान का सवाल है, भारत का विरोध करना वहां की राजनीति की जरूरत हो सकती है लेकिन जरूरी नहीं कि पाकिस्तान की जनता भी ऐसा ही चाहती हो। हमारी जड़ें तो एक ही हैं इसलिए जरूरत इस बात की है कि हम उन जड़ों को मजबूत करें। हम साझी संस्कृति वाले रहे हैं, पड़ोसी देशों को भी समझना होगा कि भारत के मजबूत रहने में ही उनकी भी भलाई है। इस क्षेत्र में शांति और आर्थिक समृद्धि के जितने अधिक प्रयास होंगे उतना ही लोगों का भला हो सकेगा।
जहां तक भारत का सवाल है, हमने हमेशा प्रयास किया है कि पड़ोसी देशों से हमारे संबंध अच्छे रहें। लेकिन इसे हमारी कमजोरी भी नहीं समझा जाना चाहिए। आज का भारत बदला हुआ भारत है, हमारे प्रधानमंत्री ने हाल के अपने भाषण में साफ साफ कहा भी है कि जिसको जैसी भाषा समझ में आती है, हम उसको वैसी ही भाषा में जवाब देने के लिए तैयार हैं। इतनी मजबूती से अपनी बात रखने वाला ऐसा भारत पहले नहीं था।
सटीक चित्रण है, भारत वासियों में वास्तव में भारत प्रेम समर्पण की ओर अग्रसर हो ऐसी मेरी कामना है।