घुमावदार लोकतंत्र

आकाश शुक्ला

हमारे देश का लोकतंत्र घुमावदार हो गया है, साथ ही एक पार्टी का पर्याय भी। घुमावदार लोकतंत्र की विशेषता है, वोट किसी भी पार्टी को दो सरकार एक पार्टी की ही बन जाती है। पूर्ण बहुमत हो, आधा बहुमत हो या अल्पमत हो यह घुमावदार लोकतंत्र जनता की भावना समझता ही नहीं है। पूरे समय मनमानी में लगा रहता है। घूम फिर कर एक पार्टी की सरकार हर राज्य में बना देता है। इसीलिए अब वह पार्टी भी जनता के हितों से विमुख होकर यह समझ गई है कि जनता से ज्यादा जनता के चुने हुए लोगों को बस में कर आज के घुमावदार लोकतंत्र में सरकार बनाई जा सकती है।

घुमावदार लोकतंत्र ने दो प्रथाओं को जन्म दिया है, पहली प्रथा मंत्रिमंडल के गठन की परिपाटी बदल गई है। अब विधायक मुंह देखते रह जाता है और विधायकी से इस्तीफा देने वाला मंत्री बन जाता है। जनता को यह समझना मुश्किल हो जाता है, कि उसने उम्मीदवार को विधायक बनने के लिए चुना था के विधायकी से इस्तीफा देने के लिए।

निर्दलियों, छोटी पार्टियों के विधायकों का वजन भी इस घुमावदार लोकतंत्र में बढ़ा है, उनके मंत्री बनने की संभावनाएं बढ़ी है। पहले निर्दलीय या 5-10 सदस्यों वाली पार्टियों के विधायकों का मंत्री बनना असंभव था परंतु घुमावदार लोकतंत्र में दल बदल कानून का प्रभाव कम पड़ने से ऐसे लोगों के मंत्री बनने की संभावना बड़े दलों के उम्मीदवार से अधिक रहती है।

दूसरे, चाहे कोई भी दल कितना भी बहुमत में रहे वह यह नहीं बता सकता कि सरकार 5 साल चलेगी कि नहीं, इसलिए कम समय में सरकार का दोहन अधिक से अधिक कैसे किया जा सकता है इसमें राजनीतिक दल माहिर हो गए हैं। अब कोई भी पार्टी दूरगामी योजनाओं के आधार पर सरकार नहीं चलाती।

घुमावदार लोकतंत्र के माहिर खिलाड़ी आर्थिक रूप से भी संपन्न हो जाते हैं। विधायकी से इस्तीफा देकर भी करोड़ों कमाते हैं, बाद में मंत्री बन कर भी सत्ता का पूरा दोहन करते हैं। ऐसे लोगों को नुकसान की संभावना बहुत कम रहती है क्योंकि उनके राजनैतिक विरोधी भी दलबदल करने पर उनके तलवे चाटने पर मजबूर होते हैं।

जनता समझने की कोशिश करे तो यह समझ आता है कि ढुलमुल और बिन पेंदी के लोटों का जमाना आ गया है, घुमावदार लोकतंत्र में सबसे अच्छा विधायक वही है जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही भरोसा ना कर सके। ऐसे गैर भरोसेमंद विधायकों की मंत्री बनने की संभावना 100 फीसदी के करीब रहती है।

घुमावदार लोकतंत्र की रेत में से तेल निकालने वाले बिन पेंदी के महारथी विधायक जब इस्तीफा देकर मंत्री बन कर दोबारा चुनाव में आते हैं तो अपनी विचारधारा में परिवर्तन के ऐसे ऐसे कुतर्क जनता के सामने रखते हैं कि जनता भी घुमावदार बातों में आ जाती है और तमाम नैतिक अनैतिक बातों को छोड़कर ऐसे ढुलमुल, उम्मीदवार को दोबारा जिताकर घुमावदार लोकतंत्र की जय जयकार करती है।

इस घुमावदार लोकतंत्र में पार्टी की विचारधारा पर जिंदगी कुर्बान करने वाले कार्यकर्ता और नेताओं को अपने आप को इसके अनुरूप अभ्यस्त करने में परेशानी महसूस हो रही है क्योंकि उन्हें यह समझ नहीं आता की विपक्षी उम्मीदवारों का विरोध किस स्तर तक करना है, क्योंकि विपक्षी उम्मीदवार उनकी पार्टी के भविष्य की संभावना भी हो सकता है। इस पहलू पर उसका विरोध करने से पहले विचार करना आवश्यक हो गया है। उनके अपनी पार्टी में राजनीतिक कद बढ़ने के विकल्प भी खत्म करने में घुमावदार लोकतंत्र के माहिर खिलाड़ी पारंगत होते हैं। बरसों पुराने विचारधारा से बंधे हुए कार्यकर्ताओं से भी अपनी जय जयकार करवा लेते हैं।

इस घुमावदार लोकतंत्र में किसी भी पार्टी में आयातित उम्मीदवारों का स्वागत ऐसे उत्साह से किया जाता है, जैसे कोई अपने बच्चे को जन्म देने के बाद जवान और काबिल बना कर उसे घर जमाई बनने के लिए किसी और को सौंपता है और उसका स्वागत होता है।

वर्तमान में कई राजनीतिक दलों के हालात आयातित नेताओं के कारण ऐसे हो गए हैं, जैसे घर जमाई ससुर की संपत्ति पर कब्जा कर लेता है। पूरे घुमावदार लोकतंत्र में जनता की स्थिति सबसे बेबस और दयनीय है। क्योंकि एक बार वोट देने के बाद उसकी उपयोगिता, उसका मूल्य शून्य या दो कौड़ी का रह जाता है। वोट मांगने तक तो लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन होता है, लेकिन एक बार जहां सरकार बन गई तो उसके बाद लोकतंत्र नेता का, नेता के लिए, नेताओं के द्वारा शासन हो जाता है। मेरे देश के ऐसे  करामाती, हरकती, घुमंतू,  ढुलमुल नेताओं के प्रति वफादार और चक्रव्यूही, घुमावदार लोकतंत्र को बारंबार प्रणाम।

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