मध्‍यप्रदेश अब धुंए से काली नहीं, किरणों से उजली बिजली देगा

जयराम शुक्ल

प्रधानमंत्री जी ने ठीक ही कहा कि अब विंध्य माँ नर्मदा, सफेद बाघ के साथ सोलर ऊर्जा की पहचान के साथ जाना जाएगा। 10 जुलाई को रीवा अल्ट्रामेगा सोलर प्रोजेक्ट के लोकार्पण के साथ क्लीन और ग्रीन एनर्जी का एक अध्याय जुड़ गया है। यह गर्व का विषय है कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विंध्यभूमि विश्वगुरु बनकर उभरी है। रीवा के  गुढ-बदवार की बजंर पहाड़ी भूमि पर स्थित रीवा अल्ट्रामेगा सोलर प्लांट, थर्मल पॉवर के धुंए और सीमेंट के गर्दोगुबार से गैस चैम्बर में बदल रहे विंध्य के लिए गौरवान्वित करने वाला स्तुत्य काम है।

ऊर्जा के अजस्त्र स्रोत सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने वाला यह प्‍लांट दुनिया के सबसे बड़े सोलर प्लांट्स में से एक है, जहाँ 750 मेगावाट बिजली बननी शुरू हो चुकी है। अभी यह श्रेय अमेरिका के कैलीफोर्निया को था। यहाँ की बिजली सबसे कम कीमत लगभग 2 रुपए 97 पैसे प्रति यूनिट होगी।

इतनी सस्ती बिजली पैदा करने के लक्ष्य के कारण ही सोलर एनर्जी के रीवा मॉडल की दुनिया भर में धूम है। बड़े बिजनेस अखबार इसकी चर्चा कर ही रहे हैं, कुछ महीने पहले पाकिस्तान की पार्लियामेंट में भी इसकी चर्चा हुई कि जब भारत ऐसा कर सकता है तो हम क्यों नहीं? याने यह प्रोजेक्ट अन्य देशों के लिए ईर्ष्या का कारण बना है, तो यह बड़ी बात है।

अब जरा हम अपने अतीत की ओर चलते हैं। सूर्य की किरणों को ऊर्जा में बदलने की तकनीक का ग्यान हमें रामायण काल से है। रामायण में महर्षि वाल्‍मीकि ने लिखा है कि राम-रावण युद्ध के समय जब रामदल के सभी संसाधन खत्म हो गए तब अगत्‍स्य ऋषि ने राम को आदित्य (सूर्य) का स्तवन करने को कहा। यही स्तवन आदित्य ह्रदय स्त्रोत के नाम से प्रसिद्ध है।

ऋषि अगत्‍स्‍य उस काल के वैज्ञानिक थे। युद्ध के लिए राम को सभी आयुध अगत्‍स्‍य ने ही दिए थे। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में अगत्‍स्‍य को वैग्यानिक के तौर पर ही स्मरण किया है- अरु घटसंभव मुनि विग्यानी.. ये घट संभव अगत्‍स्‍य ही हैं। अगत्‍स्‍य घड़े से प्रकट हुए, इसलिए इन्हें कुंभज भी कहा जाता है। इनकी जन्मकथा से क्या ये नहीं लगता कि टेस्टट्यूब बेबी वैदिककालीन है।

बहरहाल निगेटीविटी से भरी पॉलिटिक्स और सिस्टम के बीच यदि इस तरह के काम होते हैं तो खुलकर प्रशंसा भी होनी चाहिए। उनकी भी तारीफ होनी चाहिए जो इस परिकल्पना को मूर्त रूप देने के पीछे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किए। सही मायने में जिस गुजरात मॉडल की चर्चा होती है वह चौबीस घंटे बिजली देने वाले प्रदेश के रूप में होती है। जाहिर है कि उनकी प्राथमिकता में ऊर्जा सर्वोपरि है।

मध्यप्रदेश में 2014 में भाजपा ने जो विजय हासिल की उसके पीछे चौबीस घंटे निर्बाध बिजली देने की अटल ज्योति योजना का प्रमुख योगदान रहा है। तब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिजली मंत्री का दायित्व राजेंद्र शुक्ल को सौंपा था। यह राजेंद्रजी के लिए कठिन टास्‍क था, पर उन्‍होंने इसे पूरा करके दिखाया। रीवा के अल्ट्रामेगा सोलर प्रोजेक्ट के पीछे यदि किसी का विजन था तो वे राजेंद्र शुक्ल ही हैं।

मुझे याद है कि वे 2014 में सोलर एनर्जी के एक सेमिनार में जर्मनी गए थे। इडनबर्ग के ऊर्जा-प्रबंधन की बात साझा की थी कि- कैसे जर्मनी के इस शहर के लोग अपने छतों में धूप से बिजली बनाते हैं और उसे बेचकर कमाते भी हैं। वे नेटमीटरिंग सिस्टम का भी तफ्सील से अध्ययन करके आए थे। इच्छाशक्ति हो तभी कल्पना मूर्तरूप लेती है। राजेंद्र शुक्ल तो एक खांटी इंजीनियर भी हैं। पूरी तरुणाई हायडल पावर, एक्वाडक्ट, ब्रिज बनवाने और डिजाइन करने में खपाई।

नो ड्रीम टू बिग, आई गेट व्हाट आई वांट ये दो ऐसे स्लोगन हैं जो कर्मठ लोगों में ऊर्जा का संचार करते हैं। मंत्री होते हुए भी लोप्रोफाइल में रहकर जुटे रहना यह उनकी वो कला है जो दूसरे नेताओं से उन्हें अलग खड़ा करती है। राजेंद्र जी ने इसी स्पिरिट के चलते ऐसी योजना को बंजर पहाड़ में लाकर खड़ा कर दिया जो निश्चित ही कल्पनातीत है। इस बड़े और प्रकृति पूजक काम के लिए उस पूरे सिस्टम की खुले दिल से तारीफ होनी चाहिए जिसने नवकरणीय ऊर्जा के मामले में देश को दुनिया के लिए अनुकरणीय बना दिया। रीवा अब अपने सफेद बाघ के साथ स्वच्छ ऊर्जा के लिए भी विश्व में जाना जाएगा।

विंध्य को प्रकृति ने भरपूर दिया है। यह भरपूर ही कभी-कभी नासूर बन जाता है। आपको जानना चाहिए कि अकेले सिंगरौली थर्मल पॉवर काम्प्लैक्स में 25 हजार मेगावाट की बिजली बनती है। यह देश के कुल उत्पादन का लगभग पाँचवाँ हिस्सा है। आप कह सकते हैं कि देश का हर पाँचवाँ घर हमारी जमीन के निकले कोयले से बनी बिजली से रोशन है।

पर इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी। लाखों लोग अपनी भूमि से बेदखल हुए। खूबसूरत जंगलों की जगह अब कोयला खदानों की गहरी खाई और ओवर बर्डन के पहाड़ खड़े हैं। जैवविविधता का नाश हुआ, हजारों की संख्या में गाँवों का इतिहास, उनकी परंपरा, विकास के विप्लव में बिला गई। आज विंध्य का यह सिंगरौली क्षेत्र दुनिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में एक है। बरसात में होने वाली तेजाबी बारिश उन किसानों की  जमीन को भी बंजर करती जाती है जिनका सिंगरौली की बिजली से कुछ भी लेना देना नहीं।

कहते हैं कि सिंगरौली इलाके से अब तक जितना कोयला निकला है,उससे सौ गुना ज्यादा अभी जमीन में दबा है। अभी पड़ोस के खूबसूरत जंगलों पर नजर है। फाइलें दौड़ रही हैं, कभी भी फरमान जारी हो सकता है कि जानवरों और वनवासियों इस इलाके को खाली करो।

मैंने यह सब इसलिए बयान किया कि विंध्य देश को रोशन करने के लिए किस तरह तिल-तिल जल रहा है। इस व्यथा को महसूस करेंगे तभी यह आकलन कर पाएंगे कि प्रकृति का स्वरूप बिगाड़े बिना उसी बिजली के लिए जो ये रीवा का अल्ट्रामेगा सोलर प्रोजेक्ट है वह कितना बड़ा महत्व रखता है। हमारे भारतीय दर्शन में प्रकृति से उतना ही लेने को कहा गया है जितना भौंरा फूल से लेता है। मनु, व्यास, वाल्‍मीकि और  भारतीय अर्थशास्त्र के अध्येता चाणक्य, सभी ने सचेष्ट किया है कि प्रकृति पालनहार है इसलिए उसका सम्मान बचे रहने में ही सबकी भलाई है।

केंद्र और प्रदेश की सरकार दीनदयाल उपाध्याय नामक जिस प्रज्ञापुरुष की प्रेरणा से चलने की बात करती है, उन्हीं ने अपने अर्थायाम दर्शन में यह बात साफ तौर पर कही है कि विकास वही है जो प्रकृति के स्वरूप को न बिगाड़े। ऊर्जा के संबंध में उन्होने सिर्फ नवकरणीय ऊर्जा की पैरवी की है। काश हमारी सरकारें ये संकल्प लें और विकास की ऐसी इबारत लिखें जिसपर प्रकृति की छाया और कृपा दोनों बनी रहे।

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