अरुण पटेल
शिवराज सिंह चौहान मंत्रि-परिषद का दूसरा विस्तार वास्तव में 24 विधानसभा उपचुनाव जीतने की हड़बड़ी में हुआ है, क्योंकि 22 दलबदलू विधायकों में से 14 को मंत्री बना दिया गया है। मकसद सभी सीटों पर भाजपा की विजय पताका लहराना है। इस मंत्रि-मंडल विस्तार से साफ है कि सामने चेहरा तो शिवराज का है लेकिन दबदबा भाजपा सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। इस कारण मंत्रि-मंडल विस्तार में न तो पूरी तरह से क्षेत्रीय संतुलन बैठ पाया है और ना ही जातिगत समीकरण सधे हैं। केवल एक चीज सधी है और वो ये कि भाजपा जो वादा करती है, वह निभाती भी है। यह संदेश अन्य राज्यों के लिए भी है।
अब सवाल यही है कि जिन्हें मंत्री बनाया गया है, क्या वे सभी चुनाव जीत पाएंगे और ज्यादातर जीत गए तो भाजपा के भीतर जो असंतोष उभर रहा है, उस पर नियंत्रण कैसे होगा? पार्टी क्षेत्रीय व जातीय समीकरण कैसे बिठा पाएगी? ताजा विस्तार में 14 ऐसे मंत्री शामिल हैं जो अभी विधायक नहीं हैं। जहां तक विधानसभा उपचुनाव जीतने का सवाल है तो वह इस बात पर निर्भर करेगा कि जो लोग पार्टी छोड़कर भाजपा में आ गए हैं वे पूर्व में साथ रहे मतदाताओं में से कितनों को वापस अपने पाले में ला पाएंगे? क्योंकि भाजपा में भीतर सबकुछ ठीकठाक नहीं है।
प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने पत्र लिखकर मंत्रि-मंडल विस्तार में जातिगत संतुलन न बिठा पाने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि सिंधिया के आने से तो वे प्रसन्न हैं, लेकिन मंत्रि-परिषद में असंतुलन से नाखुश हैं। फिलहाल यही कहा जा सकता है कि सिंधिया को खुश करने और वायदा निभाने की पूरी कोशिश की गई है और उन्हें पर्याप्त मान-सम्मान दिया गया है, जो कि उनके कांग्रेस छोड़ने की वजह बताई गई थी। विभागों के वितरण से यह बात साफ हो जाएगा कि दल बदलने वाले लोगों के हिस्से कितने मलाईदार विभाग आते हैं। इसके बाद कांग्रेस के हमले और तेज होंगे कि दलबदल के पीछे कोई न कोई ‘सौदेबाजी’ थी।
जिस ढंग से विस्तार हुआ है उससे यह संदेश तो मतदाताओं में जाएगा ही कि कहीं न कहीं तोल-मोल हुआ था। मप्र के इतिहास में ग्वालियर-चम्बल संभाग का संभवत: पहली बार इतना अधिक दबदबा देखने में आया है, क्योंकि इस विस्तार में जिन 28 लोगों को मंत्री बनाया गया है, उसमें से 11 इसी अंचल के हैं। पूर्व में मंत्री बने डॉ. नरोत्तम मिश्रा, जिनके पास गृह और स्वास्थ्य विभाग है भी इसी क्षेत्र से आते हैं। इसी अंचल में सर्वाधिक 16 सीटों पर उपचुनाव होना है, जबकि यहां से 12 मंत्री बनाए जा चुके हैं। सिंधिया समर्थकों में एक मंत्री इंदौर से और एक मंत्री सागर जिले से पहले से ही शामिल था, एक मंत्री धार जिले से और बनाया गया है। सिंधिया कोटे से जो 12 मंत्री हैं उनमें से तीन ही ग्वालियर-चम्बल संभाग से बाहर के हैं।
इस मंत्रिमंडल को त्रिकोणीय कहा जा सकता है, जिसमें एक कोण पर सिंधिया समर्थक हैं यानी जिन्होंने आपरेशन लोटस-2 के तहत बगावत की थी, दूसरा कोण वो विधायक हैं, जो ऑपरेशन लोटस-1 में शामिल थे। लेकिन सिंधिया इसलिए इन्हें अपने कोटे में नहीं मान रहे क्योंकि उनके कहने से जिन विधायकों ने थोकबंद दलबदल किया था उनमें ये विधायक शामिल नहीं थे। कैबिनेट मंत्री बनाए गए बिसाहूलाल सिंह, ऐंदल सिंह कंसाना और राज्यमंत्री हरदीप सिंह डंग कांग्रेस से सीधे भाजपा में आ गए। तीसरा कोण भाजपा के लोगों का है और इस विस्तार से सर्वाधिक असंतोष इसी वर्ग में होना है।
पहली बार शिवराज सिंह चौहान को अपनी टीम चुनने में इतनी मशक्कत करना पड़ी, फिर भी वे जिन्हें चाहते थे, उन्हें मंत्री नहीं बना पाए और संगठन या सिंधिया के दबाव में जो विस्तार हुआ, उसमें सबसे अधिक बेबस और लाचार वही नजर आ रहे हैं।
मालवा-निमाड़ और पूर्व मध्यभारत के इलाके की राजनीतिक धारा इंदौर से बनती है। वहीं गुटीय संतुलन गड़बड़ा गया है। लेकिन यहां से सिंधिया समर्थक और कैलाश विजयवर्गीय से इतर जो खेमा माना जाता है वह अवश्य संतुलित हुआ है। संघ भी अपने आपको संतुष्ट मानेगा, क्योंकि उषा ठाकुर संघ के नजदीक और एक दबंग महिला नेत्री हैं। लेकिन कैलाश विजयवर्गीय के समर्थकों को एक बार फिर निराशा हाथ लगी क्योंकि रमेश मेंदोला, जो विजयवर्गीय के सबसे विश्वस्त हैं, को मंत्रि-परिषद में जगह नहीं मिल पाई। जबकि हर बार की तरह विस्तार के समय उनका नाम सबसे आगे रहता है।
उल्लेखनीय है कि विजयवर्गीय को इस अंचल में होने वाले उपचुनावों का प्रभारी बनाया गया है। भाजपा से जिन लोगों को मंत्रि-परिषद में जगह मिली है उनमें गोपाल भार्गव और विजय शाह को तो ‘जबरिया कोटे’ का माना जा सकता है, क्योंकि उनके तेवरों के चलते ही उन्हें अंतत: मंत्रि-मंडल में जगह मिल पाई है।
तख्तापलट अभियान में दल बदलने वाले विधायकों की घेराबंदी करने वालों में फ्रंटफुट पर खेलते रहे अरविन्द भदौरिया को जगह मिल गई तथा उनके सहयोगी भूपेन्द्र सिंह और विश्वास सारंग भी कैबिनेट मंत्री बन गए, लेकिन रामपाल सिंह को जगह नहीं मिल पाई, जबकि वे शिवराज के सबसे करीबी हैं। ओमप्रकाश सकलेचा कैबिनेट मंत्री बन गए जबकि उनकी लाटरी तो काफी पहले खुल जाना थी, क्योंकि पहले पूर्व मुख्यमंत्रियों में कैलाश जोशी और सुंदरलाल पटवा के बेटे मंत्री बन चुके थे, केवल सकलेचा ही वंचित रहे थे।
शिवराज की नई टीम में ग्वालियर चंबल संभाग का अच्छा-खासा दबदबा है, यहां से डॉ. नरोत्तम मिश्रा, यशोधरा राजे सिंधिया, इमरती देवी, महेंद्र सिंह सिसोदिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, ऐंदल सिंह कंसाना, अरविन्द भदौरिया कैबिनेट मंत्री बन गए हैं जबकि राज्यमंत्रियों में भारत सिंह कुशवाह, बृजेन्द्र यादव, गिर्राज दंडोतिया, सुरेश धाकड़ और ओपीएस भदौरिया शामिल हैं। बुंदेलखंड अंचल से गोविंद सिंह राजपूत, गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और बृजेन्द्र प्रताप सिंह को जगह मिल गई है। विंध्य अंचल से मीना सिंह, बिसाहूलाल सिंह कैबिनेट मंत्री तो राज्यमंत्रियों में राम खेलावन पटेल शामिल हैं।
महाकौशल अंचल से कमल पटेल कैबिनेट मंत्री हैं जो कि नर्मदापुरम संभाग के हरदा से आते हैं और उनके अलावा राज्यमंत्री के रूप में रामकिशोर कांवरे को लिया गया है। निमाड़-मालवा और इंदौर से लगे मध्यभारत अंचल से तुलसी सिलावट, विजय शाह, जगदीश देवड़ा, प्रेमसिंह पटेल, ओमप्रकाश सकलेचा, उषा ठाकुर, मोहन यादव, हरदीप सिंह डंग और राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव कैबिनेट मंत्री हैं जबकि राज्यमंत्रियों में इंदर सिंह परमार को जगह मिली है। शुजालपुर के विधायक इंदरसिंह परमार संघ के भी काफी नजदीकी माने जाते हैं।
(लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं)
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