शशिकांत त्रिवेदी
भारत और चीन के झगड़े की दास्तान दरअसल एक सड़क पर लिखी है, जिसे काराकोरम हाइवे कहते हैं। इसलिए चीन के साथ हमारे झगड़े को समझने के लिए एंकरनियों और एंकरों को इस इतिहास को ज़रूर पढ़ना चाहिए। काराकोरम हाइवे क्यों बना और कैसे बना, इसके लिए पढ़ने लायक किताब पाकिस्तान की सेना के इंजीनियरिंग कोर के एक इंजीनियर मोहम्मद मुमताज़ खालिद ने लिखी है। इसके दो भाग है।
दूसरी किताब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के प्रथम कार्यकाल में सुरक्षा सलाहकार रहे जे.एन. दीक्षित की है जिसमें पाकिस्तान ने चीन की चालबाजियों को समझकर, इस सड़क के बनने के वक्त भारत से किस तरह सैन्य मदद माँगी और भारत ने क्यों ठुकरा दिया, इसके दस्तावेज, भारत की संसद सहित कुछ बड़े स्तर की बातचीत के ट्रांस्क्रिप्ट आदि हैं। इस संबंध में एक और किताब ‘इंडिया एन्ड पकिस्तान इन वॉर एंड पीस’ भी पढ़नी चाहिए।
इसके अलावा पाकिस्तान के गदार पोर्ट, जो कभी ओमानी सल्तनत का हिस्सा था और ओमान के चाबहार पोर्ट में क्रमशः चीन और भारत द्वारा किये गए अरबों के निवेश की दास्तान भी समझना चाहिए।
काराकोरम सड़क 806 किमी लम्बी है और पकिस्तान के हसन अब्दाल से शुरू होकर चीन के काशगर (जो कभी सिल्क रूट का मुख्य केंद्र था) और यारकन्द तक जाती है। अब इसकी लम्बाई 1300 किमी है। यह कई जगह 4500 मीटर की ऊंचाई को भी छूती है। बहुत ही खतरनाक परिस्थितियों में बनी इस सड़क को इसीलिये दुनिया का आठवाँ अजूबा भी कहा जाता है।
वैसे इसका बनना तो 1958 में शुरू हुआ लेकिन इससे दस साल पहले यह एक कच्चा पक्का रास्ता अंगरेजी राज में बनाया जा चुका था। इसको बनाने में करीब 25000 पाकिस्तानी और चीनी सेना के इंजीनियरों की मदद लगी और उस वक्त इस पर पकिस्तान ने 600 करोड़ रुपये का बजट रखा। इसके बनने में कई चीनी मज़दूरों और इंजीनियरों की जान गई। लगभग 810 पाकिस्तानी और चीन के 200 इंजीनियर और मजदूर मारे गए। जिन्हें चीन ने दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह गिलगित, जो भारत का हिस्सा है और जिस पर पकिस्तान ने कब्जा जमा रखा है, में बनवाये गए चीनी कब्रिस्तान में दफना दिया।
जब चीन को यह पता चला कि पकिस्तान ऐसी कोई सड़क बना रहा है तो चीन ने पाकिस्तान के कुछ हिस्सों पर कब्जा जमा लिया। पाकिस्तान के जनरल से प्रधानमंत्री बने अयूब खान ने नेहरू जी से गुहार लगाई कि क्यों न भारत और पाकिस्तान एक संयुक्त सेना बना लें और चीन से लड़ें। कहते हैं नेहरू जी ने भारत की संसद में इस माँग के बारे में सदन को बताया और पाकिस्तान के खिलाफ एक जोरदार भाषण भी दिया कि हम पकिस्तान के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। पकिस्तान के पास जब कोई चारा नहीं बचा तब उसने चीन से दोस्ती कर ली बदले में चीन ने गला छोड़ दिया और इस काराकोरम हाइवे के काफी बड़े हिस्से पर कब्ज़ा जमा लिया।
यह हाइवे ही अमेरिका और चीन की दुश्मनी का सबसे बड़ा कारण है क्योंकि यह चीन को अरेबियन सी तक सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से बहुत मजबूत बनाता है। चीन को अरेबियन सी में दखल देने की ताकत देता है। काराकोरम हाइवे को आज पाकिस्तान-चीन की दोस्ती का प्रतीक माना जाता है। इस हाइवे पर हमारे एक योद्धा हरिसिंह नलवा का घर हरिपुर भी आता है। इनका ज़िक्र भारत के प्रसिद्ध वीर गीत “ये देश है वीर जवानों का…” में है। हरिसिंह जी की वीर गाथाएं एंकरों को पढ़ना चाहिए।
इसी सड़क पर अबोटाबाद भी है जो ब्रिटेन ने भारत में स्थापित ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेना के जनरल जेम्स अबॉट के नाम पर बसाया। जेम्स के और भी भाई बहन भारत में ही मर खप गए। वे कलकत्ता के एक व्यापारी के बेटे थे। लेकिन जेम्स ने पाकिस्तान के अबोटाबाद से इंदौर तक अपना दखल रखा। एक शहर और है मनसेहरा जो सरदार महासिंह मीरपुरी ने बसाया था यहाँ एक प्रसिद्ध शिवमंदिर है और यहाँ की शिवरात्रि बहुत प्रसिद्ध है।
इसी हाइवे पर एक और शहर है नगर खास जो हुंजा घाटी की सभ्यता की जीवित दास्तान है। हाल ही में एक अनजान लेखक निकोलस पीटर ने एक किताब लिखी है “द टेमिंग ऑफ़ फेयरीज़” इसमें परियों की दास्तान नहीं बल्कि ईरान की सभ्यता से लेकर हुंजा घाटी तक ही दास्तान है।
ये सब पढ़ना चाहिए। गिलगित शहर जो हमसे छीन लिया गया, उसमें तो शायद हिम युग की दास्तान मिल जाए। केवल काराकोरम हाईवे ही नहीं, पाकिस्तान ने अपना गदार पोर्ट भी चीन को 2059 तक के लिए सौंप दिया है। आज यह चाइना पकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर योजना का हिस्सा है। सन 2015 में चीन और पाकिस्तान ने मिलकर इस पर 6500 करोड़ रुपये के आसपास या ज़्यादा पैसा लगाने की घोषणा की थी।
इससे चीन पकिस्तान की ईरान-पकिस्तान गैस पाइपलाइन भी कभी न कभी हथिया लेगा। यहाँ चीन एक शहर भी बसा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बना रहा है, एक 300 मेगावाट बिजली संयंत्र लगा रहा है और समुद्र के पानी को पीने के पानी में बदलने का कारखाना भी बना रहा है।
सन 2016 में भारत ने भी पास ही में बने चाबहार पोर्ट के विकास के लिए अफगानिस्तान और ईरान के साथ एक समझौता किया है। भारत ने चाबहार-हाजीगाक रेलवे लाइन में भी पैसा लगाने के लिए करार किया है। इससे हमें वहां (अफगानिस्तान) मौजूद लोहे के भंडारों के इस्तेमाल की मंजूरी मिलेगी। यहाँ बनने वाले स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन में मोदी सरकार ने लगभग एक लाख करोड़ रुपये के निवेश की संभावनाएं तलाशने की बात की है।
पोर्ट से अफगानिस्तान तक सड़क चालू हो चुकी है और भारत अफगानिस्तान को इस रास्ते गेहूं भी भेज चुका है। मोदी जी की दोस्ती के मद्देनज़र अमेरिका ने ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों से इस पोर्ट को बाहर रखा है क्योंकि भारत अफगानिस्तान के सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं और भारत अफगानिस्तान के आर्थिक विकास में मदद कर रहा है। सन 2015 के बाद इस इलाके में भारत ने बहुत कुछ किया है लेकिन पत्रकारों ने बहुत कुछ लिखा नहीं है। मोदी जी ने किसी को मना किया नहीं होगा।
एंकरों को तो मालूम ही नहीं है कि इन आर्थिक षड्यंत्रों के बहाने चीन की किस इलाके पर नज़र है। क्योंकि पाकिस्तान नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या? उसके पास इतना पैसा है कहाँ? चीन पकिस्तान के बीचों बीच गुजरने वाले काराकोरम हाइवे से धमाचौकड़ी मचाता हुआ गदार पोर्ट तक रोज आता जाता है, दुनिया में व्यापार बढ़ा रहा है तो पकिस्तान में बचा क्या है? भारत से ईर्ष्या, व्यापारिक और सामरिक दुश्मनी के यही सब कारण हैं क्योंकि भारत ऐसे कोई समझौते नहीं करता कि कोई कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक रोड बना दे और जो चाहे वो ले ले।
हाल का झगड़ा इसलिए है कि हमने अपनी इन्ही आर्थिक और सामरिक संभावनाओं को आगे बढ़ाते हुए गलवान नदी के किनारे किनारे 255 किमी लम्बी दौलत वेग ओल्डी तक एक रोड बनाई है जो चीन को इसलिए बुरी लग रही है क्योंकि वहां से हम यह देख सकते हैं कि काराकोरम हाईवे का इस्तेमाल व्यापार के लिए हो रहा है या सैनिक गतिविधियों के लिए। अक्साई चिन इलाका हमारा है फिर भी चीन वहां कब्जा जमाये हुए है और अब गलवान घाटी को अपनी बता रहा है ताकि वह देर सबेर कश्मीर में भी घुसपैठ बना सके।
लेकिन चीन की दाल अब गलने वाली नहीं है। भारत कोई भी आर्थिक या सामरिक निवेश या निर्माण किसी देश पर हमला करने या कब्ज़ा जमाने के लिए नहीं करता बल्कि अपनी सुरक्षा और अपने मित्र देशों से अच्छे सम्बन्ध बरकरार रखने के लिए करता है। ज़ाहिर है दुनिया में षड्यंत्रकारी भलाई कहाँ पसंद करते हैं। जीवन में एक बार पूरे काराकोरम हाइवे पर सफर ज़रूर करूंगा।
(लेखक की फेसबुक वॉल से साभार)