राजेश कसेरा
दंगल जैसी बड़ी हिट फिल्म बनाने वाले निर्देशक नितेश तिवारी ने सितम्बर-2019 में फिल्म छिछोरे रिलीज की तो उनको भी अंदाजा नहीं था कि सिनेप्रेमियों से इतना प्यार मिलेगा। इस प्यार का सबसे बड़ा कोई हकदार बना तो वे थे अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत। उन्होंने अपने किरदार को इस तरह से जीया कि वे खुद को भुला बैठे। इस फिल्म में उन्होंने ही सबको सिखाया था कि आत्महत्या नहीं करना है। जिन्दगी छोड़ने के बुरे ख्याल आए तो उससे हर हाल में उबरना है।
फिल्म की सफलता के दो महीने बाद ही नवम्बर के आखिरी सप्ताह में मुंबई के बांद्रा इलाके में आयोजित समारोह में सुशांत से मिलने का अवसर मिला। मुस्कुराता चेहरा, आंखों में चमक और बहुत ही सौम्य संवाद के साथ उन्होंने गर्मजोशी से मुलाकात की। फिल्मी दुनिया से हटकर दूसरी बातों पर चर्चा हुई तो अपनी बात को रखने का सुशांत ने कोई अवसर नहीं गंवाया। फटाफट अपने पक्ष को रखा।
छिछोरे फिल्म की थीम से प्रेरित होकर बड़े आत्मविश्वास से भरकर कहा कि बॉस, लाइफ इज मीन्ट टू बी लिव्ड यानी जीवन तो जीने के लिए होता है। हर बात को हंसकर कहना और तनाव से कोसों दूर रहना, यह मूलमंत्र सुशांत से 20 मिनट की बातचीत के दौरान जानने को मिला। इस मुलाकात के कुछ महीनों के बाद 14 जून, 2020 को जो दर्दनाक सूचना मिली, उसने न केवल चौंकाया, बल्कि जिन्दगी के मायनों को ही बदलकर रख दिया।
उस खुशमिजाज चेहरे के पीछे क्या-कुछ बीते छह महीनों में गुजरा होगा इसका सच या तो खुद सुशांत बता सकते हैं, या वे करीबी दोस्त या अपने जिनसे वे अपने दिल की बात किया करते थे। एक युवा और प्रतिभाशाली एक्टर का यूं चले जाना सिर्फ बॉलीवुड या उसके परिवार के लिए गहरा आघात नहीं है, बल्कि उन हजारों-लाखों प्रशंसकों के लिए भी अपूरणीय क्षति है, जो कहीं न कहीं सुशांत में अपना अक्स देखते थे।
जीवन में अवसाद, तनाव और द्वंद्व से कोई भी इंसान अछूता नहीं है। सबकी जिन्दगी में ऐसा पल अवश्य आता है, जब बुरी परछाइयां उसे घेर लेती हैं। ऐसा कुछ करने के लिए प्रेरित करती हैं जो उनके अपनों के लिए ताउम्र के गहरे जख्म छोड़ जाता है। लाख जतन के बाद भी वे घाव रिसते रहते हैं।
सुशांत भी उनके चाहने वालों के लिए ढेरों यादें छोड़ गए हैं जो दिलोदिमाग पर दस्तक देती रहेंगी। सुशांत के छिछोरे, एमएस धोनी, पीके और केदारनाथ के किरदारों ने जीवन से लड़ना सिखाया था। सपनों को हासिल करने के लिए कड़ा संघर्ष और सब्र रखना बताया था। इसी सबक को वे अवसाद के छह महीने के बुरे काल में जानते-समझते और दोहराते रहते तो आज बॉलीवुड का वो सितारा अस्त होने से डूब जाता जिसकी चमक न जाने कितनों के रास्ते रोशन कर रही थी।
सुशांत भले हमारे बीच नहीं रहे, पर उनकी जिन्दगी के फलसफे को साकार करने की जिम्मेदारी अब हम सबकी होगी। क्योंकि सुशांत ने फ़िल्म छिछोरे में एक डायलॉग कहा था, लूजर कहलाने से कहीं ज्यादा बुरा है… खुद से हारकर लूजर कहलाना।
(लेखक की फेसबुक वॉल से)
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टीम मध्यमत