अरुण पाण्डेय
भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को चीन से सावधान रहने के लिए कहा था। अपनी मृत्यु के एक महीने पहले ही 7 नवंबर 1950 को उन्होंने पंडित नेहरू को एक पत्र में लिखा था कि भले ही हम चीन को मित्र के तौर पर देखते हैं लेकिन कम्युनिस्ट चीन की अपनी महत्वकांक्षाएं और उद्देश्य हैं।
1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध में जो हुआ था वही इस वक्त पूरी दुनिया में हो रहा है। पूर्वोत्तर के रास्ते चीन के सैनिक भारत में प्रवेश करते हैं और सबसे पहले यहां की संचार व्यवस्था को ध्वस्त कर देते हैं। ऐसा होने से भारतीय सैनिक और दिल्ली के बीच संपर्क बाधित हो जाता है। चीन की सेना भारत में कितना अंदर तक आ गई है और क्या कर रही है यह जानने के लिए भारत का खुफिया तंत्र चीन की रेडियो प्रसारण सेवा पर निर्भर हो जाता है।
और दुनिया अब इस वक्त 2020 में है। यह कोरोना काल है। कोरोना वायरस को रोकने में सरकारें नाकाम हुईं या इंतजाम फेल हो गए। इस सवाल का जवाब खोजा जा रहा है। राहुल गांधी ने भी स्पेन, जर्मनी, इटली और ब्रिटेन जैसे कोरोना प्रभावित देशों में लॉकडाउन और अनलॉक कब लागू किया गया इसका ग्राफ ट्वीट किया है। राहुल गांधी का मानना है कि भारत में लॉकडाउन पूरी तरह से विफल रहा।
अब आइए चीन, वुहान, कोरोना, लॉकडाउन इसको एक सूत्र में पिरो कर तस्वीर बनाने की कोशिश करते हैं। बहुत बारीकी से समझें तो लॉकडाउन के पीछे षड्यंत्र ज्यादा था स्वास्थ्य की चिंता कम। दरअसल जब चीन के वुहान में कोरोना कहर ढा रहा था तो पूरी दुनिया चीन की तरफ देख रही थी। देख क्या रही थी चीन की प्रोपेगंडा मीडिया दिखा रही थी।
यह कि चीन की सरकार ने कैसे वुहान में लॉकडाउन कर और कारगर उपायों के जरिए कोरोना पर काबू पाया है। लॉकडाउन के अलावा वह कारगर उपाय कौन से थे इसके बारे में चीन ने आज तक दुनिया को नहीं बताया। शुरू में विश्व स्वास्थ्य संगठन का भी पूरा फोकस लॉकडाउन और शारीरिक दूरी पर ही था।
चीन से निकलकर जब कोरोना का वायरस दुनिया के मुख्तलिफ देशों में फैला तो वहां की सरकारों ने भी लॉकडाउन और शारीरिक दूरी के नियम को तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया। जनवरी 2020 के दौरान वास्तव में चीन में क्या हो रहा है यह जानने की कोशिश दुनिया के बाकी देशों की सशक्त खुफिया एजेंसियों ने नहीं की। अंतरराष्ट्रीय मीडिया का दखल भी चीन में उस वक्त ना के बराबर रह गया था।
चीन में विदेशी नागरिक अपना बोरिया बिस्तर समेट कर वहां से जल्द से जल्द निकल जाने के इंतजाम में लगे हुए थे। इसलिए कोरोना के शुरुआती दौर और पीक तक पहुंचने के दरमियान चीन में क्या-क्या हो रहा है यह पता लगाने में अंतरराष्ट्रीय मीडिया और खुफिया एजेंसियों से चूक हो गई। हमने वही जाना और देखा जो चीन ने दिखाना चाहा।
तस्वीर जब धीरे-धीरे साफ हुई तो पता चला कि चीन के वुहान में ही लॉकडाउन था और उसके बाकी के औद्योगिक शहर पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना का हव्वा इस कदर खड़ा किया कि दुनिया के शक्तिशाली देशों ने अपने सभी राज्यों में एक साथ लॉकडाउन लागू कर दिया।
लॉकडाउन लागू होने से कोरोना का प्रभाव भले ही कम ना हुआ हो लेकिन अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चौपट जरूर हो गई। यानी चीन ने जिस मकसद के साथ लॉकडाउन के मॉडल को पूरी दुनिया को दिया वह उसमें कामयाब रहा। और अब दोबारा लौटते हैं चीन की महत्वकांक्षा और उद्देश्य पर।
वन बेल्ट, वन रोड परियोजना को सिल्क रोड इकोनामी बेल्ट के नाम से भी जाना जाता है। सन 2013 में यह प्रोजेक्ट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने धरातल पर उतारा। यह उनका ड्रीम प्रोजेक्ट भी है। यह चीन की आर्थिक विकास रणनीति है जो कनेक्टिविटी पर केंद्रित है। इसके जरिए एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़े जाने का विचार है। इस भूभाग पर दुनिया की 64 फ़ीसदी आबादी रहती है। इस परियोजना में सड़क, रेल, बंदरगाह, समुद्र, पाइपलाइन के जरिए एक बड़ा जाल बिछाया जाना है।
असल में चीन के पास पिछले काफी सालों से स्टील, सीमेंट, निर्माण सामग्री आदि की अधिकता हो गई है। अपने इस माल को खपाने के लिए वह बड़े बाजार का निर्माण करना चाहता है जिसके लिए कनेक्टिविटी सबसे बड़ी जरूरत है। और यह सपना तब साकार होगा जब चीन सबसे बड़ा उत्पादक हो और दुनिया की एक बड़ी आबादी उपभोक्ता।
और कोरोना संकट के दौरान चीन ने दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश में पीपीई किट और मास्क भेज कर खुद को बड़ा उत्पादक साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। वन बेल्ट, वन रोड परियोजना के साझेदार देशों के साथ द्विपक्षीय समझौता करके चीन उन्हें आर्थिक सहायता और ऋण उपलब्ध कराकर मनमानी शर्तें थोप रहा है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका के बाद दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा भूमिगत भंडार चीन के पास ही है और जापान इस मामले में तीसरे नंबर पर आता है।