हेमंत पाल
ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस छोड़कर दलबल सहित भाजपा में शामिल हुए दो महीने से ज्यादा वक़्त हो गया। पर, अभी तक एक बार भी ये महसूस नहीं हुआ कि भाजपा ने उन्हें या उनके समर्थकों को दिल से स्वीकारा हो। जब भी सिंधिया समर्थकों जिक्र होता है, भाजपा में उन्हें ‘सिंधिया के लोग’ सम्बोधित किया जाता है। मंत्रिमंडल विस्तार में भी ‘सिंधिया के लोग’ भाजपा नेताओं की आँख में खटक रहे हैं।
यहाँ तक कि सिंधिया समर्थकों के साथ कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वालों के आयोजनों में भी पोस्टर से सिंधिया का फोटो तक नदारद होता है। जबकि, भाजपा का मध्यप्रदेश में फिर सरकार बनना इन्हीं समर्थकों की वजह से ही संभव हुआ। भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच ये अदृश्य खाई धीरे-धीरे बढ़ रही है। वैसे भी भाजपा में किसी बाहरी नेता को आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता।
चौधरी राकेश सिंह से लगाकर प्रेमचंद गुड्डू तक का इतिहास बताता है कि इस पार्टी में किसी और पार्टी से आए नेता को कभी ख़ास तवज्जो नहीं मिली। जब तक कि वो संजय पाठक जैसा व्यावसायिक नेता न हो। अब तो भाजपा के बड़े नेता सिंधिया समर्थकों पर कटाक्ष तक करने लगे। ऐसे में इस जोड़ी का रिश्ता कितना ज्यादा लम्बा चलेगा, इसमें शक है। क्योंकि, भाजपा को अभी भी सिंधिया पर भरोसा नहीं है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया और भाजपा की राजनीतिक जोड़ी बेमेल है, इसमें किसी को कोई शक नहीं। भाजपा की विचारधारा और राजनीति से सिंधिया की राजनीतिक शैली कहीं मेल नहीं खाती। ऐसी स्थिति में वे भाजपा में अपने आपको कैसे खपा पाएंगे और क्या उनके समर्थकों की अपने नेता के प्रति प्रतिबद्धता को भाजपा पचा पाएगी।
क्योंकि, भाजपा में सामान्यतः खुली गुटबाजी कभी दिखाई नहीं देती। गुटबाजी की वहाँ भी कमी नहीं है, पर बड़े नेताओं के खौफ और ख़ास तरह की विचारधारा के कारण पार्टी में गुटबाजी कभी पनपकर सामने नहीं आ पाती। ऐसे में यदि सिंधिया समर्थक पार्टी से ज्यादा अपने नेता को तवज्जो देंगे, तो उंगली उठना स्वाभाविक है। शायद यही कारण है कि भाजपा के नेता अभी भी उन 22 बागी कांग्रेसियों को भाजपा का नहीं मानकर ‘सिंधिया के लोग’ कहना ज्यादा सुविधाजनक महसूस करते हैं।
राजनीतिक इतिहास के पन्ने पलटे जाएं, तो भाजपा में जो भी नेता दूसरी पार्टियों से आए, उन्हें उतनी तवज्जो नहीं मिली जितनी कि उन्हें अपेक्षा थी या पार्टी ने वादा किया था। इसके लिए भाजपा को दोषी नहीं माना जा सकता। क्योंकि, भाजपा की राजनीतिक शैली आरएसएस से प्रभावित होती है और किसी अन्य पार्टी के लोग उसे चाहते हुए भी स्वीकार नहीं कर पाते।
बात मध्यप्रदेश की हो, तो ऐसे नामों की लिस्ट बहुत लम्बी है। चौधरी राकेश सिंह, रामलखन सिंह, हरिवल्लभ शुक्ला, फूलसिंह बरैया, बालेंदु शुक्ला और लक्ष्मण सिंह से लगाकर प्रेमचंद गुड्डू तक। हो सकता है, कुछ नाम छूट गए हों, पर मिसाल देने के लिए ये बहुत हैं। पहले कभी ये नेता भाजपा शामिल हुए और बाद में इनमें से ज्यादातर उपेक्षित होकर घर लौट आए।
संजय पाठक जरूर कांग्रेस से आकर भाजपा में रच-बस गए। पर, उनका मूल कर्म राजनीति नहीं है। वे व्यावसायिक नेतागिरी करते हैं। यदि कमलनाथ सरकार ज्यादा दिन चलती, तो संभव है कि वे फिर कांग्रेसी हो जाते। लेकिन, सिंधिया के साथ भाजपा में आए लोगों का मामला थोड़ा अलग है। कांग्रेस के एक गुट के 22 विधायकों ने अपने नेता के कहने पर पार्टी छोड़ी और भाजपा में शामिल हुए। नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस की सरकार गिर गई और भाजपा की बन गई। ये भाजपा के बड़े नेताओं का फैसला था और बात सरकार बनने की थी, तो बेमन से उनका स्वागत सत्कार भी हुआ। लेकिन, अब वो बात नहीं है।
जब ये राजनीतिक बदलाव हुआ, तब इस बात पर गौर नहीं किया गया था, कि जब मंत्रिमंडल बनने की बात आएगी तो समीकरण कैसे बैठेगा। 30-32 मंत्रियों की लिस्ट में 10 जगह तो वादे के मुताबिक सिंधिया के लोगों को मिलना है। उसमें कोई कतरब्योंत संभव नहीं। ऐसे में बाकी बची जगह में भाजपा के लम्बरदारों को कैसे एडजस्ट किया जा सकेगा।
मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जो ख़बरें रिसकर बाहर आ रही हैं, उनका लब्बोलुआब यही है कि कोई पीछे हटने को तैयार नहीं। करीब तीन दर्जन भाजपा विधायक तो अपनी वरिष्ठता का झंडा लहराकर खुद को मंत्री बनाने का दावा कर ही रहे हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश संगठन मंत्री और मुख्यमंत्री ने भले ही अपने तईं नाम तय कर लिए हों, पर आशंका है कि खुलासा होने पर विरोध हो सकता है।
कई विधायक जिन्हें मंत्री न बन पाने की पूरी आशंका है, उनके दबे-छुपे बयान भी सुनाई देने लगे हैं। निशाने पर सिंधिया के लोग ही हैं, जिन्हें वे खुद मंत्री न बन पाने का सबसे बड़ा कारण मान रहे हैं। लेकिन, ये भूल भी रहे हैं कि सरकार बनने की सबसे बड़ी वजह यही ‘सिंधिया के लोग’ हैं।
भाजपा में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर कितना भी अंतर्विरोध पनपे, पर दावे से कहा जा सकता है कि कोई भी नेता बगावत करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। क्योंकि, भाजपा के नेताओं में अभी नेतृत्व के खिलाफ बगावत करने का साहस नहीं आया। ऐसा कुछ होने की बात दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती।
राजनीति पूरी तरह कयासों के आधार पर चलती है। जब भी बड़े फैसले लिए जाते हैं, तो ये अनुमान भी लगाया जाता है कि यदि इसका विरोध हुआ, तो बात कहाँ तक जाएगी। फ़िलहाल भाजपा में हालात कुछ ऐसे ही हैं। सिंधिया समर्थकों के कारण यदि भाजपा में विरोध पनपता है और ये हद से ज्यादा बढ़ता है, तो बात कहाँ तक जाएगी, ये तो सोचा ही गया होगा। उसकी काट भी निकाली गई होगी।
ये बात इसलिए उठी कि भाजपा के एक बड़े नेता ने दलबदलुओं के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा ‘आजकल के नेता कपड़ों की तरह दलबदल कर रहे हैं।’ ये भाजपा नेता इसे अनैतिक राजनीतिक कर्म मानते हैं। उनके इस बयान को सिंधिया समर्थकों ने गंभीरता से लिया और अपने ऊपर की गई अपमानजनक टिप्पणी माना है।
सुनने में ये भी आया, कि वे दिल्ली जाकर भाजपा हाईकमान के सामने अपना विरोध भी दर्ज कराएंगे। दरअसल, ये एक नेता की टिप्पणी जरूर है, पर भाजपा में सिंधिया के लोगों के बारे में ऐसा सोचने वालों की कमी नहीं है।
कांग्रेस की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया को ‘महाराज’ कहा जाता रहा है। लेकिन, क्या भाजपा में उन्हें ऐसी हैसियत मिलेगी, ये नहीं कहा जा सकता। जब सिंधिया ने भाजपा की सदस्यता ली थी, उस दिन शिवराजसिंह चौहान ने जरूर ट्वीट किया था ‘स्वागत है महाराज, साथ है शिवराज।’
लेकिन, उसके बाद कभी सुनने में नहीं आया कि किसी खालिस भाजपाई ने उन्हें ‘महाराज’ कहकर सम्बोधित किया हो। जहाँ तक ज्योतिरादित्य सिंधिया की हैसियत की बात है तो बरसों से उनका विरोध करने वाले प्रभात झा क्या कभी उन्हें अपना नेता या साथी मानेंगे? ये इसलिए भी संभव नहीं है कि प्रभात झा को भाजपा से दोबारा राज्यसभा टिकट सिर्फ इसलिए नहीं मिला, कि समझौते के तहत भाजपा को सिंधिया को राज्यसभा में भेजना है।
प्रभात झा ही नहीं, भाजपा में ऐसे कई नेता हैं, जो सिंधिया के पार्टी में आने से अंदर ही अंदर कुलबुला रहे हैं। लेकिन, सबकी अपनी-अपनी पीड़ा है। गुना के भाजपा सांसद केपी यादव भी उन्हीं में से एक होंगे। यादव कभी सिंधिया के प्रतिनिधि हुआ करते थे। लेकिन, दोनों के बीच दूरियां इतनी बढ़ी कि भाजपा ने केपी यादव को 2019 में लोकसभा चुनाव का टिकट दिया और उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को हरा भी दिया।
कैसे कहा जा सकता है कि सिंधिया और यादव के रिश्ते कभी सामान्य हो सकेंगे। आने वाले दिनों में सिंधिया के कारण भाजपा में जिस किसी को परेशानी आएगी, वो गुप-चुप प्रतिक्रिया देता रहेगा। लेकिन, इस बात में शक नहीं कि चाहकर भी भाजपा के नेता सिंधिया को वो हैसियत न दे पाएं जो उन्हें कांग्रेस में मिली थी।
इसका कारण ये कि भाजपा में जो दर्जा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं का होता है वो किसी का कभी नहीं हो सकता। फिर वो ‘महाराज’ ही क्यों न हो।
————————————-
आग्रह
कृपया नीचे दी गई लिंक पर क्लिक कर मध्यमत यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करें।
https://www.youtube.com/c/madhyamat
टीम मध्यमत