गांधी, गांधी क्यों हैं

राकेश श्रीवास्तव

कल से खबर आ रही है कि विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को अपने ही देश के लोगों के प्रदर्शन से डर कर सुरक्षा के लिए बंकर में छुपना पड़ा है। ऐसे में गांधी तुरंत जेहन में आते हैं।

लोग अक्सर यह सवाल उठाया करते हैं कि गांधी में ऐसा विशेष क्या है? गांधी ने यह नहीं किया, गांधी ने वह नहीं किया, गांधी चाहते तो ये कर सकते थे, चाहते तो वो कर सकते थे। सही बात है जो करता है उसी से अपेक्षा रहती है। ऐसे लोग चाहते हैं कि गांधी को सौ में सौ से भी अधिक नम्बर क्यों नहीं मिले।

वैसे तो गांधी गांधी क्यों हैं, इस पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है परंतु फेसबुक के माध्यम से मैं यहाँ संक्षेप में कुछ लिख रहा हूँ। गांधीजी की सबसे बड़ी विशेषता थी कि वह अन्याय के खिलाफ झुकते नहीं थे और कोई भी सजा भुगतने को सहर्ष तैयार रहते थे। उनका पूरा जीवन इस तरह की घटनाओं से भरा हुआ है।

उनके असीम साहस और निर्भीकता को समझने के लिए कुछ घटनायें ही पर्याप्त होंगी। वह सजा और मृत्यु से न कभी डरे और न भागे, दक्षिण अफ्रीका से लेकर नोआखाली तक। साथ ही अनेक ऐसे लोगों की अहिंसक फौज तैयार की जो उन्हीं के पदचिन्हों पर चलने को सदैव तत्पर रहती थी।

दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन में टी.टी. के अन्याय का विरोध करने पर ट्रेन से फेंके गए और अपना विरोध दर्ज कराया।

दक्षिण अफ्रीका में ही शादी के रजिस्ट्रेशन के विरुद्ध आंदोलन।

दक्षिण अफ्रीका में जज से कहा कि मुझ को कानून के अनुसार अधिकतम सजा दे दीजिए।

चंपारण आंदोलन के समय माफी मांगने को कहा गया परंतु कहा कि नहीं मुझको जो अधिकतम सजा है वह दी जाय। जज भी सोच रहे थे कि कैसे सजा दी जाए, क्या सजा दी जाय। उनसे कहा कि संकोच न करें सजा दें।

नमक सत्याग्रह में जानबूझकर कानून तोड़ना और उसके बाद सजा भुगतने के लिए तैयार रहना।

असहयोग आंदोलन, जेल में ही महादेव भाई की मृत्यु हो जाने के बाद कस्तूरबा की तबीयत भी बहुत बिगड़ गई परंतु किसी प्रकार का समझौता करने को तैयार नहीं हुए।

वहीं पर खुद की तबीयत खराब होने के बाद भी उपवास नहीं तोड़ना।

हिन्दू मुस्लिम दंगों में बिना जान की परवाह किए खुद नोआखाली चले गए और डॉ. लोहिया, प्यारेलाल, सुशीला नैयर जैसे अनेक लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में भेज दिया।

यह सबके बस का नहीं है, इसलिए गांधी एक अलग स्तर पर खड़े हैं जिसको पूरा विश्व एक आशा और विश्वास के साथ देखता है। आज विश्व फलक पर कितने नेता कह सकते हैं कि “मेरा जीवन ही मेरा सन्देश है।”

(यह पोस्‍ट अरुण कुमार त्रिपाठी जी की वॉल से साभार)

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