डॉ चन्द्रशेखर मालवी
वर्चुअल लैब या कहें कि आभासी प्रयोगशाला। एक ऐसा माध्यम है जिसमें एक इंटरैक्टिव वातावरण तैयार किया जाता है, जिसमें व्यक्ति सिमुलेशन और एक्सपेरिमेंट कर सकता है। यह इंटरएक्टिव वातावरण किसी वाहन को चलाना सीखना, प्लेग्राउंड में खेल खेलने या कोई इंजीनियरिंग प्रयोग हो सकता है। वह उसी प्रकार के खतरों और चुनौतियों को स्वीकार करता है, जो कि असल में हो सकते हैं। इस इंटरएक्टिव वातावरण के अंदर व्यक्ति को एक स्तर तक प्रशिक्षित किया जा सकता है, उसके बाद ही असली उपकरण पर असली परीक्षा होती है।
कोविड-19 के दौरान यह सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी हो सकती है क्योंकि ऑनलाइन पढ़ा तो सभी रहे हैं, परंतु ऑनलाइन प्रयोग कराना एक कठिन कार्य है। क्योंकि इसमें एक विशेष प्रकार का हार्डवेयर व उसी के सॉफ्टवेयर के साथ बड़े स्क्रीन की आवश्यकता पड़ती है। हालाँकि कुछ VR सेट भी यह कार्य करते हैं, परंतु वह अभी केवल वर्चुअल रियलिटी तक ही सीमित हैं। अभी तापसी पन्नु की एक फ़िल्म आई थी ‘गेम ओवर’ जिसमें उसे अंधेरे से डर लगता है। डॉक्टर मरीज़ को वीआर सेट लगाकर अंधेरे से लड़ने का अभ्यास कराता है।
टीवी पर एक विज्ञापन देखा होगा कि एक लड़के को आईआईटी में एडमिशन नहीं मिलता तो उसका पिता उसे अपनी दुकान पर काम करवाता है। लड़का इंटरनेट से सीखकर एक ड्रोन बनाता है और अंडे उठवा लेता है। पंचलाइन थी एक आईडिया, बदल दे आपकी दुनिया। यह बहुत सरल और शानदार उदाहरण है कि इंटरनेट के माध्यम से आप कुछ भी बना सकते हैं।
यदि पारंपरिक लैब की तुलना की जाए तो वह खर्चीली होती है, उपकरणों को सेट करना होता है, सुरक्षा का ध्यान रखना होता है, जगह की आवश्यकता पड़ती है आदि। और यह सब होने पर भी आपको स्वयं फिजिकली प्रजेंट होना पड़ता है। जो कि आजकल लॉकडाउन में संभव नहीं है। इसकी तुलना में वर्चुअल लैब में केवल आपको घर से परफार्म करना है। असुरक्षा का खतरा नहीं। इसके अलावा बस एक कंप्यूटर चाहिए और फिजिकल उपस्थिति तो बिल्कुल नहीं।
पहले हम लाइब्रेरी में जाकर किताब पढ़ते थे, उससे सीखते थे और लैब में जाकर प्रयोग करते थे। परंतु उसमें गलती होने की संभावनाएं थीं, आजकल ऑडियो विज़ुअल माध्यम से सीधे सीखते हैं। सच है कि एक चित्र एक हज़ार शब्दों के बराबर है और एक वीडियो दस हज़ार शब्दों के बराबर।
दूसरा उदाहरण लें कि एक बहुत ऊंची इमारत है जो अभी बनी नहीं है और आपको 50वीं मंज़िल पर अपना एक फ्लैट बुक करवाना है तो देखें कैसे? उसके दो मुख्य तरीके हो सकते हैं। पहला कि आपको हेलीकॉप्टर में बैठाकर ले जाएं और वहां से दिखाएं कि व्यू कैसा दिखेगा। दूसरा उसका एक वीआर सेटअप आँखों पर लगाकर आपको एहसास करा दें कि उस फ्लोर से आपको कैसा लगेगा। यह वर्चुअल रियलिटी के अंतर्गत आता है।
वर्चुअल लैब के उद्देश्य कई हो सकते हैं। डाटा कलेक्शन करना या दूर या दुर्लभ स्थानों पर शोध करना। अतः वर्चुअल को चार भागों में बांट सकते हैं;
पहला रिमोट लैब, इसमें हम दूर से कुछ डाटा भेज भी सकते हैं जैसे अंतरिक्ष अभियान।
दूसरा मेजरमेंट बेस्ड लैब, जैसे मौसम की जानकारी लेने।
तीसरा सिमुलेशन या मॉडलिंग बेस्ट लैब। जैसे ड्राइविंग या पायलट की ट्रेनिंग देना या कक्षा में कोई खास प्रयोग विधि सिखाना ।
चौथा ऑग्मेंटेड रियलिटी, जैसे एक सिस्टम और जोड़कर अपनी स्क्रीन पर ही कोई फोर्स लगा सकते हैं, जैसे फूंक मारकर विंड टरबाइन चलाना। अर्थात भारत में बैठकर अमेरिका के टेलिस्कोप से ऑस्ट्रेलिया का आसमान देख सकते हैं।
अंग्रेजी टीवी सीरियल ‘बिग बैंग थ्योरी’ में आपने ऐसा होते हुए देखा होगा कि वैज्ञानिक एक दूसरे को कंट्रोल हैंड ओवर कर देते हैं। वर्चुअल लैब सस्ती होती है, गुणवत्ता बढ़ाती है, प्रभावशाली है, सुरक्षित है, पर वहीं दूसरी ओर असल में न करने से जुड़ी आशंका रहती है। प्रेशर और टेंपरेचर का अंदाजा ना होने से अनुभव कम रहता है। जैसे मेडिकल स्टडी के लिए सिमुलेशन टेबल पर मेंढक का डिसेक्शन तो आसान है परंतु असल में मेंढक को काटने में कई लोगों को नानी याद आ जाती है।
दूसरी ओर रिमोट लैब का उदाहरण लें तो आपको ‘थ्री ईडियट्स’ फिल्म का आखिरी सीन याद दिलाता हूँ जिसमें एक गर्भवती महिला की प्रसव विधि दूर बैठी एक डॉक्टर निर्देश देते हुए कुछ इंजीनियर लोगों से करवाती है।
अब बात करते हैं वर्चुअल लैब के कुछ फ्लेटफॉर्म्स की। एमएचआरडी द्वारा लगभग सभी आईआईटी में वर्चुअल लैब की सुविधा है। यह उनकी उपलब्ध विशेषज्ञता के आधार पर है तथापि अन्यत्र आपको अपने से संबंधित प्रयोग अवश्य मिल सकते हैं। इसके अलावा एनआईटी सूरतकल, दयालबाग इंस्टिट्यूट, अमृता यूनिवर्सिटी, कॉलेज ऑफ पुणे, आईआईआईटी, हैदराबाद जैसे कुछ महत्वपूर्ण भारतीय संस्थान हैं, जहां पर आप वर्चुअल लैब पर काम कर सकते हैं।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्नेज यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया, एचपी वर्चुअल लैब मेलबॉर्न, व्हीलर सेंटर फॉर एक्सीलेंस, वेस्टर्न सिडनी, द ओपन साइंस लैबोरेट्री, यूके एमआईटी आदि भी हैं। अतः आप केवल किताब का कोरा ज्ञान ही न लें, बल्कि उन पर प्रयोग भी करें। अर्थात थ्योरेटिकल विषयों को पढ़ने के साथ प्रैक्टिकल भी आवश्यक है।
(लेखक माधव प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, ग्वालियर में मेकैनिकल इंजिनीयरिंग विभाग मेें प्रोफेेेेसर हैं)
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टीम मध्यमत
आदरणीय चन्द्रशेखर मालवी जी का लेख पढ़ा। जहां सभी प्रकार की सुविधाएं हैं वहां सब कुछ संभव है। परन्तु हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों के बच्चों के पास एंड्रॉयड फोन एवं उनमें डाटा तक की सुविधाएं नहीं हैं ऐसे में ये वर्चुअल प्रयोग शालाएं के कांसेप्ट सुविधा सम्पन्न शालेय संस्थाओं के कुछ विद्यार्थियों को ही लाभान्वित करेगी ; शेष?
सभी विद्यार्थियों को समान रूप से प्रभावी लाभ मिले इस प्रकार की शिक्षण प्रक्रिया अपनाई जाती है तब उचित होगा। अर्थात जिससे बहुतायत विद्यार्थी लाभन्वित हो ऐसा विचार विमर्श उचित होगा । धन्यवाद शुभकामनाएं
कमलेश कुमार दीवान
31/5/2020