अब टिड्डी दल को थाली बजाकर भगाने की नौबत…!

अजय बोकिल

उम्मीद नहीं थी कि देश के बड़े हिस्से में दो माह बाद ही थाली, ढोल बजाने की नौबत आ जाएगी। तब मुल्क में कोरोना भगाने और कोरोना वॉरियर्स की हौसला अफजाई के लिए तालियां और थालियां बजी थीं, अब मप्र सहित कई उत्तर पश्चिमी राज्यों में टिड्डी दलों को भगाने के लिए ढोल और यहां तक कि डीजे तक बजाना पड़ रहा है। पहले ही एक आपदा क्या कम थी, जो एक और आन पड़ी।

देश का दुर्भाग्य ये कि ‘विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था’ बनने की राह पहले कोरोना ने रोकी और अब टिड्डी दल कयामत बन कर कई राज्यों में फसलें और वनस्पति चट कर रहे हैं। इससे कितना भारी आर्थिक नुकसान हुआ है, इसका आकलन अभी होना है। हालांकि सम्बन्धित राज्यों की सरकारें और किसान कोरोना के साथ-साथ अब टिडडी दलों से भी जूझ रही हैं। हो-हल्ले के अलावा कीट नाशकों का छिड़काव भी किया जा रहा है। टिड्डे डरकर भागते भी हैं, लेकिन अपनी कीमत वसूल कर।

इस मायने में कोरोना और लोकस्ट (अंग्रेजी में टिड्डों का यही नाम है) अपने-अपने तरीके से काम कर रहे हैं, कोरोना मानव जाति के सफाए में लगा है, तो टिड्डी दल वनस्पतियों के। दोनों को पूरी तरह रोकने का कोई रामबाण इलाज किसी के पास नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक भारत पर बीते 27 सालों में टिड्डी दल का यह सबसे बड़ा हमला है।

यह भी अजब संयोग है कि जब दुनिया में कोरोना की आहट सुनाई दे रही थी, तकरीबन उसी समय अफ्रीका में टिड्डी दल हमले की तैयारी कर रहे थे। भारत पर जो टिड्डी दल का हमला हुआ है, वह पाकिस्तान की तरफ से हुआ है, जिसमें अरबों की तादाद में रेगिस्तानी टिड्डे राजस्थान होते हुए पंजाब, मप्र और यूपी में फसलें चट करते आगे बढ़ रहे हैं।

इसकी शुरआत राजस्थान के गंगानगर से हुई। उसके बाद जयपुर होते हुए यह मप्र और अब यूपी में घुस गए हैं। मध्य प्रदेश में मालवा-निमाड़ होते हुए अब ये टिड्डी दल बुंदेलखंड के छतरपुर, पन्ना, सतना होते हुए आगे निकले हैं। उधर यूपी में 10 जिलों में अलर्ट घोषित कर दिया गया है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार राहत की बात यह है कि अब ये टिड्डी दल 2-3 भागों में बंट गया है, जिससे नुकसान कम होने की उम्मीद है। दूसरे, मप्र जैसे ज्यादातर दो फसल लेने वाले राज्य में फिलहाल खेत खाली पड़े हैं।

टिड्डी दल का हमला एक प्राकृतिक आपदा है। टिड्डे ज्यादातर रेगिस्तानों में अरबों की तादाद में पैदा होते हैं। गर्म जलवायु इन्हें उड़ने की ऊर्जा देती है। ये झुंड में उड़ते हैं और इनके झुंड सैकड़ों किलोमीटर तक फैले हो सकते हैं। भारत पर जो हमला हुआ है, उस टिड्डी दल का आकार ढाई सौ वर्ग किलोमीटर का बताया जाता है। टिड्डे जहां हमला करते हैं, उस पूरे इलाके की फसल और अन्य वनस्पति को चट कर जाते हैं।

ये टिड्डी दल कयामत की तरह आसमान में उड़ते हैं और फसलों पर हमला बोल देते हैं। पश्चिम से आने वाले टिड्डी दलों का शिकार ज्यादातर गुजरात और राजस्थान राज्य ही होते रहे हैं। लेकिन इस बार मामला ज्यादा गंभीर है। मप्र सहित सभी प्रभावित राज्यों में लोकस्ट वॉर्निंग ऑर्गेनाइजेशन की तकनीकी टीम तथा क्षेत्रीय निवासियों एवं कृषकों से लगातार तालमेल बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं।

ग्रामीणों से कहा गया है कि वे टिड्डी दलों का रुख मोड़ने के लिए खूब शोर मचाएं, थालियां और बर्तन पीटें तथा पटाखे चलाएं। साथ ही स्प्रेयर से कीटनाशक रसायनों का छिड़काव करें। पहले यह भी खबर आई थी कि टिड्डी दल की अंतरराष्ट्रीय आपदा से निपटने के लिए भारत ने ईरान और पाकिस्तान से सहयोग की पेशकश की थी, लेकिन पाकिस्तान ने रुचि नहीं दिखाई।

अगर बाकी दुनिया की तुलना में देखें तो भारत पर टिड्डों के बहुत विनाशकारी हमले कम हुए हैं। इसलिए हमारी लोकस्मृति में टिड्डी दलों के कारण होने वाले विनाश के किस्से कम हैं। लेकिन लेकिन बाइबल और कुरान शरीफ में टिड्डी दलों के हमले का जिक्र है। मिस्त्र में इनका जिक्र तीन हजार साल पहले पिरामिड काल से है। इनमें टिड्डी दलों को बेहद खतरनाक जीव बताया गया है, जो फसलें नष्ट कर देते हैं। अरस्तू ने इनका वैज्ञानिक अध्ययन भी किया।

हमारे यहां भी टिड्डी दल के हमले को अकाल का लक्षण माना गया है। 1875 में अमेरिका में जिस टिड्डी दल ने हमला किया था वह 5 लाख 10 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला था। वैज्ञानिकों के अनुसार टिड्डी दलों के हमले एक निश्चित अवधि के बाद होते रहते हैं। टिड्डी दल भूखे की तरह हरियाली पर टूट पड़ते हैं और देखते-देखते हजारों हेक्टेयर में फसलें चट कर जाते हैं। जिसका दुष्परिणाम कई बार अकाल में होता है। वैसे कई अरब देशों में टिड्डों को शौक से खाया भी जाता है।

टिड्डी दल को रोकने और उन्हें मारने के‍ लिए कई नई तकनीकों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। इनमें ड्रोन तकनीक भी शामिल है। अफ्रीकी देश सोमालिया ने इसी साल जनवरी में बायोपेस्टिसाइड मेटारिथियम एक्रीडम नामक फफूंद का इस्तेमाल टिड्डी दलों को मारने के लिए किया। इन सबके बावजूद टिड्डी दलों के हमले को रोकना लगभग नामुमकिन है, जैसे कि कोरोना को। मनुष्य के हाथ में केवल नुकसान को कम करना है। कोरोना वायरस भले नया हो, लेकिन टिड्डी दल, उनके हमले और विनाश से हम वाकिफ हैं।

अपने देश की बात करें तो टिड्डी दल का हमला ‘दुबले और दो अषाढ़’ वाली स्थिति है। मानो ईश्वर हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहा है। कोरोना से पार पाना मुश्किल हो रहा है और अब टिड्डी दलों का विनाशकारी हमला। फर्क इतना है ‍कि टिड्डियां आकार में बड़ी और आंखों से साफ दिखती हैं, लेकिन कोरोना तो इतना महीन है कि उसे केवल इलेक्‍ट्रॉन माइक्रोस्क्रोप से ही देखा जा सकता है। एक कोरोना वायरस का आकार मात्र 0.0005 मिमी होता है।

एक और फर्क है। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से निपटने को लेकर हमारे यहां राजनीति भी खूब हो रही है, लेकिन टिड्डी दल के हमले ने अभी ऐसा कोई मौका नहीं दिया है। वो सभी राज्यों में एक-सा हमला कर फसलें साफ कर रहे हैं। प्रशासन की परेशानी है कि वह जानलेवा पीपीई किट पहन कर कोरोना को फैलने से रोकें या फिर स्प्रेयर, ढोल लेकर टिड्डी दलों को हांका लगाएं।

सबसे ज्‍यादा मुश्किल उन किसानों की है, जिनके खेतों में इस गर्मी के मौसम में भी कोई फसल खड़ी है। लोकोक्तियों में टिड्डी दल का हमला अनिष्टकारी माना गया है। खेती को लेकर ऐसी ही लोकोक्ति है- ‘मंगल सोम होय शिवराती, पछवा वाय बहै दिन राती, घोड़ा रोड़ा टिड्डी उड़ै, राजा मरै कि परलै परै’। जिस वर्ष महाशिवरात्रि सोमवार या मंगलवार के दिन पड़े और पछुवा हवा रात-दिन चले तो समझ लीजिए कि टिड्डी आएगी, राजा मरेगा और खेत सूखे के कारण बोए नहीं जाएंगे।

लोकोक्तियां लोगों के सामूहिक अनुभवों का निचोड़ होती हैं। टिड्डी दलों के बारे में भी ये लोकोक्ति भविष्यवाणी की तरह है। सचमुच ऐसा होगा या नहीं कोई नहीं जानता। वैसे भी यह दुआओं का समय है न कि बददुआओं का। आपदाओं से लड़ने के लिए भविष्यवाणियों के भरोसे रहने के बजाए संकल्प शक्ति की दरकार होती है।

कोरोना के मामले में देश इसी ताकत से लड़ रहा है। उस अदृश्य शत्रु की तुलना में टिड्डी दल क्या चीज है? खतरा इतना जरूर है कि टिड्डी दल कहीं फसलों के साथ घोषणाओं की फसल भी चट कर न जाएं।

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टीम मध्‍यमत

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