सिंधिया से छेड़छाड़ का मकसद क्‍या है?

राकेश अचल

कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया की याद भाजपा को सताये या न सताये] लेकिन कांग्रेसियों को जरूर सता रही है। उन्होंने दो महीने से लापता ज्योतिरादित्य सिंधिया का पता बताने और उनसे जनसेवा कराने वाले को इक्यावन सौ रुपये का इनाम देने का ऐलान किया है।

हालांकि ये कांग्रेस के अति उताही कार्यकर्ताओं की बचकानी कोशिश थी, लेकिन इससे सुर्खियां तो बनीं। सिंधिया भले न तिलमिलाए हों, किन्तु उनके समर्थक तो तिलमिलाए, उन्होंने सिंधिया की गुमशुदगी के पोस्टरों को फाड़ दिया। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मकसद भी शायद इसके बहाने सुर्खियां पाना ही था।

देश में अक्सर जन प्रतिनिधियों की अनुपलब्धता से नाराज कार्यकर्ता ऐसी हरकते करते रहते हैं। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हों या पूर्वमंत्री अनूप मिश्रा, सभी के खिलाफ ऐसे पोस्टर छपते-छपाते रहते हैं। वे जन प्रतिनिधि सौभाग्यशाली हैं जिनके खिलाफ इस तरह की हरकतें नहीं होतीं। इत्तफाक है कि भाजपा में शामिल होते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया भी देशव्यापी लॉकडाउन में फंस गए।

संयोग ही उन्हें दिल्ली ले गया, यदि वे ग्वालियर में होते तो शायद ये पोस्टरबाजी उनके खिलाफ न हो पाती। लॉकडाउन में सिंधिया ने अन्य नेताओं की तरह खुद को सियासत से दूर रखा। सिंधिया ने तो अपनी पोजीशन का लाभ लेते हुए किसी हज्जाम की सेवाएं भी दो महीने नहीं लीं।

सिंधिया के करीबी लोग बताते हैं कि सिंधिया ने लॉकडाउन में दाढ़ी और केश इतने बढ़ा लिए हैं कि यदि उन्हें पगड़ी बाँध दी जाये तो वे सरदार जी लगने लगें। लेकिन सिंधिया सरदार नहीं महाराज हैं और अपनी सीमित सल्तनत में वे महाराज बनकर ही रहेंगे।

कांग्रेसियों की बचकानी हरकत के बाद उनके स्टाफ ने सफाई दी और बताया कि सिंधिया ने इस संकट काल में मुख्यमंत्री सहायता कोष में 30 लाख रुपये का दान ही नहीं दिया, अपितु पीड़ितों को भी जरूरी सामग्री उपलब्ध कराई। सिंधिया सक्षम और समर्थ नेता हैं, वे गा-बजाकर शायद कोई काम नहीं करते। उनके डेढ़ दर्जन से ज्यादा न्यास हैं, जिनके माध्यम से वे जनसेवा करते रहते हैं।

हालांकि महल की ओर से इस मामले में सफाई देने की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन अब दे दी तो ठीक है। महाराज के लिए तरस रहे कांग्रेसियों की प्रतीक्षा की घड़ियां अब समाप्त होने ही वाली हैं। जैसे ही उपचुनाव की घोषणा होगी, सिंधिया अपने फ़ौज-फाटे के साथ अंचल में ही नजर आएंगे।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो दशक के राजनैतिक जीवन में ये पहला अवसर है, जब उन्हें दो मोर्चों पर एक साथ लड़ना पड़ रहा है। पहला मोर्चा उनकी मातृ संस्था कांग्रेस और दूसरी नयी सदस्‍यता देने वाली भाजपा। भाजपा नेतृत्व ने सिंधिया को स्वीकार कर लिया है, लेकिन भाजपा कार्यकर्ता भी उन्हें अपने सर पर उठा लेंगे, ये कहना भ्रामक है।

भाजपा में कार्यकर्ताओं का एक बड़ा धड़ा सिंधिया के लिए नतमस्तक होने को तैयार नहीं है। कम से कम पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया जैसे लोग तो सिंधिया का ध्वज नहीं उठाने वाले। पवैया की पहचान ही भाजपा में महल के विरोधी नेता के रूप में है। उनकी वजह से ही स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर से चुनाव लड़ना बंद किया था, क्योंकि पवैया के मुकाबले वे मात्र 25 हजार वोटों से जीते थे।

अपनी गुमशुदगी के पोस्टर लगने के बाद सिंधिया को कैसा लगा, ये वे ही जानें। और वे जब प्रकट होंगे तो जरूर इस बारे में कुछ न कुछ कहेंगे। लेकिन ये हकीकत है कि वे अब सवालों के घेरे में रहेंगे। भाजपा वाले भले ही अब मजबूरी में उनसे सवाल नहीं कर पाएंगे, किन्तु कांग्रेस को ये मौक़ा मिल रहा है कि वो सिंधिया से सवाल करे।

देखना ये होगा कि सिंधिया कांग्रेस के खिलाफ कितने आक्रामक रहते हैं। सिंधिया का अपना प्रभामंडल है, उसे आसानी से न खत्म किया जा सकता है और न उसका दोहन किया जा सकता है। ये काम सिंधिया खुद ही कर सकते हैं। उन्हें भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद अपने प्रभामंडल को प्रमाणित करने का अवसर, 24 विधानसभा सीटों का उपचुनाव देगा।

अच्छी बात ये है कि अब सिंधिया अपने सियासी उत्थान-पतन को लेकर चिंतन करने के लिए अकेले नहीं हैं। अब उनका बेटा भी सियासत में कदम रखने लायक हो गया है। मदद करने लायक हो गया है। ज्योतिरादित्य की स्थापना के साथ ही उनके बेटे महाआर्यमन सिंधिया की सियासी लांचिंग भी अब भाजपा की जिम्मेदारी हो गयी है।

महाआर्यमन सिंधिया आज नहीं तो कल यानि 2024 में लोकसभा टिकट के दावेदार हो सकते हैं। आने वाले चार साल यदि सिंधिया भाजपा में बने रहे, तो हम सब देखेंगे कि आर्यमन की लांचिंग कैसी होती है?

अंत में मैं बता दूँ कि सिंधिया कि गुमशुदगी पर घोषित इनाम किसी को नहीं मिलेगा, क्योंकि इनाम घोषित करने वाले कांग्रेसी ही अभी भ्रमित हैं। उनके साथ यदि कांग्रेस का कोई कोरोना नेता खुलकर खड़ा हो जाता, तो शायद बात बनती भी। अभी तो कांग्रेस का ये पटाखा चलने से पहले ही फुस्स हो गया।

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टीम मध्‍यमत

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