अरुण पटेल
पन्द्रह साल बाद ‘वक्त है बदलाव का’ के नारे के साथ सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी ने अपने ही अन्दर धीरे-धीरे व्यापक होते असंतोष और खींचतान के चलते अपनी अच्छी-खासी चलती हुई सरकार गंवा दी और सिर्फ 15 माह ही सत्ता में रह पाई। अब उपचुनावों के बाद प्रदेश में पुन: सत्ता में आने का हौसला लिए पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। हालांकि ऐसा लगता है कि अभी भी पार्टी के अन्दर तालमेल का अभाव है और अपनी ढपली, अपनी राग अलापने के वर्षों से आदी रहे बड़े नेता अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए इस पुरानी आदत को नहीं छोड़ पा रहे हैं।
चाहे प्रत्याशी चयन का मामला हो या फिर जिला कांग्रेस अध्यक्षों के बदलाव का सवाल हो, इसको लेकर भी पार्टी में मतभेद उभरे हैं। कमलनाथ चाहते हैं कि कभी पार्टी में रहे लेकिन धीरे-धीरे राजनीतिक फलक पर अप्रासंगिक हुए नेताओं और भाजपा के अन्दर 22 लोगों के प्रवेश के बाद उसके कुछ असंतुष्ट हुए लोगों को उम्मीदवार बनाकर उपचुनावों में उतारा जाए। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या कमलनाथ आयातित और कुछ फ्यूज बल्बों के सहारे अपनी चुनावी संभावनाओं को चमकीला बनाना चाहते हैं। लेकिन इस पर जिस प्रकार असंतोष उभरकर सामने आ रहा है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि ‘रस्सी जल गयी लेकिन बल नहीं गये।’
जहां तक उपचुनावों की रणनीति का सवाल है, कांग्रेस ने दलबदलुओं के कारण लोकतांत्रिक मूल्यों को क्षति पहुंचाने तथा खरीद-फरोख्त से सरकार को गिराने का मुद्दा जोरशोर से उठाने का मानस बनाया है। वहीं भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ने वाले और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पार्टी छोड़ने वाले विधायकों ने भी अपने दलबदल का औचित्य प्रतिपादित करने के लिए इस बात को उभारने के संकेत दे दिए हैं कि कमलनाथ के पास मंत्रियों व विधायकों से मिलने का समय नहीं था और दिग्विजय सिंह सरकार चला रहे थे।
यह विधायक अब कहने लगे हैं कि ऐसे हालात में हमारे सामने सरकार गिराने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि चुनावी वायदे पूरे नहीं हो पा रहे थे और न ही हमारे क्षेत्रों में कोई काम हो रहा था। इस प्रकार उपचुनावों में जीत के लिए जिन प्रचारात्मक हथियारों का खुलकर प्रयोग होने वाला है, उनको दोनों पार्टियां पैना करने में लगी हैं। उपचुनाव आते-आते एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप किस सीमा तक पहुंच जायेंगे, नहीं कहा जा सकता।
हो सकता है मर्यादा की सारी सीमायें तार-तार हो जायें। कांग्रेस इस बात को जोरशोर से उठायेगी कि विधायकों की खरीद-फरोख्त कर उनकी सरकार को गिराया गया है। सरकार ने पन्द्रह माह में प्रदेश में वास्तविक औद्योगीकरण का माहौल बनाया तथा अतिक्रमणकारी माफियाओं व मिलावटखोरों के साथ युद्ध छेड़ दिया था। चूंकि इनमें से अधिकांश के तार पन्द्रह साल तक सत्ता में रहने के कारण भाजपा से जुड़े रहे थे, इसलिए इस अभियान के जोर पकड़ने से वे लोग भयभीत थे तथा विभिन्न घपले-घोटालों की जांच निर्णायक मोड़ पर पहुंचने वाली थी। इसी कारण येन-केन-प्रकारेण दलबदल कराकर सरकार को गिराया गया।
इस प्रचार की काट के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने पिछले छ: माह में कमलनाथ सरकार द्वारा किए गए विभिन्न घोटालों की जांच कराने का फैसला किया है। यह निर्णय इसलिए लिया गया है कि ताकि कांग्रेस के आरोपों का पूरी तरकत से जवाब दिया जा सके।
दलबदल और खरीद-फरोख्त को कांग्रेस एक बड़ा मुद्दा बनाने जा रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया के माध्यम से 22 विधानसभा क्षेत्रों, जहां उपचुनाव होना हैं, के मतदाताओं से भावनात्मक अपील करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि लोकतंत्र को बचाने बागियों को हराना जरुरी है। ताकि एक मिसाल कायम हो सके और फिर कोई भी पार्टी खरीद-फरोख्त न कर सके।
बागी हुए 22 पूर्व विधायकों पर निशाना लगाते हुए दिग्विजय ने उनके क्षेत्रों की जनता से अपील की है कि इन विधायकों को बुरी तरह से हरायें। सिंह ने यहां तक कहा कि अगर आपको कांग्रेस को खत्म ही करना है, तो इसके बाद चुनाव में आपके पास मौका होगा और उस समय हराकर कर हिसाब बराबर कर देना, लेकिन लोकतंत्र को बचाने और वोट की कीमत बरकरार रखने का यह आखिरी मौका है।
यदि यह विधायक जीत गए तो एक गलत परंपरा चल पड़ेगी। विधायकों की मंडी लगेगी और बड़े नेता दलाल बन बैठेंगे। दिग्विजय ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि चाहे आप कांग्रेस समर्थक हों या भाजपा के, इन 22 पूर्व विधायकों को हराना देश के लोकतंत्र के लिए जरुरी है। क्योंकि यदि ये जीत गए तो यह परम्परा हर पार्टी में चल पड़ेगी। जनता चुनाव में वोट दे या न दे, विधायक खरीदो और सरकार बनाओ। राजनीतिक पार्टियां जनता के दरवाजे पर जाने के बजाय विधायक खरीदना ज्यादा आसान काम मानेंगी और करेंगी, जनता के वोट की अहमियत ही खत्म हो जायेगी।
कमलनाथ की योजना पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को सुरखी और उनके ही नेता रहते उपनेता रहे चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, जो भाजपा में चले गये थे, को मेहगांव, फूलसिंह बरैया को ग्वालियर या भिण्ड जिले की किसी सीट से, हरिवल्लभ शुक्ला को पोहरी विधानसभा सीट से और प्रेमचन्द्र गुड्डू को स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट के खिलाफ सांवेर सीट से चुनाव मैदान में उतारने की है।
इसके अलावा भाजपा के कुछ बड़े नेताओं का कमलनाथ से संपर्क होने का दावा किया जा रहा है। कांग्रेस के कुछ चुनिंदा नेताओं के बीच प्रत्याशी चयन को लेकर जो चर्चाएं हुयीं उनमें विरोध के स्वर भी उभर कर सामने आये और अंतत: लोगों को शान्त करने के लिए कमलनाथ को यह कहना पड़ा कि अभी किसी उम्मीदवार का नाम तय नहीं किया गया है। राकेश का तीव्र विरोध अजय सिंह ने किया। भले ही उन्होंने इस बात की पुष्टि न की हो, लेकिन इसकी पक्की जानकारी है कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि यदि राकेश चतुर्वेदी को टिकट दिया जाता है तो फिर वे पार्टी छोड़ना अधिक पसंद करेंगे।
जहां तक अजय सिंह का सवाल है, उनकी नाराजगी स्वाभाविक है, क्योंकि विधानसभा के अन्दर जिस दिन उन्होंने शिवराज सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखने की सूचना दी थी उसके बाद राकेश दलबदल कर भाजपा में चले गये थे। पहले तो वे भाजपा में उपेक्षित रहे और बाद में 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा टिकट पर भिण्ड से चुनाव हार गए।
मेहगांव से उनके भाई मुकेश चतुर्वेदी भाजपा विधायक रह चुके हैं, इसलिए उन्हें कांग्रेस अब मेहगांव से उम्मीदवार बनाना चाहती है। जब अजय सिंह ने विरोध किया तो उनका समर्थन पूर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह और भिण्ड जिला कांग्रेस के अध्यक्ष ने भी किया। राकेश विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नजदीक चले गये और सिंधिया के सामने एक चुनावी सभा में कांग्रेस में प्रवेश ले लिया, लेकिन पार्टी स्तर पर मामला अभी अनसुलझा है, इसी आधार पर उनका विरोध हुआ कि ये सिंधिया के काफी नजदीक हैं।
हरिवल्लभ शुक्ला और प्रेमचंद गुड्डू की उम्मीदवारी का भी विरोध किया गया। गुड्डू का विरोध कमलनाथ के खास माने जाने वाले पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने भी किया। गुड्डू यह संकल्प ले चुके हैं कि इस चुनाव में उनका पहला मकसद तुलसी सिलावट को हराना है। उनका कहना है कि वे सांसद व विधायक रह चुके हैं, और पद की कोई विशेष चाह नहीं है।
और यह भी
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व काबीना मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने कांग्रेस में चल रहे असंतोष और विरोधी स्वरों का औचित्य यह कहते हुए प्रतिपादित करने की कोशिश की है कि यदि कोई नेता किसी तरह का असंतोष प्रकट करता है तो यह संभव है कि वह पार्टी के हित में कुछ अच्छा करना चाहता है। उनकी अपनी कोई पीड़ा हो सकती है जिसे वह पार्टी फोरम पर रखकर पार्टी का भला करना चाहता है।
जहां तक उम्मीदवारों का सवाल है, जनता की राय में जो उपयुक्त उम्मीदवार होगा उन्हें ही टिकट दी जायेगी। उनका यह भी दावा है कि सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चम्बल क्षेत्र में 16 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है और एक भी सीट भाजपा को जीतना मुश्किल है, क्योंकि इस क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं को महल की गुलामी से मुक्ति मिली है और वह पूरी ताकत से कांग्रेस को जितायेगा।
(लेखक सुबह सवेरे के प्रबंध संपादक हैं।)
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