टूर ऑफ ड्यूटी’: सेना का अभिनव प्रयोग और कुछ सवाल

अजय बोकिल

इस वक्त जबकि सारा देश कोरोना वायरस से जूझ रहा हो, तब एक चौंकाने वाली खबर आई कि भारतीय सेना फौज में भर्ती के एक नए प्रस्ताव ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ ( टीओडी) पर गंभीरता से विचार कर रही है। मीडिया को इसकी जानकारी चीफ आफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने दी। लोग इस पहल को ठीक से समझ पाते इसके पहले ही जाने-माने उद्योगपति आनंद महिन्द्रा का बयान आया कि वे सेना के ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ में प्रशिक्षित नौजवानो को अपने यहां खुशी-खुशी नौकरी देंगे।

सेना के इस प्रस्ताव पर कोई राजनीतिक प्रतिक्रिया अभी नहीं आई है, लेकिन भारतीय सेना के कई पूर्व जनरलों ने इसे समयानुकूल और जरूरी कदम बताया है। ऐसे में यह जिज्ञासा बढ़नी ही थी कि यह ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ क्या है? इसे क्यों लाया जा रहा है? देश के लिए इसकी क्या उपयोगिता है? यह केवल सेना की जरूरत है या फिर इसके ‍पीछे कोई परोक्ष राजनीतिक मंशा भी है?

‘टूर ऑफ ड्यूटी’ से मोटे तौर पर तात्पर्य अस्थायी या अल्पावधि के लिए सैनिक मिशन में काम करना है। इसमें सिविलियन (असैनिक) भी हो सकते हैं। अमेरिका में 1965 में विएतनाम युद्ध के समय जिन सेनाधिकारियों की तैनाती वहां हुई, उसे ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ कहा गया। इसके बाद वहां इसी थीम पर और इसी नाम से टीवी ‍सीरियल भी बने और काफी लोकप्रिय हुए। यह बात अलग है कि सालों चले इस युद्ध में अंतत: अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी और विएतनामियों की जीवटता की जीत हुई।

अलबत्ता भारत में इस ढंग का यह पहला प्रयोग होगा। इसे केन्द्र सरकार की अंतिम मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन माना जा रहा है कि वह मिल जाएगी। इस ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के तहत सेना में युवाओं की तीन साल के लिए अस्थायी भर्ती होगी। यह भर्ती अफसरों और जवानों के स्तर पर होगी। प्रयोग के तौर पर पहली बैच में 100 अफसर व 1 हजार सैनिक भर्ती किए जाएंगे। इस दौरान वो सेना की फ्रंटलाइन ऑपरेशन यूनिट में काम कर सकेंगे।

इस तरह वे सेना की कठिन, व्यापक और चुनौतीपूर्ण कार्यपद्धति से वाकिफ होंगे, वहीं अपनी इस ट्रेनिंग और अनुभव का इस्तेमाल वो जीवन में बाकी कॅरियर में भी कर सकते हैं। वैसे अभी देश में सेना में सीमित अवधि तक कार्य करने के लिए शॉर्ट सर्विस कमीशन है। जिसके तहत युवा अधिकारी के रूप में 10 से 14 वर्ष तक सेना में नौकरी कर सकते हैं। साथ ही सेना में आंशिक सेवाएं देने वाले सिविलियनों के लिए टेरिटोरियल आर्मी भी है।

हमारे यहां करीब 13 लाख प्रशिक्षित और नियमित पूर्णकालिक सेना है। लगभग 10 लाख केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक तथा सशस्त्र पुलिस बल हैं। इनमें राज्यों के सशस्त्र पुलिस बलों को भी गिनें तो उनकी संख्या भी लगभग 12 लाख के आसपास होती है। साथ ही करीब 11 लाख एनसीसी के माध्यम से सैन्य प्रशि‍क्षण प्राप्त करने वाले युवा भी हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतनी बड़ी तादाद में फौज और पुलिस होने बाद भी ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ (ओटीडी) सैन्य अफसरों और सैनिकों की और क्या जरूरत है?

घोषित तौर पर इसके पीछे मुख्य कारण देश में अनुशासित और सक्षम युवाओं को तैयार करना है, जो सेना की कार्यपद्धति से परिचित हों तथा कोई भी चुनौतीपूर्ण कार्य करने में सक्षम हों। इससे उनको ज्यादा फायदा होगा, जो सैनिक प्रशिक्षण तो प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन सेना में स्थायी रूप से अपनी सेवाएं नहीं देना चाहते। उधर सेना को फायदा ये होगा‍ कि वो कम खर्च में अधिकारी और सैनिक भर्ती कर सकेगी। इनके वेतन और पेंशन भत्तों ‍आदि पर सरकार को तुलनात्मक रूप से काफी कम राशि खर्च करना पड़ेगी।

बताया जाता है कि ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के तहत एक अधिकारी को 80 से 90 हजार तथा एक जवान को 30 से 40 हजार वेतन मिलेगा। यह खर्च स्थायी अधिकारी पर होने वाले खर्च से काफी कम होगा। इसके लिए चयन एसएसबी परीक्षा के मार्फत ही होगा। शुरू में टूर ऑफ ड्यूटी के तहत 100 अधिकारी और 1 हजार जवान भरती किए जाने का प्रस्ताव है।

सेना में टीओडी करने के बाद ये लोग निजी क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। इससे देश में अनुशासित मैन-पॉवर बढ़ेगा। इस बचत का उपयोग सरकार सेना के लिए आधुनिक हथियार खरीदने में कर सकती है। इस बारे में सेना के रिटायर्ड ले. जनरल सैयद अता हसनैन का कहना है कि भारतीय सेना को उन डायनेमिक पैटर्न की जरूरत है, जो सामाजिक माहौल और बजट पैरामीटर पर निर्भर करते हैं। दुनिया भर की प्रोफेशनल आर्मी में मैन कैडर छोटा और सपोर्ट कैडर बड़ा होता है। इसका अनुपात 1:5 के आसपास होता है, लेकिन भारत में इसका उलटा है।

‘टूर ऑफ ड्यूटी’ में देश के आम नागरिकों को भी सेना में तीन साल सर्विस करने का मौका मिल सकेगा। कुछ आला अधिकारियों का मानना है कि इससे देश को अच्छे और अनुशासित नागरिक मिलेंगे और सेना को यंग ऑफिसर और सोल्जर्स। वर्तमान में सेना में सीमित सेवा के लिये शॉर्ट सर्विस कमीशन का प्रावधान है। इसके तहत युवा सेना में 10 से 14 वर्ष तक अपनी सेवाएं दे सकते हैं।

लेकिन ‘टूर ऑफ डयूटी’ इससे अलग है। सेना में अभी भी अफसरों की भारी कमी है। इसका कारण यह है कि सेना में भर्ती के मानदंड कड़े हैं। और वो इसमें कोई ढील नहीं देती। लिहाजा योग्य प्रत्याशियों को ही भर्ती किया जाता है। लेकिन ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के अंतर्गत सेना में केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक तथा केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों से भी लोगों को लिया जा सकता है। इसे तीन वर्षीय अस्थायी सेवा योजना भी कहा जा सकता है।

कुछ लोग इसे ‘गेम चेंजर’ मान रहे हैं। इस अर्थ में कि सेना आम सिविलियनों को अपने 13 लाख फौज के करीब लाना चाहती है। ताकि लोग सेना के काम, उसकी चुनौतीपूर्ण जीवन शैली, कठोर अनुशासन, समर्पण और देशनिष्ठा को समझें, उसे अनुभव करें। संक्षेप में कहें तो ये युवा सैन्य जीवन का अनुभव करें।

सेना को लाभ यह है कि देश में बड़े पैमाने पर ऐसे युवा तैयार होंगे, जो किसी भी संकट की घड़ी में सेना में सेवाएं देने के लिए तैयार रहेंगे। भारतीय सेना की कठोर ट्रेनिंग पूरी दुनिया में जानी जाती है। इससे युवाओं में आत्मविश्वास, टीम वर्क, साहस और तनाव प्रबंधन की क्षमता विकसित होगी।

कुछ लोग इसे सेना के माध्यम से देश में ‘राष्ट्रवाद और देशप्रेम के पुनरुत्थान’ की कोशिश के रूप में देख रहे हैं। संभावना इस बात की भी है कि ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ के बहाने देश में सभी के लिए अनिवार्य सैन्य सेवा का कानून भी लाया जा सकता है। डर इस बात का भी है कि कहीं यह देश के सैनिकीकरण की अघोषित शुरूआत तो नहीं है? क्योंकि प्रस्ताव भले सेना का हो, मंशा सरकार की हो सकती है।

भारतीय सेना के प्रोफेशनलिज्म, साहस, वीरता और कठोर अनुशासन पर कोई प्रश्नचिन्ह है ही नहीं। लेकिन सरकार परोक्ष रूप से इसका राजनीतिक लाभ भी ले सकती है। जहां तक देश में अनुशासित, साहसी और देशभक्त युवाओं की जरूरत है तो सेना का ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ इसमें मदद ही करेगा। फिलहाल तो इसे सेना का अभिनव प्रयोग ही मानें। आगे-आगे देखिए होता है क्या?

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