मंदिरों में सोना: कहा चह्वाण ने पर मंशा मोदी सरकार की भी वही है…

अजय बोकिल

एक सही मुद्दा गलत वक्त पर उठाने का हश्र क्या होता है, इसे देश के मंदिरों में जमा सोने के जनहित में इस्तेमाल पर छिड़े गैर जरूरी राजनीतिक विवाद से समझा जा सकता है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चह्वाण ने दो दिन पूर्व ट्वीट किया कि देश में धार्मिक ट्रस्टों के पास एक करीब खरब डॉलर मूल्य का सोना पड़ा है। सरकार को इस सोने का इस्‍तेमाल कोरोना संकट से निपटने में करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस आपातकालीन स्थिति में सोने को कम ब्याज दर पर स्वर्ण बांड के माध्यम से उधार लिया जा सकता है।

इस ट्वीट के बाद भाजपा प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा ने पलटवार कर कांग्रेस नेताओं की तुलना मुगल आक्रमणकारियों से कर दी। उन्होंने कहा कि मुगलों (इसमें तुर्क और अफगान आक्रांता भी शामिल हैं), ईस्ट इंडिया कंपनी और सोनिया की कांग्रेस में ज्यादा अंतर नहीं है। क्योंकि दोनों ने भारत की धन-सम्पत्ति को लूटा। पात्रा ने कहा कि कांग्रेस हिंदुओं से नफरत करती है। पूर्व भाजपा सांसद किरीट सोमैया ने चव्हाण से पूछा कि क्या ऐसी मांग उठाने के लिए उन्हें सोनिया गांधी ने कहा है? क्या यह कांग्रेस पार्टी का स्टैंड है?

उधर चह्वाण को एक फिल्म निर्माता सुभाष घई का साथ मिला। घई ने ट्वीट कर मंदिरों से अपील की कि संकट की इस घड़ी में वे अपना 90 फीसदी सोना दान क्यों नहीं कर देते, ताकि गरीबों की मदद हो सके। इस मुद्दे पर मचे बवाल के बाद चह्वाण को कहना पड़ा कि यह उनकी निजी राय है। लेकिन चह्वाण वह नहीं कह पाए कि जो उन्हें कहना चाहिए था कि उनकी बात की शुरूआत तो मोदी सरकार ने पांच साल पहले स्वर्ण मौद्रीकरण योजना (जीएमसी) से कर दी थी। इसके बाद देश के कुछ बड़े मंदिरों ने अपना करीब 15 टन सोना बैंकों में रखवा भी दिया है। हालांकि तब इसी विपक्ष ने आरोप लगाए थे कि मोदी सरकार की नजर देश के हिंदू मंदिरों के स्वर्ण भंडार पर है।

यह सवाल काफी समय से उठाया जाता रहा है कि देश के मंदिरों में जमा धन-सम्पत्ति और खासकर सोने का व्यावहारिक उपयोग क्या है, सिवाय इस बात से खुश होने के कि हमारे मंदिरों में सैंकड़ों टन सोना जमा है। जो सोना रखा है, वह भी केवल आभूषण के रूप में भगवान की प्रतिमा पर चढ़ता है। चूंकि भक्तों की श्रद्धा अनंत है, इसलिए वह सोने के रूप में बढ़ती ही जाती है।

हालांकि देश के कई मंदिर ट्रस्ट के रूप में मंदिरों का तथा कई संस्थाओं का संचालन करते हैं। यह सोना एक दृष्टि से उनकी सम्पन्नता की जमानत भी है। चूंकि वह भक्तों द्वारा भगवान को अर्पण किया जाता है, इसलिए उस पर आस्था का एक आवरण हमेशा चढ़ा रहता है। लिहाजा जब भी मंदिरों के सोने को बाहर लाने, उसका इस्तेमाल पूंजी के रूप में करने अथवा उसके मौद्रीकरण की बात आती है तो प्रखर विरोध शुरू हो जाता है। माना जाता है कि सरकार अब मंदिरों को भी नहीं छोड़ना चाहती।

मोदी सरकार भी 2015 में गोल्ड मॉनिटाइजेशन स्कीम (जीएमसी) इसी उद्देश्य से लाई थी कि मंदिरों में जमा पड़े सोने का निवेश देश की आर्थिक प्रगति में किया जा सके। यह अकूत खजाना प्रवहमान पूंजी में बदले। लेकिन उस योजना का स्वरूप और प्रक्रिया कुछ ऐसी थी कि लोगों ने उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी। पिछले साल रिजर्व बैंक ने इसको और सरलीकृत करते हुए इसमें निजी तथा संस्थाओं के पास पड़े सोने को भी शामिल किया, फिर भी योजना ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुई। कारण वही है कि देश के लोगों को सोने के मामले में बैंकों पर भी पूरा भरोसा नहीं है।

इसके विपरीत वो मंदिरों में आंख मूंदकर (इसमें दो नंबर की कमाई भी होती है) सोना चढ़ाते हैं, भेंट करते हैं तो शायद इसीलिए कि वह भगवान की रक्षा में पवित्र हो जाता है, सु‍रक्षित रहता है। यह बात अलग है कि आज देश के ये तमाम अमीर मंदिर लॉक डाउन में अपने स्टाफ को वेतन भी नहीं दे पा रहे, क्योंकि उनके पास टनों सोना भले पड़ा हो, लेकिन नकदी से हाथ खाली हैं।

यह स्थिति तब है, जब गैर सरकारी तौर पर दुनिया का सबसे बड़ा स्वर्ण भंडार शायद भारत में ही है, जो करीब 22 हजार टन बताया जाता है। भारतीयों का स्वर्ण प्रेम जगजाहिर है। वर्ष 2019 में ही हमने 831 टन सोना आयात किया। इसका चौथाई हिस्सा हर साल तस्करी से देश में आता है। भारतीय रिजर्व बैंक के पास 618 टन सोना है। हिंदू मंदिरों में तो सोने का खजाना सदियों से हैं। ये खजाना देवताओं के आभूषणों, सिक्कों और बिस्कुटों के रूप में संचित होता रहा है।

सनातन परंपरा में देवताओं को चढ़ावा चढ़ाने का रिवाज है, जो भगवान के प्रति कृतज्ञता भाव, पुण्य प्राप्ति की आकांक्षा तथा मंदिरों को आर्थिक मदद के मकसद से अर्पित किया जाता रहा है। विदेशी आक्रांताओं की नजर इन पर पहले से रही है। हमारे कई मंदिरों को इसी कारण से लूटा भी गया। अलबत्ता दक्षिण के मंदिर तुलनात्मक रूप से बहुत ज्यादा संम्पन्न हैं, जिन्हें बहुत कम लूटा गया। अनुमान है कि देश के तमाम मंदिरों में करीब 3 हजार टन सोना जमा है, जो रिजर्व बैंक के भंडार की तुलना में तीन गुना है। अकेले तिरुपति बालाजी ट्रस्ट के पास ही 3 टन सोना है।

बहरहाल चह्वाण ने जो कहा उसका आशय यही था कि मंदिरों में ‘डंप’ पड़े सोने को नकदी में बदल कर लोगों की मदद की जाए। क्योंकि कोरोना लॉक डाउन ने देश में अभूतपूर्व आर्थिक संकट पैदा कर दिया है। सरकारों की आय शून्य है और हर वर्ग उनसे मदद की गुहार लगा रहा है। सबसे दयनीय और पीड़ादायक स्थिति उन लाखों प्रवासी मजदूरों की है, जिनके पास न खाने को रोटी हैं और न जाने को साधन हैं। उनके लिए हमारे मंदिरों के स्वर्ण भंडार भरपूर होने और सरकारों द्वारा करोड़ों के पैकेज घोषित करने का भी कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि उन्हें जो तत्काल चाहिए, वो कोई नहीं दे पा रहा है या जो दिया जा रहा है, वह बिल्कुल अपर्याप्त है।

ऐसे में यह सुझाव कि मंदिरों में जमा सोने का निवेश आर्थिक गतिविधियों में हो, कतई गलत नहीं है। क्योंकि जन की सेवा भी जनार्दन की सेवा ही है। मोदी सरकार ने भी ‘स्वर्ण मौद्रीकरण योजना’ में सोने के तीन विकल्प दिए थे। इसके तहत सोने को बैंकों में जमा करके ब्याज कमाएं या सोने के बांड खरीदें जो बाद में बेचे जा सकते हैं। मंदिरों और अन्य संस्थाओं के पास निष्क्रिय पड़ा यह सोना, सोने का आयात खर्च घटा सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा बचेगी।

हालांकि इस बारे में मंदिरों की भी अपनी शंकाएं हैं। त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड का कहना है कि उन्होंने भारत चीन-युद्ध के समय तत्कालीन केन्द्र सरकार को आभूषण दान किए थे, लेकिन बदले में उन्हे सोने की सिल्लियां मिलीं। सिल्लियों को पूर्ववत आभूषणों में बदलना आसान नहीं है, क्योंकि कई आभूषण तो प्राचीन कारीगरी के नायाब नमूने हैं।

एक पुरानी मान्यता यह भी है कि भगवान को चढ़े सोने को ब्याज पर चलाना धर्मानुकूल नहीं है। इसी बीच कहते हैं कि तिरुपति ट्रस्ट ने सोने के जेवरों के कुछ हिस्से को 22 कैरेट के सिक्कों में ढालकर उन्हें भक्तों को बेचना शुरू कर दिया है। साथ ही जौहरियों को सोना उधार देकर ब्याज भी कमाया जाता है।

चह्वाण की गलती यह है कि उन्होंने ऐसे मौके पर ‘स्वर्ण-राग’ छेड़ा है कि जब सरकार कोरोना क्राइसिस की चुनौतियों से ध्यान हटाने के लिए खुद नए मुद्दों की तलाश में रहती है। मंदिर-स्वर्ण-निवेश के सुझाव ने असल मुद्दे को कांग्रेस के हिंदू विरोध और सोनिया भक्ति से जोड़ने का ‘स्वर्णिम अवसर’ भाजपा को दे दिया है। वरना मोदी सरकार भी करना वही चाह रही है, जो चह्वाण ने कहा है।

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टीम मध्‍यमत

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