मुरैना से आदर्श गुप्ता की खास रपट
पूरे ग्वालियर चम्बल सम्भाग में हर किसी के मन में इन दिनों एक ही सबाल उथल पुथल मचाये है कि सिंधिया और उनके समर्थक बागी विधायको तथा दिग्विजयसिंह खेमे के विद्रोही एंदल सिंह कंसाना सहित उन तीन विधायकों का भविष्य क्या होगा जिन्होंने बगावत करके कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिराई थी। सिंधिया गुट के 6 लोग मंत्री थे उन्होंने अपना मंत्री पद भी ठुकरा दिया था।
वायदे के अनुसार भाजपा को उन 6 को तो मंत्री बनाना ही है, दिग्विजयसिंह खेमे के एंदल सिंह कंसाना को भी उन्हें मंत्री बनाना है। तीन निर्दलीयों ने भी उनका साथ दिया उनमें से बसपा की रामबाई भी मंत्री पद की दाबेदार हैं।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने लंबा इंतजार कराने के बाद 21 अप्रैल को 5 लोगों को मंत्री बनाया जिनमें सिंधिया खेमे के 6 में से 2 लोग तुलसी सिलाबट और गोविंदसिंह राजपूत शामिल थे। बाकी 4 लोग और कमलनाथ मंत्रिमण्डल की तरह शिवराज सिंह के मंत्रिमंडल में भी पहली ही बार में मंत्री बनने की चाह रखने वाले एंदल सिंह कंसाना को कोई मौका नहीं मिला। न बसपा की रामबाई या दूसरे 2 निर्दलीयों में से किसी को मंत्री बनाया गया।
21 अप्रैल के बाद से इन सभी के इंतजार का जो दौर शुरू हुआ वह अभी तक खत्म नहीं हुआ है। सबसे बड़ा सवाल है कि यह खत्म कब होगा? क्या इस वेटिंग का कोरोना लॉक डाउन से कोई लेना देना है? जवाब बहुत आसान है कि इसका लॉक डाउन से कोई लेना देना नहीं है। यह सोची समझी रणनीति है जिसके पीछे एक नहीं कई कारण हैं।
सिंधिया का भविष्य
विधायकों के भविष्य से पहले इस गुट के मुखिया ज्योतिरादित्य सिंधिया के भविष्य को लेकर भी दो बातें करना जरूरी है। सिंधिया की बगावत और कोरोना का प्रकोप एक साथ शुरू हुए। तब इस लॉक डाउन की किसी ने कल्पना नहीं की थी, लेकिन बदकिस्मती से जब राज्य सभा के चुनाव होने थे तभी कोरोना का प्रकोप फैल गया और चुनाव स्थगित करने पड़े जो आज तक स्थगित हैं। और कब तक रहेंगे कहा नहीं जा सकता। राज्य सभा से चुने जाने के बाद ही सिंधिया को केंद्र में मंत्री पद मिलता जिसका शायद उनसे वायदा भी किया गया है। नियमानुसार यह जरूरी नहीं है कि सिंधिया पहले सांसद बनें फिर मंत्री बनें। प्रधानमंत्री चाहें तो 6 महीने तक उन्हें बिना सांसद बने भी मंत्री बना सकते हैं, लेकिन मोदी जी ने अब तक ऐसा चाहा नहीं है। प्रधान मंत्री की चाहत न चाहत के अलावा भी कुछ मुश्किलें हैं जो सिंधिया के मंत्री बनने की राह में रुकावट बनी हुई हैं।
कांग्रेस ने सिंधिया को दो बार मंत्री बनाया लेकिन उन्हें राज्यमंत्री ही रखा। सूत्रों की मानें तो सिंधिया मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनवाने के इनाम में मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनना चाहते हैं। जबकि प्रधानमंत्री उन्हें राज्यमंत्री बनाना चाहते हैं। ज्यादा से ज्यादा स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री। यही पेच फंसा है। सिंधिया उस कैबिनेट में राज्य मंत्री कैसे बन सकते हैं जिसमें ग्वालियर से सांसद नरेंद्र सिंह तोमर न केवल कैबिनेट मंत्री हैं बल्कि कई भारी भरकम मंत्रालय भी संभाल रहे हैं। अब मोदी जी के लिए नरेंद्र सिंह तोमर कितने भी महत्वपूर्ण हों, ग्वालियर के पूर्व महाराज के लिए तो वे उनकी रियाया हैं, ऐसी रियाया जिसे बढ़ाने में ग्वालियर राजपरिवार का योगदान रहा हो। इन्हीं तुर्रेबाजियों में ही तो कई तख्त लुट गए, कई जानें चली गईं।
अगर मोदी कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कुर्सी नरेंद्र सिंह तोमर से छोटी रह गई तो वे ग्वालियर में किसी को मुंह कैसे दिखाएंगे? जैसे जैसे देर हो रही है बेचैनी बढ़ रही है। गरम गरम खाने की तमन्ना से जो हांडी पकाई थी, उसमें सड़न फैलने का खतरा पैदा हो रहा है। इसी बेचैनी में गोविंद सिंह राजपूत से, केंद्र में सिंधिया जी को मंत्री बनाया जाना चाहिए वाला बयान दिलवाया गया। यह कांग्रेस की राजनीति का भाजपाई संस्करण है। भले ही भाजपा को कहना पड़ा कि यह भाजपा की परंपरा नहीं है, लेकिन भाजपा की परंपरा सीखनी किसे है?
भाजपा को सिंधियाओं की प्रेशर वाली पॉलिटिक्स सीखनी है, राजस्थान में वसुंधरा राजे यह सिखा चुकी हैं। मध्यप्रदेश में यशोधरा राजे ने कमजोर ही सही लेकिन सिखाई तो है और अब ज्योतिरादित्य सिखाने की तैयारी में हैं। अभी की मजबूरियां हैं, अन्यथा जब सिंधिया खुद केंद्र में और उनके समर्थक मध्यप्रदेश में अपनी पकड़ बना चुके होंगे तब शिवराजसिंह को सरकार चलाना शायद पहली बार मुश्किल लगेगा। अभी इसमें वक्त है तब तक दिल्ली से भोपाल लौटते हैं
मंत्री पद, विधायक का टिकट और सर्वे
भोपाल में भाजपा के सामने सिंधिया समर्थक 19 पूर्व विधायकों तथा दिग्गी गुट से जुड़े 3 और 3 निर्दलियों को मंत्री बनाने के मामले अलग-अलग विचाराधीन तो हैं ही उपचुनाव में 22 बागियों को भाजपा का प्रत्याशी बनाए जाने का मामला भी फंसा हुआ है। भोपाल से आ रही खबरों की मानें तो भाजपा ने सत्ता हासिल करने के लिए जो भी वायदे किये उन्हें उसी तरह निभाना अब उसके लिए सम्भव नहीं है। फिर वायदे भी एक ने नहीं, कई लोगों ने, अपने-अपने स्वार्थ साधने के लिए किये थे। उदाहरण के लिए कहा जा रहा है कि दिग्गी गुट के एंदल सिंह कंसाना और उनके साथ दो और विधायकों से बातचीत नरोत्तम मिश्रा ने खुद की थी। वायदे भी उन्होंने ही किए थे।
अब सिंधिया गुट की बात, खुद को राज्यसभा का टिकट, केंद्र में मन्त्री पद और अपने 19 विधायकों जिनमें 6 मंत्री थे, को कैसे एडजस्ट किया जाएगा यह नेगोसिएशन खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा हाईकमान से की होगी। इसमें एंदल सिंह और उनके दो साथियों को मंत्री बनाने या उनके पुनर्वास से लेकर उन्हें टिकट देना शामिल नहीं है और न कभी हो सकता है। अब जाहिर है इसके लिए कोई दबाव भी सिंधिया खेमे से नहीं डाला जाएगा। बल्कि उनके मंत्री पद की राह में मुरैना सीट से जीते कट्टर सिंधिया समर्थक रघुराज सिंह कंसाना को रोड़ा बनाया जा रहा हैं। रघुराज ने भी खुद को मंत्री बनाए जाने की मांग शुरू कर दी है।
शेष रह गए तीन निर्दलीय, जिन्होंने शायद खुद शिवराज सिंह के आश्वासन पर सदन से अनुपस्थित रह कर सरकार बनाने में भाजपा की मदद की। इनमें से एक बसपा की विधायक रामबाई ही ज्यादा महत्वाकांक्षी हैं उन्हें एडजस्ट करना सरकार की सेहत के लिए जरूरी होगा। लेकिन यह होगा कब और कैसे इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
भाजपा के सूत्रों से जो खबरें आ रही हैं उनके अनुसार कुछ दिन पहले पार्टी ने एक निजी कम्पनी से और सरकार ने अपने स्तर से सभी 24 सीटों का सर्वे कराया था। ऐसे सर्वे अब चुनाव परम्परा का हिस्सा हैं। इस सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले थे। दावा किया गया था कि अगर भाजपा सभी कांग्रेसी बागियों को अपना प्रत्याशी बनाती है तो उनमें से मुश्किल से आधा दर्जन पूर्व विधायक ही अपनी सीट निकाल पाएंगे।
लॉक डाउन के बावजूद 21 जून से पहले जौरा सीट पर चुनाव कराना जरूरी है। जौरा विधायक की मृत्यु 21 दिसम्बर को हुई थी लिहाजा 21 जून को यह सीट रिक्त हुए 6 महीने हो जाएंगे और नियम 6 महीने में चुनाव करा लेने का है। अब जौरा का अकेला चुनाव तो होगा नहीं तो पूरी सम्भावना सभी 24 सीटों पर चुनाव होने की है।
अब जब जून में चुनाव होना ही है तो एक सम्भावना यह बनती है कि मन्त्रिमण्डल का विस्तार भी चुनाव बाद हो ताकि अखबार यह हेडिंग न लगा सकें कि शिवराज मन्त्रिमण्डल के इतने मंत्री चुनाव हारे। इसके विपरीत इतने बागी कांग्रेसी विधायक चुनाव हारे यह हेडिंग भाजपा को ज्यादा पसन्द आएगा। मन्त्रिमण्डल का विस्तार क्यों लटक रहा है यह इससे भी कुछ स्पष्ट होता है।
सिर्फ मंत्री पद ही नहीं, 22 बागी विधायकों को टिकट भी भाजपा दे या सूची को काटपीट कर जीत सकने वालों को ही उम्मीदवार बनाए इस पर भी मंथन चल रहा है। मुरैना में 4 बागियों की और एक जौरा की मिलाकर 5 सीटों पर चुनाव होना हैं। इनमें 4 सिंधिया खेमे को जीतनी हैं। मंत्री बनने के लिए जून तक की प्रतीक्षा मजबूरी बन गई लगती है। इसीलिए तो कहते हैं किस्मत की लकीरों का खेल भी कम मजेदार नही होता। सुरक्षित रह कर देखते जाइए।
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टीम मध्यमत