मप्र में सरकार का तारनहार ‘राजनीतिक कोरोना’!

अजय बोकिल

मध्यप्रदेश में सरकार गिराने और बनाने को लेकर सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्ष भाजपा में ‘टॉम एंड जेरी’ टाइप खेल चल रहा है। पल-पल में सिचुएशन बदल रही है। एक-दूसरे के खेमे में सेंध लगाने का दौर जारी है। लगता है सरकार अब गिरी, तब गिरी। उधर सरकार दूने जोश के साथ दावा करती है कि वह सुरक्षित है। सरकार के पास बहुमत है या नहीं यह साबित करने के लिए विधानसभा में फ्लोर टेस्ट दोनों ही दल चाह रहे हैं, लेकिन कब, यह तय नहीं हो पा रहा। राज्य के इस अभूतपूर्व घटनाक्रम का सबसे दिलचस्प पहलू है- ‘कोरोना वायरस।‘

यह ऐसा राजनीतिक कोरोना है, जो संवैधानिक प्रक्रियाओं को भी प्रभावित कर रहा है। फ्लोर टेस्ट को लेकर मचे हंगामे के बीच मप्र विधानसभा अध्यक्ष ने सोमवार को विधानसभा की कार्यवाही 10 दिनों के लिए इसलिए स्थगित की कि कहीं माननीय जनप्रतिनिधि भी कोरोना की चपेट में न आ जाएं। मानवीय दृष्टिकोण से यह ठीक भी है। जान है तो जहान है। लेकिन असल में यह सत्ता में लौटने को आतुर भाजपा को पछाड़ने का कांग्रेस का कोरोना दांव था। इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि कमलनाथ सरकार की जान कोरोना की वजह से ही सही 10 दिन तक तो सुरक्षित है। हालांकि यह वायरस भी सरकार की कब तक मदद कर पाएगा, यह तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश और राज्यपाल की आगे की कार्रवाई से तय होगा।

मध्यप्रदेश के संदर्भ में कोरोना के ‘राजनीतिक महात्म्य’ को समझने के लिए चार दिन पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा दिए गए उस बयान को गंभीरता से समझें, जब उन्होंने कहा था कि मध्यप्रदेश में ‘जैविक कोरोना वायरस’ से पहले ‘राजनीतिक कोरोना’ से निपटना जरूरी है। अर्थात सरकार की सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन और सबसे बड़ा मददगार भी यही राजनीतिक कोरोना है। लिहाजा सरकार ने इस कोरोना के सकारात्मक पहलू पर राजनीतिक दृष्टि से पहले ही विचार कर लिया होगा। जिसका परिणाम सोमवार को स्पीकर की उस व्यवस्था में दिखा जिसमें उन्होंने मप्र सहित पूरे देश में कोरोना के प्रकोप से आगाह करते हुए विधानसभा में भी विधायकों के जमावड़े से बचने की सलाह दी और विधायकों के स्वास्थ्य हित में विधानसभा 10 दिन तक स्थगित करने का स्वास्थ्योचित फैसला सुनाया।

कोरोना वायरस के बारे में कहा जाता है कि वह श्वसन तंत्र पर अटैक करता है। मनुष्य प्राणवायु लेने में असमर्थ हो जाता है और समुचित इलाज न हुआ तो जान से हाथ धो बैठता है। मप्र विधानसभा में स्पीकर ने इन तमाम खतरों को पहले भांपते हुए विधायकों सहित विधानसभा आने वाले सभी लोगों को मास्क और सेनिटाइजर मुहैया कराने के निर्देश दिए थे। इसका असर भी सदन में साफ दिखाई दिया। स्पीकर सहित कई लोग सदन में मास्क लगाए बैठे दिखे। कोरोना से बचने की ये पहल सराहनीय थी। हालांकि फ्लोर टेस्ट को लेकर जब सदन में हंगामा होने लगा तो कई चेहरों पर लगे मास्क हट गए और सदन में जमकर नारेबाजी और आरोप-प्रत्यारोप होने लगे।

कोरोना अपने आप में कितना भी खतरनाक हो, सियासी पहलवान उसकी ज्यादा चिंता नहीं करते। स्पीकर ने विधानसभा को कोरोना से बचाने की पूरी पहल की हो, लेकिन सियासी चालें कोरोना की फिक्र रत्ती भर भी नहीं कर रही हैं। भारत सरकार और कमलनाथ सरकार लोगों को इकट्ठा होने से बचने की सलाह दे रही है, क्योंकि संपर्क से कोरोना फैलता है। परंतु राजनीतिक जमावड़े, रणनीतियां कोरोना अंदेशे से पूरी तरह मुक्त हैं। शायद इसीलिए भाजपा के सभी विधायक सामूहिक रूप में राज्यपाल के सामने परेड करने पहुंचे और कमलनाथ सरकार के अल्पमत में होने की बात कही।

उधर दिल्ली में भाजपा प्रवक्ताओं की बैठक हुई, उसमें कहा गया कि मप्र की कमलनाथ सरकार को नैतिक अधिकार नहीं है। इधर भोपाल में कोरोना से निश्चिंत कांग्रेस विधायक सीएम के बंगले पर जमा हुए और सरकार की सांसें कैसे बचाई जाएं, इस पर गंभीर मंथन हुआ। अब इसे सरकार और लोगों की जागरूकता कहें या और कुछ कि कोरोना मप्र में कोई खास रंग अभी नहीं दिखा पाया है। यह राहत की बात है। इसकी एक वजह यह भी है कि मप्र में विदेश आने-जाने वालों की तादाद बहुत कम है। दरअसल मप्र अभी भी तुलनात्मक रूप से पिछड़ा राज्य है और पिछड़े होने के कुछ फायदे भी हैं, जैसे ‍कि कोरोना…! ऐसा न होता तो फिर से मानेसर जाते भाजपा विधायक भोपाल में ही न रह जाते।

कहने का आशय ये कि दुनिया भले कोरोना से डर रही हो, लेकिन‍ राजनीति कोरोना को भी लाल कपड़ा दिखा सकती है। आपसी मेल-जोल, सामूहिक मंत्रणाएं, बैठकों पर बैठकें, सलाह-मशविरे, आरोप-प्रत्यारोप, शह और मात, खुद को महान नैतिक और दूसरे को महा अनैतिक ठहराने की सतत कवायदें इसी का संकेत हैं कि कोरोना अर्थव्यवस्था का भट्टा बिठा सकता है, अस्पतालों को थका सकता है, सामाजिक रिश्तों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन सत्ता के खेल को नहीं रोक सकता। राजनेता और राजनीतिक दल जितनी तेजी से रंग, रूप और तेवर बदल सकते हैं, उतना तो कोरोना भी नहीं बदल सकता। सियासत की खूबी यही है कि वह कब कांटों को गुलाब और कब गुलाब को कांटे में तब्दील कर दे, कहना मुश्किल है।

मध्यप्रदेश में असली कोरोना की जगह ‘राजनीतिक कोरोना’ अपना असर दिखा रहा है। फिलहाल वह सरकार की ढाल के किरदार में है। क्योंकि कोरोना न होता तो विधानसभा की कार्यवाही स्थगित करने का दूसरा मासूम कारण क्या होता? हंगामे के कारण सदन का स्थगित होना अब किसी को नहीं चौंकाता। विधायकों को तो बिल्कुल भी नहीं। इस लिहाज से फ्लोर टेस्ट में सरकार पास हो न हो, कोरोना तो ‘रेस्क्यू टेस्ट’ में पास हो ही गया है और सरकार बजट सत्र के पहले ही दिन गिरने से बच गई।

हालांकि यह अभी भी दावे के साथ कोई नहीं कह सकता कि कमलनाथ सरकार गिर ही जाएगी। क्योंकि खुटका भाजपा के खेमे में भी है। अपुष्ट चर्चा यह भी है कि कुछ भाजपा विधायकों के इस्तीफे लिखवा लिए गए हैं जो ऐन वक्त पर बाजी पलट देंगे। मुमकिन है कि यह चर्चा माइंड गेम का हिस्सा हो। क्योंकि सरकार किसी की बने न बने, विधायकों का मनोबल कायम रखना ज्यादा जरूरी है। इस मायने में कोरोना सत्ता पक्ष के लिए मददगार बन कर आया है। क्योंकि उसके होने की आशंका भी सरकार के वजूद में रहने की आश्वस्ति में तब्दील हो रही है। वैसे यह आश्‍वस्ति कितने दिन रहेगी, कोई नहीं कह सकता।

वैज्ञानिकों का कहना है कि सतह पर कोरोना वायरस दो-तीन दिन से ज्यादा जीवित नहीं रह पाता। मप्र का ‘राजनीतिक कोरोना’ भी अब सतह पर आ गया है, वह कमलनाथ सरकार को कितने दिन जिलाए रखता है, यह देखने की बात है।

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