अजय बोकिल
यकीनन यह किसी शख्स की पहचान के साथ ही नहीं, उसके जज्बात के साथ भी बेहूदा खिलवाड़ है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले से खबर है कि वहां एक मतदाता की वोटर आईडी में उसकी जगह एक कुत्ते की फोटो लगा दी गई है। आईडी में यह सफेद रंग का कुत्ता इत्मीनान से बैठा दिख रहा है, इस अदा में कि कोई चुनाव जीते उसे क्या फरक पड़ना है। जिले के रामनगर निवासी जिस सुनील करमाकर नामक व्यक्ति को यह कार्ड जारी किया गया, वह कार्ड देखते ही हक्का बक्का रह गया। क्योंकि कार्ड के मुताबिक तो सुनील करमाकर एक कुत्ते का नाम है।
बीते मंगलवार को जब यह वोटर आईडी सुनील को मिला तो वह भड़क उठा। उसने चेतावनी दी कि इस गंभीर ‘त्रुटि’ के लिए वह चुनाव आयोग को अदालत में घसीटेगा। उसे हैरानी थी कि जब आईडी के लिए उसने अपनी फोटो दी थी तब वह कार्ड में कुत्ते में तब्दील कैसे हो गई? करमाकर नाम का जीव कुत्ते में कैसे बदल गया? सुनील का कहना है कि उसके वोटर आईडी में पहले भी कुछ गलती थी। सुधार के लिए भेजा तो आईडी में उसकी तस्वीर की जगह कुत्ते की फोटो चस्पा कर दी गई। उधर क्षेत्र के बीडीओ का कहना है कि यह गलती पकड़ में आ गई थी। जिसे सुधार कर सुनील को नया आई कार्ड दिया जा रहा है।
सवाल यह है कि एक जीता जागता इंसान वोटर आईडी में कु्त्ते में कैसे तब्दील हो गया? यह कोई हाथ की सफाई है या इंसानी त्रुटि? फिलहाल जवाब तो यही है कि यह इंसानी गलती ही है। कार्ड बनाते समय कम्प्यूटर पर गलत तस्वीर अपलोड हो गई और आदमी कुत्ता बन गया। हालांकि फोटो आईकार्ड में गड़बड़ी कोई नई बात नहीं है। देश में 2019 तक 90 करोड़ से ज्यादा मतदाता थे, जिनमे से करीब आधे मतदाताओं को फोटो आईडी कार्ड जारी हो चुके हैं। यानी आधे अभी बाकी हैं। कहा जा रहा है कि जब इतने बड़े पैमाने पर फोटो आईडी बने हैं तो मानवीय गलती के लिए वहां गुंजाइश बनती ही है। ऐसे में त्रुटिवश आदमी की जगह कुत्ते की फोटो लग गई तो इसमें इतना उखड़ने जैसा क्या है? कुत्ते की जगह किसी और पालतू प्राणी की लग जाती तो क्या होता?
बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ महीनों में 22 विधानसभा क्षेत्रों से नए वोटरों समेत 83 लाख लोगों ने वोटर आईडी के लिए आवेदन किया है। जिला प्रशासन ने सभी सरकारी कर्मचारियों की छट्टियां कैंसिल कर दी हैं ताकि वोटर आईडी बनाने में कोई गलती न हो। कहा जा रहा है कि करमाकर को अप्रैल में नई वोटर आईडी दी जाएगी। हालांकि इस गड़बड़ी को लेकर वोटर आईडी बनाने वाले कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस दिया गया है। इसके लिए दोषी व्यक्ति पर कार्रवाई की जाएगी। जबकि सुनील करमाकर का कहना है कि वोटर आईडी पर मेरी जगह कुत्ते की तस्वीर भूल से लगी हो या जानबूझकर, लेकिन इससे मेरा बहुत अपमान हुआ है। लोगों ने मेरा कार्ड देखकर सबके सामने मेरा मजाक बनाया। मैं चुनाव आयोग को कोर्ट में घसीटूंगा।
वैसे हमारे देश में इस तरह की लापरवाही कोई नई बात नहीं है। रामलाल की जगह शामलाल की फोटो लग जाना आम बात है। यानी व्यक्ति के लिए अपने ही कार्ड से यह सिद्ध कठिन है कि जो फोटो लगी है, वह उसकी है। क्योंकि फोटो आईडी पर जो फोटो चिपकाया जाता है, उससे आदमी की सही पहचान हो जाए, यह जरूरी नहीं है। कुछ ऐसा ही हाल रेलवे रिजर्वेशन सूची का रहता है। हालांकि आजकल डिजीटल होने से इसमें काफी सुधार आया है, लेकिन जब यह काम पूरी तरह मेन्युअल होता था तो रिजर्वेशन चार्ट में लिखी गई स्पेलिंग की बिना पर समझना मुश्किल होता था कि यह नाम आखिर है क्या, किसका है और किस भाषा का है? अर्थात नाम कुछ और लिखा गया कुछ। ऐसी गलतियां अमूमन लापरवाही या जल्दबाजी के कारण होती हैं।
जहां तक गलत फोटो का सवाल है तो जानकारों के मुताबिक इसका तकनीकी कारण भी है। अक्सर आईडी के लिए व्यक्ति के फोटो वेब कैमरे से खींचे जाते हैं। यह वैसा ही है कि जैसे रोशनी के लिए एलईडी बल्ब की जगह मिनी टॉर्च से काम चलाना। वेब कैमरे दूसरे ताकतवर कैमरों की तरह आप की सूरत को और खूबसूरत नहीं बनाते बल्कि जो वह है उसे भी बदसूरत अथवा बेढब करने का काम जरूर करते हैं। कई दफा आईडी के लिए तस्वीरें बहुत कम लाइट में खींची जाती है जिसका नतीजा यह होता है कि मानो फोटो किसी धुंआते कमरे या माहौल में खींची गई हो। कई बार तो यह भी होता है कि वेब कैमरे की तस्वीर का इस्तेमाल आप ‘पहचाने’ जाने की जगह ‘डराने’ के लिए बेहतर ढंग से कर सकते हैं। गनीमत मानिए मतदान के समय मतदान अधिकारी आप का वोटर आईडी देखकर ही संतुष्ट हो जाते हैं अगर उन्होंने आईडी में छपी शक्ल से आपकी शक्ल का मिलान करने का उपक्रम शुरू कर दिया तो देश में मतदान का प्रतिशत गिर जाएगा।
वैसे फोटो आईडी 21 वीं सदी की बेहद जरूरी चीज है। क्योंकि इसी से माना जाता है कि आप हैं क्या? अगर आप के पास फोटो आईडी नहीं है तो आप कुछ भी नहीं है या फिर हैं ही नहीं। यह फोटो आईडी आप की सुरक्षा के लिए जरूरी है और पहचान जताने के लिए इस फोटो आईडी की सुरक्षा जरूरी है। यह विडंबना ही है कि जैसे जैसे इंसान पर इंसान का और व्यवस्था का आप पर और आप का व्यवस्था पर से भरोसा उठ रहा है, फोटो आईडी अनिवार्य होती जा रही है। वो समय दूर नहीं है कि आप की फिजिकल प्रेजेंस की जगह केवल फोटो आईडी ही आपका होना या न होना प्रमाणित करे। यूं भी भारत उन बिरले देशों में से है, जहां पहचान पत्र के भी कई प्रकार और विकल्प हैं। यानी यह नहीं तो वो चलेगा। यूं आजकल सरकार का जोर आधार कार्ड पर है। चर्चा यह भी है कि वोटर आई को आधार से जोड़ दिया जाए।
जो भी हो, सरकार की निगाह में आईडी आपकी पहचान का अनिवार्य दस्तावेज है। इस लिहाज से किसी भी नागरिक की स्वाभाविक अपेक्षा यही है कि आईडी पर जो शक्ल दिखे, वो उसी की हो, जिसका यह आईडी है। लेकिन मुर्शिदाबाद के सुनील के साथ जो हुआ, वह तो इंसानी गरिमा को ही खारिज करना है। कुत्ता मनुष्य का दोस्त हो सकता है, लेकिन वह मनुष्य तो नहीं हो सकता। सुनील करमाकर का दर्द यही है। वह वोटर इसीलिए है, क्योंकि वह भारत का एक जीता जागता नागरिक है। उसकी वोटर आईडी पर उसकी तस्वीर बेढब होती तो भी एक बार चल सकता था, लेकिन उसकी जगह एक कुत्ते की फोटो चिपकाना गलती कम शरारत ज्यादा लगती है। ऐसी शरारत जो मानवीय गरिमा का ही मजाक है।