इसमें कोई दो राय नहीं है कि 21 वीं सदी में भारत ने जो तरक्की की उसमें दूरसंचार की क्रांति का बहुत बड़ा योगदान है। मुझे याद है वह समय जब एक टेलीफोन कनेक्शन लेने के लिए भी या तो किसी वीआईपी की सिफारिश लगवानी पड़ती थी या फिर सालों साल इंतजार करना पडता था। डाकतार विभाग टेलीफोन कनेक्शन एक अहसान की तरह देता था।
याद आते हैं वो दिन जब ग्वालियर में समाचार एजेंसी यूएनआई का ब्यूरो प्रमुख होने के बावजूद मेरे पास टेलीफोन का निजी कनेक्शन नहीं था। उस समय अर्जुनसिंह संचार मंत्री हुआ करते थे और वे एक कार्यक्रम में शिवपुरी आए थे। उस कार्यक्रम को कवर करने ग्वालियर से हम कुछ पत्रकार भी शिवपुरी गए हुए थे। कार्यक्रम के दौरान ही राय बनी कि क्यों न टेलीफोन कनेक्शन के लिए अर्जुनसिंह से कहा जाए।
उन दिनों महेंद्रसिंह कालूखेड़ा मध्यप्रदेश में मंत्री हुआ करते थे। वे उस कार्यक्रम में मौजूद थे। हम कुछ पांच सात पत्रकारों ने कालूखेड़ा तक अपनी मंशा पहुंचाई और उन्होंने इशारे से हम लोगों से नामों की सूची देने को कहा। हमने डायरी के एक पन्ने पर फोन कनेक्शन लेने के इच्छुक पत्रकारों के नाम लिखकर मंच तक पहुंचा दिए। कालूखेड़ा ने अर्जुनसिंह के कान में कुछ कहते हुए वह पर्ची उन्हें थमा दी।
अर्जुनसिंह ने पर्ची बिना देखे जेब में रख ली। करीब एक हफ्ते बाद हम लोगों के पास एक पत्र पहुंचा जिसमें शायद सात दिन के भीतर हजार या 1200 रुपये की राशि जमा करने को कहा गया था। इतनी बड़ी रकम जमा करने की स्थिति में हममें से कोई नहीं था, लिहाजा किसी ने जवाब ही नहीं दिया। बाद में ग्वालियर के टेलीकॉम डिस्ट्रिक्ट मैनेजर (टीडीएम) ने हम लोगों से संपर्क करके अनुरोध किया कि हम जैसे भी हो राशि जमा करवा दें, क्योंकि उन्हें मंत्रीजी को सूचना भेजनी है कि उनके आदेश का पालन हो गया है।
खैर किस्सा यह कि भाई लोगों ने इधर उधर से पैसे का जुगाड़ कर राशि जमा करवाई और फोन कनेक्शन ले लिया। यह कहते हुए मुझे कोई संकोच नहीं है कि जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक बार ये कहा कि वे गांव गांव तक टेलीफोन कनेक्शन पहुंचाना चाहते हैं तो हम लोगों ने एक तरह से उनकी खिल्ली उड़ाई थी कि जहां पीने को पानी तक नहीं है वहां यह आदमी टेलीफोन कनेक्शन पहुंचाने की बात कर रहा है। पर हम लोग गलत थे। हमारे देखते ही देखते वह क्रांति हुई और आज उसका जो भी स्वरूप है सबके सामने है।
इसी तरह जब सरकार ने दूरसंचार का क्षेत्र निजी ऑपरेटर्स के लिए खोलने का फैसला किया तो वह बहुत बड़ा और क्रांतिकारी फैसला था। जाती हुई शताब्दी के अंतिम दशक में लिए गए उस फैसले ने देश में संचार का परिदृश्य ही बदल दिया। उस समय कई लोग इस धंधे में उतरे और कई लोगों के वारे न्यारे हो गए। कमाने वालों में कारोबारी और कॉरपोरेट भी थे तो नौकरशाह और राजनेता भी।
लेकिन हमारी परंपरा रही है कि जिस योजना में या नवाचार में घोटाला और भ्रष्टाचार न हो वह निरर्थक है। दूरसंचार का क्षेत्र भला इससे कैसे अछूता रहता। यूपीए सरकार के समय 2008 में दूरसंचार सेवाओं के लिए 2जी स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया। इस आवंटन पर 2010 में पहली बार उस समय सवाल उठा जब महालेखाकार और नियंत्रक (सीएजी) ने अपनी एक रिपोर्ट में स्पेक्ट्रम आवंटन से केन्द्र सरकार को भारी नुकसान पहुंचने की बात कही।
सीएजी रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कंपनियों को नीलामी के बजाए पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर स्पेक्ट्रम दे दिए गए। दावा किया गया कि सरकार के इस फैसले से खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रुपयों की चपत लगी। यह राशि इस आधार पर निकाली गई कि यदि लायसेंस का आवंटन नीलामी के आधार पर किया गया होता तो सरकारी खजाने में कम से कम इतनी राशि तो आती ही।
इस कथित घोटाले को लेकर तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर आरोप लगा कि उन्होंने आवंटन के नियमों में बदलाव करने के लिए टेलीकॉम कंपनियों से कमीशन लिया। यह भी कहा गया कि ए. राजा ने यह बदलाव करते समय प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी सलाह को भी दरकिनार कर दिया। उन्होंने लायसेंस के लिए आवेदन की तारीख बदली और 2008 में किए गए आवंटन के लिए 2001 की दर से एंट्री फीस ली जिसके चलते भारत सरकार के खजाने को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा।
इस मामले में तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम. करुणानिधि की बेटी कनिमोई पर भी आरोप लगे। कहा गया कि कनिमोई के संबंध उस कलाइगनार टीवी से हैं जिसपर 2जी आवंटन में स्वान टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड से कमीशन लेने का आरोप था। शाहिद बलवा और डीबी रियल्टी लिमिटेड के विनोद गोयनका स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर थे। मामले की जांच कर रही सीबीआई ने 2015 में कोर्ट को बताया था कि स्वान टेलीकॉम को कमीशन देने के माध्यम के तौर पर इस्तेमाल किया गया। दावा किया गया था कि स्वान टेक्नोलॉजी को यह फंडिग इसलिए की गई ताकि अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस एडीएजी से 14 सर्कल में 2जी लाइसेंस प्राप्त किया जा सके। इसी आधार पर बाद में रिलायंस एडीएजी के भी कुछ कर्मचारियों को मामले में आरोपी बनाया गया था।
2जी के कथित घोटाले का यह मामला सात साल चला और 2017 में कोर्ट ने सभी आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। इस मामले ने भारत की राजनीति में भारी उथल पुथल मचाई और सरकार की निजीकरण से लेकर लायसेंस नीति तक पर कई सवाल उठे। इसीके साथ एक बात और हुई और वो ये कि दूरसंचार के क्षेत्र में देश के ख्यात औद्योगिक घराने रिलायंस का नाम अच्छा खासा चर्चित हो गया।
इससे पहले रिलायंस दूरसंचार क्षेत्र में उस समय चर्चा में आया था जब 2002 में उसने अपनी सीडीएमए सेवा शुरू करते हुए 500 रुपये में सस्ता मोबाइल फोन हैंडसेट देने की योजना भारतीय बाजार में पटकी थी। यह वो समय था जब मुकेश और अनिल अंबानी अलग नहीं हुए थे और रिलायंस समूह ने रिलायंस इन्फोकॉम के नाम से भारत के दूरसंचार क्षेत्र में अपना कारोबार शुरू किया था।
पर वो तो सिर्फ ट्रेलर था, भारत की दूरसंचार क्रांति और उसके बहाने भारत की अर्थव्यवस्था की लहूलुहान पिक्चर देखना तो अभी बाकी था…