ऐसा लगता है कि अदालतों की तारीख पर तारीख और दोषियों का न्याय व्यवस्था से खिलवाड़ ही शायद पर्याप्त नहीं था, जो देश की मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह ने सात साल पहले दिल्ली में बर्बर दुष्कर्म की शिकार हुई निर्भया के मामले में उसकी मां को सलाह दे डाली कि वे अपनी बेटी की दर्दनाक मौत के जिम्मेदार दोषियों को माफ कर दें।
इंदिरा जयसिंह ने शनिवार को, ट्वीट करके, निर्भया की मां आशादेवी को यह बेहूदी और अत्यंत आपत्तिजनक ‘सलाह’ दी। उन्होंने लिखा-‘’मैं आशादेवी की पीड़ा से अच्छी तरह वाकिफ हूं, (फिर भी) मैं उनसे अनुरोध करूंगी कि वे सोनिया गांधी की राह पर चलें जिन्होंने (अपने पति राजीव गांधी की हत्या में शामिल) नलिनी को यह कहते हुए माफ कर दिया था कि वे उसके लिए मृत्युदंड नहीं चाहतीं। हम आपके साथ हैं लेकिन मौत की सजा के खिलाफ हैं।‘’
इस मामले पर आगे बात करने से पहले यह जान लें कि ये इंदिरा जयसिंह हैं कौन? इंदिरा जयसिंह देश की मशहूर वकील हैं। वे मानवाधिकारों और महिला अधिकारों को लेकर लड़ने के लिए जानी जाती हैं। वे पहली महिला वकील थीं जिन्हें मुंबई हाईकोर्ट ने सीनियर एडवोकेट के रूप में मान्यता दी थी। यूपीए सरकार के समय उन्हें 2009 में भारत का अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया। इस पद पर पहुंचने वाली वे पहली महिला थीं।
महिला अधिकारों के लिए उन्होंने कई कानूनी लड़ाइयां लड़ीं। इनमें दो मामले बहुत चर्चा में रहे। एक मामला केरल की मेरी रॉय का था, जिस पर यह फैसला हुआ कि सीरियन ईसाई महिलाओं को भी पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलना चाहिए। दूसरा मामला पंजाब की वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रूपन देओल बजाज का था जिन्होंने पंजाब के तत्कालीन डीजीपी और सुपर कॉप केपीएस गिल पर यौन प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था। उस मामले में गिल को सजा हुई थी।
दुनिया की भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना भोपाल गैस कांड के पीडि़तों को अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कारबाइड से मुआवजा दिलाने के मामले से लेकर मौखिक रूप से तीन तलाक देने वाला मामला भी इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट में लड़ा था। संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें महिला भेदभाव मिटाने वाली समिति में सदस्य नामजद किया था। वे मध्यप्रदेश की एक एडीजे की ओर से प्रदेश हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश के खिलाफ लगाया गया यौन प्रताड़ना का मामला भी लड़ चुकी हैं। कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना को लेकर उन्होंने किताब भी लिखी है। इसके अलावा भी उनके खाते में कई उपलब्धियां और प्रशस्तियां हैं।
तो जब इतनी सारी प्रतिष्ठा अपने खाते में रखने वाली इंदिरा जयसिंह ने निर्भया के दोषियों को माफ कर देने वाला सुझाव दिया तो हैरान होना स्वाभाविक था। यकीन करना मुश्किल है कि जिस मामले ने पूरे देश को उद्वेलित और आंदोलित कर दिया था और जिस घटना के बाद दुष्कर्म के मामलों में सख्त सजा के प्रावधान हुए थे, उस घटना के दोषियों को इतनी बड़ी वकील माफ कर देने की बात कर रही हैं। और वकील भी वो, जो जिंदगी भर महिला अधिकारों खासतौर से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले यौन अपराधों और अत्याचारों के खिलाफ न्यायिक लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाती रही हो।
इंदिरा जयसिंह ने मति मारे जाने को इंगित करने वाला यह सुझाव क्यों दिया यह तो वे ही जानें लेकिन उनका यह सुझाव एक तरह से निर्भया मामले में, महिला अपराधों को लेकर इतनी लंबी लड़ाई लड़ने वाले हर व्यक्ति का अपमान करने वाला है। यदि इतनी लंबी लड़ाई के बाद और कानूनों में इतने सारे बदलाव और कठोर प्रावधान किए जाने के बाद भी इतना जघन्य और बर्बर अपराध करने वालों को माफी ही मिल जानी है तो फिर देश में अपराध और न्याय व्यवस्था का मतलब ही क्या बचता है?
इंदिरा जयसिंह ने निर्भया की मां को माफी की यह सलाह देते समय सोनिया गांधी का उदाहरण दिया है। सोनिया का उदाहरण देने के पीछे उनकी कोई ‘अन्यथा’ मंशा हो, तो ये वे ही जानें लेकिन राजीव गांधी की हत्या और निर्भया के दुष्कर्म में कहीं कोई साम्य नहीं है। राजीव गांधी की हत्या के पीछे राजनीतिक और विचारगत कारण थे। वह एक हिंसक विचार को मानने वाले लोगों द्वारा लिया गया प्रतिशोध था जबकि निर्भया के मामले में ऐसा कुछ नहीं है।
क्या इंदिरा जयसिंह बता पाएंगी कि निर्भया का क्या दोष था जो उसके साथ इतनी बर्बर वारदात को अंजाम दिया गया उससे कौनसा प्रतिशोध लिया गया? इंदिरा जयसिंह के प्रोफाइल में उन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता बताया गया है, उन्होंने अपने ट्वीट में खुद के मृत्युदंड का विरोधी होने की बात लिखी है। तो क्या वे माफी का सुझाव निर्भया के दोषियों के मानवाधिकार के हवाले से दे रही हैं? याद रखें, मानवाधिकार मनुष्यों के होते हैं, अगर यह मानवाधिकार का मामला है तो इससे अच्छे तो जानवरों के अधिकार होंगे।
राजीव गांधी की हत्या में शामिल नलिनी, जिसे सोनिया गांधी ने माफी दी, वह मुख्य अपराधी नहीं बल्कि षडयंत्र में भागीदार थी। उसकी जिंदगी के कई साल जेल में कट चुके थे। लेकिन यहां तो निर्भया के चारों दोषी खुद अपराधी हैं और अपराध भी ऐसा जो किसी की भी रूह को कंपा दे। बेहतर होता, इंदिरा जयसिंह अपना ‘अमूल्य’ सुझाव देने से पहले निर्भया के साथ हुई वारदात का ब्योरा एक बार पढ़ लेतीं।
और चलिये एक बार को इंदिरा जयसिंह के सुझाव को मान भी लिया जाए तो फिर उन्हें इस बात का भी जवाब देना होगा कि जिस रूपन देओल बजाज के केस ने उन्हें पहचान दिलाई वह उन्होंने लड़ा ही क्यों था? गिल ने कोई बलात्कार तो नहीं किया था। क्यों नहीं इंदिरा जयसिंह ने रूपन देओल बजाज से कहा कि चलो जाने दो गिल को माफ कर दो। निर्भया का मामला सिर्फ एक महिला के साथ हुआ अपराध ही नहीं है वह महिला गरिमा को बर्बरता से नोच डालने और उसे नष्ट कर देने वाला अपराध है।
निर्भया की मां आशादेवी ने इंदिरा जयसिंह को ठीक जवाब दिया है। उन्होंने पूछा कि आखिर इंदिरा जयसिंह मुझे यह सुझाव देने वाली होती कौन हैं? पूरा देश दोषियों को फांसी चाहता है। उनके जैसे लोगों की वजह से ही रेप पीड़िताओं के साथ न्याय नहीं हो पाता। मैं कभी दरिदों को माफी नहीं दूंगी। भगवान भी आकर कहें कि आशा तुम माफ कर दो, तब भी नहीं…।
दरअसल पूछा जाना चाहिए इंदिरा जयसिंह जी से कि क्या आप महिला गरिमा को इस जघन्य और बर्बर तरीके से कुचल डालने के अपराध को माफी योग्य मानती हैं? रहा सवाल मृत्युदंड के विरोध का तो फिर इंदिरा जयसिंह, आपसे यह सवाल भी क्यों न किया जाए कि आप गांधी के हत्यारे गोडसे को फांसी पर चढ़ाए जाने को सही मानती हैं या गलत?