अच्‍छी नहीं है सेहत की गलियों की सेहत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 सितंबर 2018 को झारखंड की राजधानी रांची में प्रधानमंत्री आयुष्‍मान भारत योजना को लांच करते हुए कहा था कि यह योजना देश के लोगों, खासकर गरीब तबके के लोगों की स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा के लिहाज से मील का पत्‍थर साबित होगी। सरकार ने इस योजना को लागू करते समय दावा किया था कि इससे दस करोड़ परिवारों यानी लगभग 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये तक की चिकित्‍सा सुविधा मुफ्त मिलेगी।

सरकारी दावों के मुताबिक इस योजना के तहत देश भर में अब तक 18911 अस्‍पताल रजिस्‍टर्ड किए जा चुके हैं। 6 करोड़ 62 लाख 40 हजार 677 लोगों को ई-कार्ड दे दिए गए हैं और योजना का लाभ लेने के लिए 63 लाख 67 हजार 656 लोग अस्‍पतालों में भरती हुए हैं। यानी इतने लोगों ने योजना का लाभ उठाया है। हालांकि इस बीच आयुष्‍मान योजना के क्रियान्‍वयन की खामियों और उसमें होने वाले भ्रष्‍टाचार की खबरें भी आई हैं।

आयुष्‍मान योजना की याद इसलिए आई क्‍योंकि केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने हाल ही में राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य प्रोफाइल-2019 की रिपोर्ट जारी की है जो देश की सेहत के विभिन्‍न पहलुओं पर नजर डालने का मौका देती है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर देश के कुल जीडीपी का 1.28 प्रतिशत ही खर्च किया जा रहा है। 2009-10 से लेकर 2018-19 के करीब दस सालों में स्‍वास्‍थ्‍य पर होने वाले खर्च में जीडीपी के लिहाज से सिफ 0.16 फीसदी की ही बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में यह 1.12 से बढ़कर 1.28 ही हो सका है। इस लिहाज से स्‍वास्‍थ्‍य पर जीडीपी का 2.5 फीसदी खर्च करने का सपना पूरा होना अभी भी एक तरह से सपना ही है।

इसके साथ ही रिपोर्ट यह भी कहती है कि देश में स्‍वास्‍थ्‍य पर होने वाला प्रति व्‍यक्ति खर्च इन सालों में 621 रुपये से बढ़कर 1657 हो गया है। अब इस आंकड़े का यदि वास्‍तविकता से मिलान करें तो सार्वजनिक अस्‍पतालों में एक बच्‍चे के जन्‍म पर होने वाला खर्च ही इससे कहीं अधिक बैठता है। क्‍योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह खर्च जहां 1587 रुपये है वहीं शहरी क्षेत्रों में 2117 रुपये। बाकी बीमारियों के खर्च की स्थिति देखें तो एनएसएसओ का स्‍वास्‍थ्‍य सर्वे कहता है कि जनवरी 2013 से जून 2014 के बीच देश में अस्‍पतालों में भरती होने पर औसतन खर्च ग्रामीण इलाकों में 14935 रुपये और शहरी क्षेत्रोंमें 24436 रुपये था।

इसका मतलब यह हुआ कि सरकार के बजट के हिसाब से जहां स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर प्रति व्‍यक्ति औसतन 1657 रुपये खर्च की ही व्‍यवस्‍था की जा रही है वहीं लोगों को खुद अपनी जेब से सेहत के लिए इससे कई गुना अधिक राशि खर्च करना पड़ रही है। जबकि 2011 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने स्‍वास्‍थ्‍य पर देश के जीडीपी का 2.5 फीसदी खर्च करने की बात कही थी और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में एक कार्यक्रम के दौरान इस आंकड़े को दोहराते हुए कहा था कि भारत 2025 तक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर 100 बिलियन डॉलर से अधिक की राशि खर्च करेगा। यानी आने वाले आठ सालों में हमारा लक्ष्‍य स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च की जा रही राशि में करीब 350 फीसदी की बढ़ोतरी करना है।

सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि 2009-10 से लेकर 2017-18 तक हम स्‍वास्‍थ्‍य सेवा पर कुल जीडीपी का डेढ़ फीसदी खर्च करने का आंकड़ा भी नहीं छू सके हैं। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन कहता है कि लोगों को बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं मुहैया कराने से आशय है कि स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं तक सभी की समान रूप से पहुंच हो, जो लोग स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं का लाभ लेने के लिए पहुंच रहे हैं उन्‍हें दी जाने वाली सेवाएं गुणवत्‍तापूर्ण और लोगों के स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार करने वाली हों, साथ ही लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य पर होने वाले खर्च को लेकर भी सुरक्षा प्रदान की जाए यानी जो सेवाएं उन्‍हें मुहैया कराई जा रही हैं उनकी लागत इतनी भी न हो कि उन्‍हें पाने वाले लोगों के सामने आर्थिक जोखिम खड़ा हो जाए।

लेकिन हो क्‍या रहा है? खुद राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य प्रोफाइल की रिपोर्ट कहती है कि देश में अलग अलग राज्‍यों में ही स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च होने वाली राशि और स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं को लेकर भारी विसंगतियां हैं। 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक उत्‍तर-पूर्वी राज्‍य स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च के मामले में बहुत बेहतर स्थिति में हैं जबकि असम के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े राज्‍यों जैसे बिहार, छत्‍तीसगढ़, झारखंड, मध्‍यप्रदेश, ओडिशा, राजस्‍थान, उत्‍तराखंड और उत्‍तरप्रदेश में स्थिति बहुत दयनीय है।

आपको यह जानकर ताज्‍जुब हो सकता है कि पूर्ववर्ती जम्‍मू कश्‍मीर राज्‍य में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर राज्‍य के जीडीपी का 2.46 फीसदी खर्च किया जा रहा था। यह पूरे देश के द्वारा 2025 तक हासिल किए जाने वाले 2.5 फीसदी खर्च के लक्ष्‍य के बहुत करीब है। आंकड़े बताते हैं कि उत्‍तर पूर्वी राज्‍यों में भी मिजोरम अपने राज्‍य जीडीपी का 4.20 फीसदी और अरुणाचल प्रदेश 3.29 फीसदी खर्च करता है। इसके विपरीत स्‍वास्‍थ्‍य मानकों के लिहाज से ठीकठाक प्रदर्शन करने वाले राज्‍यों जैसे तमिलनाडु और केरल में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर खर्च की स्थिति कोई ठीक नहीं है। तमिलनाडु जहां इस मद में राज्‍य जीडीपी का 0.74 फीसदी खर्च करता है वहीं केरल 0.93 फीसदी।

स्‍वास्‍थ्‍य पर होने वाला खर्च कई परिवारों के लिए बड़े आर्थिक संकट का कारण बन रहा है। सोमवार को ही मीडिया में एक रिपोर्ट छपी है कि हमारे मध्‍यप्रदेश में एक परिवार पर एक बार अस्‍पताल में भरती होने का औसतन खर्च 19000 रुपये आता है। यह महाराष्‍ट्र में प्रति परिवार होने वाले खर्च से 4000 रुपये अधिक है। राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य प्रोफाइल रिपोर्ट के मुताबिक अस्‍पताल में होने वाले खर्च के दबाव में, राज्‍य के ग्रामीण क्षेत्र के 0.8 फीसदी प्रभावित परिवारों को और शहरी क्षेत्र के 0.5 फीसदी परिवारों को अपनी जमीन जायदाद बेचनी पड़ती है।

ऐसे समय में जब मध्‍यप्रदेश में लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य का अधिकार देने की बात चल रही है, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर होने वाला यह खर्च बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आने वाला है। जरूरत इस बात की है कि गुणवत्‍तापूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं उपलब्‍ध कराने के साथ साथ यह भी सुनिश्चित हो कि वे सेवाएं लोगों को वाजिब दामों पर मिलें। और यदि वे उनका भार उठाने की स्थिति में न हों तो उनके लिए ऐसे पुख्‍ता प्रबंध हों कि इलाज के अभाव में किसी को मरना न पड़े।

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