महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती को लेकर इन दिनों लिखी जा रही विविध सामग्री में सबसे ज्यादा चर्चा जिस एक घटना की हो रही है वह है अमेरिका के ह्यूस्टन में भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ‘फादर ऑफ इंडिया’ कहना। दरअसल मोदी की अमेरिका यात्रा के समय दोनों नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान हुए सवाल जवाब के दौरान ट्रंप ने यह टिप्पणी की।
पत्रकारों के सवाल के जवाब में ट्रंप ने कहा- “I remember India before (before PM Modi rule), not intimately, but I remember India before, it was very torn, it was a lot fighting and he brought it all together. Like a father would bring it together. Maybe he is the father of India. We will call him the father of India. He brought things together, you don’t hear that anymore.’’
इसके बाद से देश में बहस उठ खड़ी हुई कि भारत में तो ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा गांधीजी को दिया हुआ है, तो क्या मोदीजी को गांधी के समकक्ष माना जा रहा है? कई लोगों ने अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि यह भारत की जनता और महात्मा गांधी का अपमान है। कुछ लोगों की राय थी कि जब ट्रंप ऐसा बयान दे रहे थे तभी उनके बगल में बैठे नरेंद्र मोदी को प्रतिकार करते हुए कह देना चाहिए था कि यह संबोधन मैं स्वीकार नहीं कर सकता।
इस विवाद को उस समय और हवा मिल गई जब प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्रसिंह ने कह डाला कि- ‘‘यह पहली बार है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसी भारतीय प्रधानमंत्री या विश्व के किसी अन्य नेता की प्रशंसा इस तरह के शब्दों से की है। यदि किसी को इस पर गर्व नहीं है तो हो सकता है कि वह खुद को भारतीय न मानता हो।‘’
जितेंद्रसिंह के बयान के बाद तो मानो इस मामले में उबाल ही आ गया। महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती के अवसर पर गांधी को लेकर लिखी गई सामग्री में भी यह विषय प्रमुखता से छाया रहा और अभी तक इस प्रकरण को लेकर सोशल मीडिया में तीखी बहस चल रही है। लोगों का कहना है कि सरकार और भारतीय जनता पार्टी मिलकर गांधी की छवि को खराब करने में लगे हैं।
मैं इस मामले पर चल रही राजनीति और इस मामले के राजनीतिक एंगल और एजेंडे से हटकर कुछ बात करने की हिमाकत कर रहा हूं। स्वयं गांधीजी का एक वाक्य उनके व्यक्तित्व की विशेषता को रेखांकित करते हुए अकसर उदाहरण के तौर पर संदर्भित किया जाता है कि- ‘’मैं दुनिया में किसी से डरूंगा नहीं, मैं असत्य को सत्य से जीतूंगा।‘’
और जब मैं गांधीजी के खुद के इस कथन को पढ़ता हूं और उसके समानांतर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की टिप्पणी पर हुए बवाल को देखता हूं तो मुझे ताज्जुब होता है कि आज जो लोग गांधी और उनके व्यक्तित्व की दुहाई देते हुए, उन्हें सत्य और निडरता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत करते हुए जो कह और लिख रहे हैं क्या वे स्वयं को डरा हुआ प्रदर्शित नहीं कर रहे?
यह बिलकुल सत्य है कि भारत ने ‘राष्ट्रपिता’ या ‘फादर ऑफ नेशन’ के संबोधन से जिस महापुरुष को नवाजा है वह महात्मा गांधी ही हैं। इस देश ने गांधी को जो मान, सम्मान दिया है और आज भी जिस महापुरुष का नाम भारतवासी पूरे गर्व के साथ लेते हैं वे महात्मा गांधी ही हैं। आप गांधी के नाम के साथ बोलें या न बोलें, लिखें या न लिखें लेकिन जब भी भारत में ‘फादर ऑफ नेशन’ कहा जाएगा, एकमेव बापू का चेहरा ही आंखों के सामने तैरेगा किसी और का नहीं, नरेंद्र मोदी का भी नहीं।
तो फिर गांधी के अनुयायी, गांधी को मानने और पूजने वाले, गांधी के ही निडरता के मंत्र के विपरीत इतना डरे हुए क्यों हैं? वे क्यों मान रहे हैं कि कोई इस देश में गांधी से ‘फादर ऑफ नेशन’ की पदवी, मान-सम्मान और संबोधन छीन लेगा? क्या हमारे गांधी इतने कमजोर हैं कि किसी दूसरे देश के नेता की ओर से किसी प्रेस कान्फ्रेंस में किसी और नेता के लिए बोल दिए गए इसीसे मिलते जुलते संबोधन से बापू भारतीय मानस में अप्रतिष्ठित हो जाएंगे? क्या केवल किसी और को यूं ही दे दिया गया संबोधन गांधी को भारत में उनके स्थान से अपदस्थ कर सकता है?
यदि हम ऐसा समझ रहे हैं तो सबसे पहले अपने गिरेबान में झांकें कि क्या हमने गांधी, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को उनके विचार और दर्शन को ठीक से समझा भी है? क्या हम गांधी की विरासत के हकदार होने का दंभ भरने की हैसियत भी रखते हैं? क्या गांधी ने अपने ऐसे ही अनुयायियों अथवा अपने विचार को मानने वाले ऐसे ही कमजोर लोगों के भारत की कल्पना की थी? हम ऐसी क्षुद्र बातों में गांधी जैसी महान हस्ती को घसीटकर गांधी का सम्मान कर रहे हैं या उनका अपमान?
जरा सोचिए तो सही, इस देश में गांधी के बाद कितने लोगों के नाम के आगे ‘महात्मा’ शब्द जुड़ा, कितने लोगों को ‘बापू’ शब्द से संबोधित किया गया, तो क्या उससे गांधी का महत्व कम हो गया? गांधी छोटे या लुप्त हो गए? वास्तविकता तो यह है कि ऐसे दर्जनों ‘महात्मा‘ और अनेक ‘बापू’ आज अपने कर्मों के चलते जेल की हवा खा रहे हैं। तो क्या गांधी उससे बदनाम हो गए, क्या उसके बाद हमने गांधी को ‘महात्मा’ या ‘बापू’ कहना बंद कर दिया? नहीं ना… तो फिर हम इस तरह रिएक्ट कर उस बात को क्यों महत्वपूर्ण बना रहे हैं जिसे कायदे से महत्वहीन हो जाना चाहिए था। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि दूसरे अगर गांधी के नाम पर राजनीति कर रहे हैं तो हम भी उस राजनीतिक खेल का हिस्सा बन जाने के लिए मरे जा रहे हैं।
गांधी सत्य थे और सत्य ही रहेंगे, जरूरत इस बात की है कि गांधी के सत्य और सत्व पर आप निडर होकर कायम रहें। याद रखें, गांधी ने भारत और भारतीय समाज के लिए काम किया था, वे किसी ‘कुर्सी’ के आकांक्षी नहीं रहे, इसलिए आप कम से कम यह चिंता तो छोड़ ही दें कि गांधी की ‘कुर्सी’ छिन जाएगी या कोई गांधी की ‘कुर्सी’ छीन लेगा। डरा हुआ चेला गुरु का नाम डुबो देता है, ऐसा चेला मत बनिये। विश्वास रखिये, सबकुछ मुमकिन होने के इस ‘स्वप्न-समय’ में भी, अव्वल तो दूसरा गांधी पैदा होना नामुमकिन है और उससे भी ज्यादा नामुमकिन है किसी का गांधी बन जाना…