इन दिनों कानून कायदों को लेकर लोगों में बहस कुछ ज्यादा ही हो रही है। कुछ बहस नए कानून कायदों को लेकर है तो कुछ कानून कायदों के अमल को लेकर। जिस तरह समाज बदल रहा है उसी तरह कानून कायदे भी बदल रहे हैं और कानून कायदों को देखने वाली दृष्टि भी। कुछ साल पहले तक ऐसा अपेक्षाकृत कम होता था लेकिन आज, आए दिन कानून कायदों को, उनके औचित्य को, उनके क्रियान्वयन को सोशल मीडिया से लेकर ऊंची अदालतों तक में चुनौती देने का चलन बढ़ गया है।
कानूनों से जुड़ा कोई मुद्दा जब भी उठता है, उसमें कई बार विरोध करने वाला पक्ष वो होता है जो उस कानून की कमियों अथवा कमजोरियों के चलते, अब तक बेखौफ होकर अपराध करता, या नियम कायदों को धता बताता आया है। कुछ लोगों की तो फितरत ही होती है कानून या नियमों का उल्लंघन व मनमानी करने की। आपने अकसर देखा होगा, सार्वजनिक स्थानों पर जहां जिस बात को करने की मनाही लिखी होती है, वहां वह बात जरूर की जाती है। इसी तरह एक दूसरा वर्ग होता है जो अपने अहंकार के आगे कानून कायदों को कुछ नहीं समझता। यह वर्ग जानबूझकर कानून तोड़ता है और ऐसा करने में अपनी शान भी समझता है।
ऐसा ही मामला सड़कों पर होने वाले यातायात नियमों के उल्लंघन का है। यदि ठीक ठीक कोई सर्वे संभव हो जाए तो हो सकता है देश में सड़क पर चलने वाला शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति निकले जिसने कभी न कभी यातायात के नियमों का उल्लंघन न किया हो। शराब पीकर गाड़ी चलाने या शेखी बघारने के लिए गाडि़यों को सड़कों पर अंधी रफ्तार में दौड़ाने की बात तो अलग है, लोग तो ट्रैफिक सिग्नल तोड़ने या जेब्रा लाइन का उल्लंघन करने तक में अपनी शान समझते हैं।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आज हमारी सड़कें मौत की वाहक हो चली हैं। बिना किसी कानून कायदे का पालन किए सड़कों पर दौड़ने वाले वाहन हर साल लाखों लोगों की जान ले रहे हैं। एक अंधी दौड़ सड़कों पर भी मची है, एक दूसरे से आगे निकलने की… और इसी दौड़ का नतीजा है कि लाखों लोग सड़कों पर या तो कुचले जा रहे हैं या फिर जिंदगी भर के लिए अपाहिज हो रहे हैं। देश के मानव संसाधन का इस तरह जाया होना किसी भी सूरत में ठीक नहीं कहा जा सकता।
केंद्र सरकार ने जब से नया मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम 2019 लागू किया है तभी से इसे लेकर सोशल मीडिया पर तरह तरह के संदेशों की बाढ़ सी आई हुई है। नए नियमों के तहत होने वाले हजारों रुपये के चालान के साथ साथ हेलमेट न पहनने पर कार वाले का चालान करने और सीट बेल्ट न लगाने पर दुपहिया वाहन वाले का चालान करने जैसी खबरों के जरिये नए नियमों की खिल्ली उड़ाई जा रही है।
यह बात सही है कि नए नियमों में उल्लंघन करने पर लिया जाने वाला जुर्माना बहुत अधिक बढ़ा दिया गया है। इसकी राशि पर पुनर्विचार की मांग को सीधे सीधे खारिज नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन उसके साथ ही यह भी देखना होगा कि जुर्माने की राशि कम करने के हल्ले के चलते कहीं ऐसा न हो कि नए कानून का उद्देश्य ही तिरोहित हो जाए। मूल रूप से इस कानून को सरकार का ‘जुर्माना वसूली’ अभियान समझ लिया गया है। लोग तो सोशल मीडिया पर ऐसे भी तंज कर रहे हैं कि खराब होती अर्थ व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकार अब जुर्माने की राशि से आर्थिक सेहत सुधारने चली है।
कुछ लोगों का तर्क (बेहतर होगा इसे कुतर्क कहें) यह भी है कि जुर्माने की राशि बढ़ जाने से भ्रष्टाचार भी बढ़ेगा। ट्रैफिक पुलिस, चालानी कार्रवाई करने के दौरान रिश्वत के रूप में अधिक राशि वसूलेगी। लेकिन ऐसे लोगों की बात को तवज्जो देने या उसका जिक्र भी करने से बचा जाना चाहिए, बल्कि ऐसे लोगों की तो सार्वजनिक रूप से निंदा होनी चाहिए। क्योंकि यह उन लोगों का कुतर्क है जो यातायात के नियमों का पहले तो उल्लंघन करते हैं और बाद में जायज जुर्माना भरने के बजाय सौदेबाजी कर, रिश्वत देकर मामले को रफा दफा करवाना चाहते हैं।
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इसमें ट्रैफिक पुलिस की भूमिका बिलकुल पाक साफ रहती है। लेकिन ज्यादातर मौकों पर मामला तभी उलझता है जब वाहन चालक ने किसी न किसी रूप में, किसी नियम कायदे का उल्लंघन किया हो। सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का यह कहना बिलकुल ठीक है कि ‘’यदि कोई व्यक्ति यातायात नियमों का पालन कर रहा है तो उसे जुर्माने का डर क्यों? लोगों को तो खुश होना चाहिए कि भारत में विदेश की तरह सड़कें सुरक्षित हो जाएंगी, जहां लोग अनुशासन के साथ यातायात के नियमों का पालन करते हैं। क्या इंसानों की जान की कीमत नहीं है?’’
बुनियादी रूप से बात सही है। यदि हम यातायात के सभी नियमों का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं और हमारे पास सारे वांछित प्रामाणिक दस्तावेज उपलब्ध हैं तो फिर डरने की जरूरत क्या है। ट्रैफिक लाइट तोड़ने का जुर्माना पांच रुपए हो या पांच हजार रुपए, हमें भरना तो तभी पड़ेगा ना जब हम उसका उल्लंघन करेंगे। कानून का पालन करने पर जोर देने के बजाय, कानून तोड़ने पर लगने वाले जुर्माने को लेकर हायतौबा मचाना कुछ जमता नहीं।
हां, कुछ बातें हैं जो नए कानून में नागरिकों के साथ साथ ट्रैफिक पुलिस पर भी लागू होनी चाहिए। पहली तो यह कि पुलिस खुद सारे नियमों का पालन कर उदाहरण प्रस्तुत करे। दूसरे यह कि चालान की प्रक्रिया ऐसी विसंगतिपूर्ण न हो कि वह जगहंसाई का या कानून का मखौल उड़ाने का सबब बने। इसके लिए पुलिस वालों को भी अलग से प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है।
और सबसे बड़ी बात… दुर्घटनाएं केवल वाहनों के कागजात पूरे न होने या असावधानी से गाड़ी चलाने के कारण ही नहीं होती। सरकार को सोशल मीडिया पर चल रहे उस संदेश पर भी ध्यान देना चाहिए जो कहता है कि- ट्रैफिक के सिग्नल भी ठीक हों, सड़कों के गड्ढे दुरुस्त किए जाएं, रोशनी का पर्याप्त इंतजाम हो, सड़कों पर आवारा मवेशी न घूमें, अतिक्रमण हटाए जाएं…
याद रखें, कानून का पालन करवाने से पहले यह देखना भी जरूरी है कि पालन करने लायक स्थितियां भी हैं या नहीं…