पहले बनाने में जनता की जेबकटी, अब तोड़ने में कटेगी

मध्‍यप्रदेश की राजधानी भोपाल के बस रैपिड ट्रांजिट सिस्‍टम (बीआरटीएस) कॉरिडोर में मंगलवार की रात एक वाहन रेलिंग से टकरा जाने की घटना के बाद वाहन में सवार घायल युवक की कथित रूप से पुलिस पिटाई के कारण हुई मौत ने भोपाल में न सिर्फ पुलिस सिस्‍टम पर बल्कि टैफिक सिस्‍टम पर भी एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

दुर्घटना में घायल युवक को अस्‍पताल ले जाने के बजाय थाने ले जाकर उसकी कथित पिटाई और बाद में मौत हो जाने के बाद सरकार ने मामले की न्‍यायिक जांच के आदेश देते हुए इस मामले में बैरागढ़ थाने के टीआई समेत पांच पुलिस वालों को निलंबित कर दिया है। परंपरानुसार मुख्‍यमंत्री ने कहा है कि मामले में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

इस दुर्घटना के बहाने मध्‍यप्रदेश में पुलिस व्‍यवस्‍था और अपराध आदि पर हम बाद में बात करेंगे। आज बात उस बीआरटीएस कॉरिडोर की जिसमें जा रहा वाहन दुर्घटनाग्रस्‍त होने के बाद यह घटना हुई। दरअसल भोपाल का बीआरटीएस कॉरिडोर अपने शुरुआती दिनों से ही विवाद में रहा है। पहले अपने निर्माण को लेकर और बाद में उसके जरिये होने वाले बसों के संचालन को लेकर।

भोपाल बीआरटीएस कॉरिडोर मिसरोद से बैरागढ़ तक करीब 24 किमी लंबा है। सरकारी दस्‍तावेजों के मुताबिक शहरवासियों को बेहतर सार्वजनिक परिवहन सुविधा देने के लिहाज से इसकी आरंभिक योजना 10 नवंबर 2006 को मंजूर हुई थी और संशोधित योजना की मंजूरी 21 जून 2011 को मिली। 368.62 करोड़ की इस परियोजना में जेएनएनयूआरएम के जरिये केंद्र सरकार की और मध्‍यप्रदेश सरकार दोनों की भागीदारी थी। मूल योजना के तहत 24 किमी लंबाई में 30 मीटर चौड़ाई वाला एक कॉरिडोर बनाया जाना था जिसमें दो रेलवे ओवर ब्रिज और एक फ्लाईओवर शामिल था।

वैसे तो इस परियोजना के बारे में और भी बहुत सी तकनीकी व अन्‍य जानकारियां हैं, लेकिन उनके ब्‍योरे में जाने का यहां कोई मतलब नहीं है। मोटा मोटी मामला यह था कि भोपाल के लोग कम खर्च में, ट्रैफिक जाम से बचते हुए, अपेक्षाकृत तेज गति से सफर कर सकें इसलिए इस योजना को लागू किया गया। कहने को बीआरटीएस बसों का संचालन 27 सितंबर 2013 से शुरू हो गया और आधिकारिक सूत्रों का दावा है कि आज प्रतिदिन करीब सवा लाख लोग इस सेवा से लाभान्वित हो रहे हैं।

लेकिन हकीकत में यह योजना सड़कों के लिए जमीन की उपलब्‍धता और अतिक्रमणों के चलते अपने मूल रूप में कभी भी पूरी नहीं हो सकी, आज भी इसका कॉरिडोर आधा अधूरा ही है। कई जगह बीआरटीएस की बसें डेडिकेटेड कॉरिडोर के बजाय सामान्‍य ट्रैफिक के साथ चल रही हैं। यदि कमियों की बात करें तो न तो इन बसों के लिए आज तक ठीक से बस स्‍टॉप बन पाए हैं और न ही कॉरिडोर से जुड़ी सर्विस लेन का काम पूरा हुआ है। बसों के ढांचे भी जर्जर हो चले हैं और उनके द्वारा फैलाया जा रहा प्रदूषण भोपाल की हवा को और खराब कर रहा है।

सबसे बड़ी बात है इन बसों के संचालन में होने वाली लाप‍रवाहियों की। यह आम शिकायत है कि बीआरटीएस के ड्रायवर बहुत खतरनाक ढंग से बसों को चलाते हैं। बीआरटीएस कॉरिडोर क्‍या कहर ढा रहा है इसका अनुमान उस मीडिया रिपोर्ट से लगाया जा सकता है जो कहती है कि 2016 से 2018 के बीच इस कॉरिडोर में 121 दुघाटनाएं हुईं और 21 लोगों की जान गई।

इन बसों को चलाने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी बताया गया था कि इससे सार्वजनिक परिवहन की बसें एक अलग डेडिकेटेड कॉरिडोर में चलेंगी और इन बड़ी बसों के कारण सामान्‍य ट्रैफिक में होने वाला व्‍यवधान और ट्रैफिक जाम कम होगा। लेकिन कॉरिडोर बनते समय ही यह साफ लग गया था कि इसके रूट में बहुत से ऐसे हिस्‍से हैं जहां सड़कों के लिए उतनी जगह ही नहीं है कि कॉरिडोर भी बन जाए और उसके दोनों ओर आने-जाने वाली ट्रैफिक के लिए भी सड़कें उपलब्‍ध हों।

नतीजा यह हुआ कि कॉरिडोर के दोनों ओर की सड़कों पर सामान्‍य ट्रैफिक का दबाव बढ़ता गया और अब हालत यह है कि कॉरिडोर खाली पड़ा रहता है और उसके दोनों ओर आए दिन लंबा जाम लगा रहता है। बीआरटीएस शुरू हो जाने के कुछ समय बाद ही चूंकि यह स्थिति बनने लगी थी इसलिए रह रहकर यह मांग भी उठती रही कि चूंकि इससे फायदा कम और परेशानी ज्‍यादा हो रही है इसलिए कॉरिडोर को खत्‍म कर सारी जगह को सामान्‍य ट्रैफिक के लिए ही इस्‍तेमाल किया जाए।

जब शासन प्रशासन की ओर से कोई फैसला नहीं हुआ तो लोगों ने खुद फैसला कर लिया और वे नियमों का उल्‍लंघन कर, यातायात पुलिस अथवा बीआरटीएस कॉरिडोर के कर्मचारियों को धता बताते हुए अपने वाहन कॉरिडोर में दौड़ाने लगे। दिन में ऐसी घटनाएं अपेक्षाकृत कम होती हैं लेकिन रात को चूंकि कोई देखने सुनने वाला नहीं होता इसलिए रात को कॉरिडोर में सामान्‍य वाहन मजे से दौड़ते रहते हैं। कॉरिडोर सामान्‍य सड़कों की तुलना में खाली रहता है इसलिए वहां दौड़ने वाले ऐसे वाहनों की स्‍पीड भी मनमानी होती है और ज्‍यादातर मामलों में यह तेज गति ही दुर्घटना का कारण बनती है।

बीच में जब ऐसी घटनाएं बढ़ीं तो एक फैसला यह किया गया कि कॉरिडोर के एंट्री पाइंट और बीच के क्रासिंग पर गेट लगा दिए जाएं जो रात में बीआरटीएस की बसों का संचालन बंद होने के बाद बंद कर दिए जाएं, ताकि अन्‍य वाहन कॉरिडोर में न घुस सकें। लेकिन यह प्रयोग भी असफल रहा। कहीं ये गेट ही दुर्घटनाओं का कारण बने तो कहीं लोगों ने इन्‍हें तोड़ डाला। अब बीआरटीएस भोपाल की छाती पर ऐसा दाग बन गया है जिसे सरकार सीने से लगाए रखना चाहती है और लोग उसे मिटा देने पर उतारू हैं।

मंगलवार को हुई घटना के बाद नगरीय विकास एवं आवास मंत्री जयवर्धनसिंह ने कहा है कि बीआरटीएस कॉरिडोर हटाने के बारे में जल्‍दी ही कोई फैसला किया जाएगा। इसके लिए विशेषज्ञों की राय ली जा रही है। 25 जून को दिल्ली से सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर) की टीम इसका निरीक्षण करने आएगी। उसकी रिपोर्ट जुलाई तक संभावित है और उसके बाद ही कॉरिडोर की किस्‍मत का फैसला होगा। दरअसल दिल्ली में भी बीआरटीएस कॉरिडोर तोड़ने का फैसला इसी टीम की रिपोर्ट के बाद लिया गया था।

लेकिन यह कॉरिडोर भी यूं ही नहीं टूट जाने वाला। रिपोर्ट्स कहती हैं कि इसके तोड़ने पर भी करीब 100 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। लंबे समय तक ट्रैफिक का फजीता होगा सो अलग। यानी हमारे हुक्‍मरानों के बगैर सोचे समझे और जमीनी हकीकत को जाने, किए गए एक फैसले की इतनी बड़ी कीमत एक बार फिर जनता को ही चुकानी होगी।

लेकिन क्‍या इससे भी समस्‍या का हल निकल आएगा? समस्‍या आखिर है क्‍या, इस पर आगे बात करेंगे…

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