ये बैंक हैं या खातों पर छुरी चलाने वाले कसाई?

बैंकिंग सेक्‍टर से एक चौंकाने वाली खबर आई है। बताया गया है कि देश की बैंकों ने अपने यहां खाता खोलने वाले उन लोगों से करीब पांच हजार करोड़ रुपए झटक लिए जिन्‍होंने अपने खातों में न्‍यूतम बैलेंस नहीं रखा था। जुर्माने के तौर पर वसूली गई इस राशि में से 2434 करोड़ रुपए देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्‍टेट बैंक ने वसूले हैं।

खबरों के मुताबिक वित्‍त वर्ष 2017-18 में अपने खातों में न्‍यूनतम बैलेंस न रखने वाले ग्राहकों से वसूले गए जुर्माने की राशि में पिछले वित्‍त वर्ष की तुलना में काफी इजाफा हुआ है। यानी बैंकों को बैठे बिठाए हजारों करोड़ रुपए यूं ही मिल रहे हैं। यह स्थिति तब है जब सरकार की जन-धन योजना के तहत बैंकों ने 30 करोड़ 80 लाख ग्राहकों के खाते खोले हैं और इन खातों में न्‍यूनतम बैलेंस राशि रखना जरूरी नहीं है।

आपको बता दूं कि देश का सबसे बड़ा भारतीय स्‍टेट बैंक यानी एसबीआई साल 2012 तक खाते में न्यूनतम राशि नहीं रखने पर कोई जुर्माना वसूल नहीं करता था। उसने ग्राहकों की जेब काटने का यह काम 1 अप्रैल 2017 से फिर शुरू किया। जब इसका भारी विरोध हुआ तो बैंक ने जुर्माने की व्‍यवस्‍था तो वापस नहीं ली, हां इतना रहम जरूर खाया कि खाते में अनिवार्य रूप से बनाए रखी जाने वाली न्‍यूनतम राशि की सीमा 1 अक्टूबर 2017 से कम कर दी।

खाते में न्‍यूनतम पैसा न रखने वाले ग्राहकों से जुर्माना वसूलने को लेकर बाकी बैंक भी पीछे नहीं रहे हैं। पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने पिछले वित्त वर्ष में ऐसे ग्राहकों से 211 करोड़ रुपये की पेनाल्टी वसूली। इसी तरह निजी क्षेत्र के एचडीएफसी बैंक ने 590 करोड़ रुपये से अधिक का, एक्सिस बैंक ने 530 करोड़ और आईसीआईसीआई बैंक ने 317 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला।

जिन लोगों को जानकारी नहीं है उनके लिए यह जरूरी सूचना हो सकती है कि एसबीआई के खाते में मेट्रो शहरों में तीन हजार, सामान्‍य शहरों में दो हजार और ग्रामीण क्षेत्रों में एक हजार रुपए का बैलेंस रखना जरूरी है। इसी तरह निजी क्षेत्र के बैंकों एचडीएफसी और आईसीआईसीआई में मेट्रो शहरों के लिए 10 हजार और सामान्‍य शहरों के लिए पांच हजार का बैलेंस आवश्‍यक है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह राशि क्रमश: पांच हजार और एक हजार है।

बैंक अपने यहां खोले गए खातों में जमा राशि का औसत निकालकर इस बात का आकलन करती हैं कि संबंधित ग्राहक ने न्‍यूनतम बैलेंस खाते में रखा या नहीं। यदि उसके खाते में औसत न्‍यूनतम बैलेंस नहीं रहता तो उससे यह जुर्माना वसूला जाता है। यानी एक तरह से यह बैंक खाते पर थोपा गया जजिया है, जो आपको देना ही पड़ेगा।

नोटबंदी के बाद बैंकों के पास अथाह राशि जमा हुई थी और उस समय यह अफवाह उड़ाई गई थी (हां, मैं उसे अफवाह ही कहूंगा) कि अब बैंकों के पास पूंजी की उपलब्‍धता इफरात से है और इसका फायदा लोगों को मिलेगा। उस समय सरकार ने कैश लेनदेन के बजाय डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देते हुए उस पर इन्‍सेंटिव देने के भी सब्‍जबाग दिखाए थे, लेकिन वे सारी बातें छलावा निकलीं।

धीरे धीरे ऐसी सारी घोषणाओं की हवा निकलती गई और सामान्‍य ग्राहक छला जाता रहा। डिजिटल लेनदेन पर होने वाले इन्‍सेंटिव भी धीरे धीरे बंद होते गए क्‍योंकि बैंकों ने दलील दी कि इस तरह के इन्‍सेंटिव देने से उन्‍हें घाटा होगा जिसे सहन करने की स्थिति में वे नहीं हैं। इधर लोग बैंकों की और सरकार की दादागिरी सहने को मजबूर होते गए।

सवाल यह उठता है कि ये बैंक जो जनता के पैसों से ही चल रहे हैं आखिर हैं किसके लिए? क्‍या उनकी भूमिका आम जनता और हाड़तोड़ मेहनत कर अपनी थोड़ी बहुत जमा पूंजी सुरक्षा के लिहाज से बैंकों में जमा करवाने वाले लोगों से पैसा लेकर उन पूंजीपतियों पर लुटा देने तक ही सीमित है, जो हजारों करोड़ का कर्जा लेकर विदेश भाग जाते हैं?

यह कैसी व्‍यवस्‍था है भाई? एक तरफ देश की अर्थव्‍यवस्‍था के लुटेरों को ये ही बैंक बिना कोई पुख्‍ता छानबीन या आधार के सैकड़ों हजारों करोड़ रुपए का कर्ज देती हैं और तब जागने का नाटक करती हैं जब वे देश छोड़कर भाग चुके होते हैं। दूसरी तरफ अपने खाते में हजार, दो हजार या तीन हजार रुपये की राशि का बैलेंस न रख पाने वाले व्‍यक्ति से शाइलाक की तरह जुर्माने का मांस नोच लेती हैं।

अगर सामान्‍य ढंग से या मानवीय आधार पर सोचें तो आखिर कोई व्‍यक्ति क्‍यों अपने खाते को खाली करना चाहेगा। ऐसा वही व्‍यक्ति करेगा जो पाई पाई को मोहताज होने जा रहा हो और उसके पास अपने रक्‍त की अंतिम बूंद की तरह अपने खाते का अंतिम रुपया तक निकाल लेने के अलावा कोई विकल्‍प न बचा हो।

अपवादों की बात छोड़ दीजिए, लेकिन मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि जिन खातेदारों से ये पांच हजार करोड़ का जुर्माना वसूला गया है, उनमें से ज्‍यादातर ऐसे रहे होंगे कि यदि वे अपने खाते में रुपया बचाए रख सकते होते तो जरूर रखते… किसी मजबूरी ने ही उन्‍हें अपना खाता खाली करने को विवश किया होगा। ऐसे में उनसे सहानुभूति रखने के बजाय हम उलटे उनका खून चूस रहे हैं।

मीडिया में खबरें आई हैं कि देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई को वर्ष 2017-18 में 6547 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। यदि उसने न्‍यूनतम बैलेंस खाते के जुर्माने के रूप में करीब 2434 करोड़ रुपये नहीं वसूले होते तो यह घाटा और अधिक होता। तो क्‍या अब बैंके अन्‍यान्‍य कारणों से होने वाले घाटों की भरपाई सामान्‍य खातेदारों से इस तरह रक्‍तपिपासु बनकर करेंगी?

और यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि खातेदार ने जो पैसा निकाला है वह उसीका पैसा है। बैंक के बाप का माल नहीं। देश का नागरिक बैंकों में यदि पैसा जमा करवा रहा है तो वह देश के विकास में भागीदार बन रहा है। बैंकों का अस्तित्‍व तभी तक है जब तक खातेदार हैं। पहले बैंक ग्राहकों को सेवा देते थे, आज वे हर काम की कीमत वसूलते हैं। पैसा जमा करने की भी और पैसा निकालने की भी।

और सरकार आप…? आप को क्‍यों सांप सूंघ गया है… एक तरफ आप वोट के लिए लोगों को हजारों लाखों करोड़ की रियायतें यूं ही लुटा देते हैं, चुनाव आते ही वैध को अवैध करने का राजनीतिक धंधा करने लगते हैं, क्‍या आपको बैंक खातेदारों का दुख दर्द दिखाई नहीं देता?

 

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