मेरा मानना है कि मोदी सरकार में नितिन गडकरी उन एक दो मंत्रियों में शामिल हैं जिनकी रीढ़ अभी पूरी तरह गायब नहीं हुई है। इसीलिए वे अपने विभाग में अपने हिसाब से थोड़ा बहुत काम कर पा रहे हैं और खुद को विवादों से भरसक बचाए हुए भी हैं। मैं यह नहीं कहता कि वे पूरी तरह निर्विवाद या अजातशत्रु हैं लेकिन उन्होंने इस सरकार में अपनी अलग जगह बनाई हुई है।
गडकरी को आज याद करने की वजह रविवार को आया उनका एक बयान है। उन्होंने आरक्षण की मांग के मुद्दे पर बहुत ही साफगोई से कहा है कि अगर किसी समुदाय को आरक्षण मिल भी जाता है तो उससे क्या होगा? आखिर नौकरियां हैं कहां जो मिलेंगी? आरक्षण मिल जाना रोजगार की गारंटी नहीं है।
मोदी सरकार में वरिष्ठ मंत्री गडकरी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब महाराष्ट्र में मराठा समुदाय आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग कर रहा है। उनकी मांग है कि मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में 16 प्रतिशत आरक्षण मिले। जबकि संविधान में आरक्षण का प्रावधान जाति के आधार पर है न की आर्थिक आधार पर।
औरंगाबाद दौरे में गडकरी से मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर सवाल पूछा गया था। मीडिया ने जानना चाहा था कि मराठों के वर्तमान आंदोलन और अन्य समुदायों द्वारा इस तरह की मांग पर उनका क्या कहना है। इस पर भाजपा के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, ‘‘मान लीजिए कि आरक्षण दे दिया जाता है, लेकिन नौकरियां ही नहीं हैं। बैंकों में आईटी के कारण नौकरियां कम हुई हैं, सरकारी भर्ती रुकी हुई है, नौकरियां कहां हैं?’’
गडकरी के हवाले से आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्होंने कहा- ‘’आरक्षण का फायदा शिक्षण क्षेत्र में स्कॉलरशिप के रूप में मिल सकता है। एक सोच कहती है कोई भी गरीब पहले गरीब है, उसके बाद वह हिन्दू, मुस्लिम, मराठा या किसी अन्य जाति का है। तो गरीब की सबसे ज्यादा मदद होनी चाहिए।‘’
केंद्रीय मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि राजनीतिक दलों को भी इसका हल खोजना होगा। मुख्यमंत्री (देवेंद्र फडणवीस) अपना दायित्व निभा रहे हैं। मैं सभी से अनुरोध करता हूं कि वे शांति बनाए रखें और समस्या का समाधान निकालने में सहयोग करें।
इससे पहले गडकरी के बयान को लेकर एक पंगा भी हो गया। एजेंसी से पहले यह रिपोर्ट कर दिया गया कि गडकरी ने कह दिया है कि ‘’जाति के आधार पर नहीं, बल्कि गरीबी के आधार पर आरक्षण देने की जरूरत है, क्योंकि गरीब की जाति, भाषा और क्षेत्र नहीं होता है।‘’ इस कथित बयान को केंद्र सरकार के आरक्षण समाप्त करने के इरादे से जोड़ दिया गया और बात बढ़ने लगी।
इसी बीच गडकरी की तरफ से स्पष्टीकरण आया जिसमें उन्होंने कहा- ‘’मेरा ध्यान मेरे हवाले से चल रही कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की ओर आकर्षित किया गया है। (मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि) जातिगत आधार को बदलकर आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का केंद्र का कोई इरादा नहीं है।‘’ बाद में एजेंसी ने भी गडकरी के हवाले से चल रही खबरों पर यह कहते हुए सफाई दी कि मूल बयान मराठी में होने के कारण अनुवाद की गलती से यह भ्रम फैला।
मामला जो भी हो, लेकिन गडकरी की इस बात में खासा दम है कि जब देश में नौकरियां उपलबध ही नहीं हैं तो क्या आरक्षण और क्या गैर आरक्षण। यदि आपको आरक्षण मिल भी जाए तो उसका फायदा क्या होगा, बगैर नौकरी के आप खाली आरक्षित वर्ग का झुनझुना पकड़े घूमते रहेंगे बस…
दरअसल मूल सवाल देश में नौकरियां पैदा करने का है। जो सरकारी क्षेत्र सबसे ज्यादा आरक्षित वर्ग को नौकरी देता है वहां लगातार नौकरियों की संख्या कम होती जा रही है। अब ज्यादातर सरकारें अपने यहां कर्मचारियों को ठेके पर और निश्चित समायावधि के लिए ही रखती हैं।
एक समय था जब सरकारी नौकरियों की भरमार हुआ करती थी और उसका जलवा भी था। पर अब तो सरकार नौकरियां निकालती ही नहीं। जो पद हैं भी उनमें भी लगातार कमी या कटौती की जा रही है। सामान्य वर्ग के लिए तो पहले भी अवसर कम थे, अब तो आरक्षित वर्ग के लिए भी कम होते जा रहे हैं।
इसलिए बड़ा सवाल नौकरियां पैदा करने का है। जिस गति से डिग्रीधारी युवाओं की संख्या बढ़ रही है, नौकरी के अवसर और भी कम से कम होते जा रहे हैं। यहां डिग्री की गुणवत्ता की बात न भी करें तो भी हाथ में डिग्री लेकर निकलने वाला हर युवा जब नौकरी न मिलने से निराश होता है तो उसकी निराशा समाज को बहुत भारी पड़ती है।
आप कुछ अंदाजा नहीं लगा सकते कि पढ़ लिखकर नौकरी न मिलने पर वह युवा भटकते भटकते कौनसी राह पकड़ लेगा। ऐसे युवाओं को गुमराह करना और उन्हें गलत रास्ते पर ले जाना बहुत आसान होता है। खासतौर से आतंकी गतिविधियां चलाने वाले गिरोह के लिए ऐसे युवा बड़ा आसान शिकार होते हैं।
अभी हाल ही में कश्मीर में एक घटना हुई है जिसमें बी.टेक. पास एक युवा आतंकवादी संगठन से जुड़ गया था। उसके बारे में खबर सामने आने पर मचे हो हल्ले को 24 घंटे भी नहीं बीते होंगे कि खबर आ गई कि वह युवक पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। यानी पढ़ा लिखा युवा सही रास्ता न मिलने पर देशविरोधी गतिविधियों की राह पर चलता हुआ मौत का निवाला बनता जा रहा है…
तो जब नितिन गडकरी यह कहते हैं कि आरक्षण से क्या फायदा होगा तो उनकी बात को ध्यान से सुना और गुना जाना चाहिए। सिर्फ आरक्षण का हल्ला मचाने और अपने सीने पर आरक्षित वर्ग का बिल्ला चिपका लेने से ही बात नहीं बनने वाली।
जब तक नौकरी के अवसरों का निर्माण नहीं होता और वे अवसर समान रूप से उपलब्ध नहीं करवाए जाते तब तक विकास के तमाम दावों पर सवाल उठाए जाते रहेंगे। बहुत कठिन और ‘जबानबंद’ परिस्थितियों में भी सच बात को जुबां पर लाने के लिए गडकरी की सराहना की जानी चाहिए…