सारा प्रस्‍ताव एक तरफ, राहुल की झप्‍पी एक तरफ

क्‍या करूं भाई आज मैं भी टीवी चैनलों की तरह एक ही घटना को दिन भर घसीटने की मनोवृत्ति का शिकार हो गया हूं। मेरी सुई भी आज एक ही जगह आकर ऐसी अटकी है कि वहां से निकलने का नाम ही नहीं ले रही। मैं मोदी सरकार के खिलाफ अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर संसद में दिन भर चली बहस को लेकर कुछ लिखना चाहता था,लेकिन मेरी कलम ‘राहुल की झप्‍पी’ से आगे ही नहीं बढ़ पा रही।

अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपना भाषण खत्‍म करने के बाद जो किया वह भारतीय संसद में पहले कभी नहीं हुआ। सबको चौंकाते हुए राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट की तरफ बढ़े और इससे पहले कि मोदी कुछ समझ पाते राहुल ने मोदी को गले लगा लिया।

अरे.. अरे… जरा रुकिए… मैं ऐसा कैसे कह सकता हूं, दरअसल संसद में जो हुआ उसको लेकर बहुत कन्‍फ्यूजन है। उस घटना के वीडियो को यदि आप बार बार देखें तो आपको भी समझने में टाइम लगेगा कि राहुल गांधी ने मोदी को गले लगाया या वे जाकर उनके गले लग गए…(इस बात को कुछ टीवी चैनल गले पड़ने वाले मुहावरे से जोड़कर भी देख रहे हैं…)

आमतौर पर हमारे यहां प्‍यार और स्‍नेह के वशीभूत होकर लोग आपस में एक दूसरे से गले मिलते हैं। परंपरा तो यह रही है कि उम्र, अनुभव या पद में यदि कोई व्‍यक्ति बड़ा है तो वह अपने से छोटे को गले लगाकर अपने स्‍नेह का प्रदर्शन करता है। इन तीनों स्‍तरों पर कोई छोटा व्‍यक्ति किसी बड़े के गले तभी लगता है जब उसके मन में कोई संरक्षण पाने या अपने से बड़े का स्‍नेहाकांक्षी होने का भाव हो।

अब संसद वाले प्रसंग में इसमें से कौनसी बात हुई होगी इसका फैसला आप करें। वैसे भी राजनीति में अब गले मिलने के दिन लद गए हैं। ये गला काट लेने के दिन हैं, पीठ में छुरा भोंक देने के दिन हैं… ऐसे में यदि कोई गले मिल ले या गले लग जाए तो ताज्‍जुब और शक दोनों होना स्‍वाभाविक है…

मैंने संसद की घटना को देखने के बाद यूं ही गूगल पर सर्च किया कि आखिर चिकित्‍सा शास्‍त्र और मनोविज्ञान गले लगने के बारे में क्‍या कहता है। इस पर एक लंबी सूची सामने आ गई जो बता रही थी कि गले लगने के क्‍या क्‍या फायदे हैं… आइए आप भी जानिए उनके बारे में और फिर अंदाज लगाइए कि संसद में किसको कौनसा फायदा हुआ होगा…

डर से छुटकारा: कहते हैं डरना मनुष्‍य के स्‍वभाव में शामिल है। डरता हर कोई है लेकिन हरेक की वजह अलग होती है। किसी बात से डर लगने पर सबसे बेहतर तरीका है अपने आसपास मौजूद किसी भी व्‍यक्ति के गले लग जाना। ऐसा करने से डर कम हो जाता है और एक आश्‍वस्ति भाव मन में जागता है…

लेकिन राहुल गांधी डरे हुए थे, ऐसा तो उनके भाषण से कहीं लगा नहीं। और चलो एक बार मान भी लिया जाए कि उनके मन में किसी बात को लेकर कोई डर रहा होगा और उसे दूर करने के लिए किसी से लिपटना ही था तो संसद में उनके आसपास और भी लोग मौजूद थे, वे मोदी जी से ही जाकर क्‍यों लिपटे…

आत्मविश्वास में बढ़ोतरी: गले मिलने का दूसरा बड़ा फायदा यह है कि यह आपके आत्‍मविश्‍वास और मनोबल को बढ़ाता है। मनोविज्ञानी कहते हैं कि यदि आपको अपने आप पर विश्वास नहीं है, तब कोई यदि आपको गले लगाकर आपका मनोबल बढ़ाए तो आप में कुछ कर दिखाने की ताकत आ जाती है।

पर संसद में तो राहुल खुद जाकर मोदी से गले मिले। ऐसे में कौन किसका मनोबल और आत्‍मविश्‍वास बढ़ा रहा था? गले मिलने की घटना के बाद वाले दृश्‍य को देखें तो मोदी ने राहुल को पास बुलाकर उनकी पीठ थपथपाई, तो क्‍या मोदीजी राहुल का मनोबल बढ़ा रहे थे…?

जिंदगी में सकारात्मकता : डॉक्‍टर कहते हैं कि गले लगने से सोच में बदलाव आता हैं और व्‍यक्ति की सोच सकारात्‍मक हो जाती है। यह सकारात्‍मकता आपको सफलता की ओर ले जाती है…

तो क्‍या यह माना जाए कि संसद की घटना से भारतीय राजनीति में कोई सकारात्‍मकता आने वाली है। क्‍या आगे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी एक दूसरे के खिलाफ कोई भी छींटाकसी या आरोप प्रत्‍यारोप का खेल नहीं खेलेंगे? लेकिन देश में आज राजनीति का जो स्‍वरूप बना दिया गया है उसमें ऐसा होना संभव तो नहीं दिखता… आज की राजनीति तो एक दूसरे को नीचा दिखाने की है, ऊंचा उठाने की नहीं…

गले लगने के ही सिलसिले में मैंने गूगल पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के एक न्‍यूरोलॉजिस्‍ट का बयान देखा कि जब दो व्यक्ति गले मिलते हैं तो वे एक दूसरे में ऊर्जा का आदान प्रदान करते हैं। यह आदान प्रदान बहुत कुछ पूंजी निवेश की तरह होता है। इस निवेश के बाद दोनों पक्षों का आदान प्रदान बढ़ता है।

इस थ्‍योरी को यदि मंजूर करें तो हमें मानना पड़ेगा कि राहुल गांधी ने संसद में जो कुछ किया उससे उनमें और मोदी जी दोनों में ऊर्जा का आदान-प्रदान जरूर हुआ होगा। अब देखना बस यह है कि आने वाले चुनाव के दौरान दोनों नेता अपनी अपनी इन ऊर्जाओं का इस्‍तेमाल कैसे करते हैं…

वैसे संसद की घटना के बाद सोशल मीडिया पर एक मजाक चल पड़ा है जो कहता है कि मोदीजी को अंतर्राष्‍ट्रीय नेताओं से गले मिलने की बहुत आदत है, कोई चाहे न चाहे वे किसी भी राष्‍ट्राध्‍यक्ष से लिपट जाते हैं, राहुल ने जो किया, उसके बाद उन्‍हें पता चल गया होगा कि कोई जबरन आकर आपसे लिपट जाए तो कैसा महसूस होता है…!!!

क्‍या आप भी ऐसा ही मानते हैं…???

 

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