हालांकि लोग तो उस घटना को पूरी तरह भूल चुके होंगे, लेकिन फरवरी 2017 में हुई वह घटना आज याद की जानी चाहिए। मामला कारगिल के एक शहीद की बेटी गुरमेहर कौर को सोशल मीडिया पर रेप की धमकी दिए जाने से जुड़ा है। उस समय उस मामले को लेकर जबरदस्त सोशल मीडिया वॉर चला था और सोशल शूरवीर दो धड़ों में बंट गए थे।
मैंने उस घटना को लेकर एक मार्च 2017 के अपने इसी कॉलम में कुछ मुद्दे उठाए थे। आज करीब डेढ़ साल बाद पहले जरा उन्हीं बातों को दोहराना चाहता हूं। गुरमेहर कौर ने दिल्ली के रामजस कॉलेज में छात्रों के दो गुटों में हुई मारपीट की घटना को लेकर कोई कमेंट किया था और उसी के जवाब में रोहन कुमार नाम के किसी शख्स ने उसे सार्वजनिक रूप से रेप की धमकी दी थी।
घटना के एक सप्ताह बाद भी आरोपी के न पकड़े जाने को लेकर मेरा कहना था- ‘’मैं तो इस समाज, इस देश और यहां की सरकार में मौजूद ‘कानून के रखवालों’ से पूछना चाहूंगा कि क्या देश में किसी को भी, किसी महिला का रेप कर डालने की इजाजत है? और यदि ऐसा नहीं है तो वह सांड, जिसका नाम फेसबुक पर रोहन कुमार बताया जा रहा है, आज तक छुट्टा कैसे घूम रहा है?’’
रोहन कुमार वाली घटना को करीब डेढ़ साल होने को आया है और इस दौरान यदि आप गूगल पर ‘रेप की धमकी’ विषय को सर्च करें तो लगभग एक दर्जन घटनाएं आपको मिल जाएंगी। यानी इस डेढ़ साल की अवधि में ही हमारे इस ‘सामाजिक मंच’ ने इतनी तरक्की कर ली है कि वह महिलाओं और बच्चियों को सरेआम दी जाने वाली बलात्कार की धमकी धड़ल्ले से प्रसारित करने लगा है।
रेप इन दिनों रोज का मामला हो गया है। हमारे अपने मध्यप्रदेश में ही रोज कहीं न कहीं से इस तरह की खबरें आ रही हैं। कहीं गैंग रेप है तो कहीं बच्चियों के साथ रेप… इन घटनाओं को लेकर सोशल मीडिया पर तरह तरह के कमेंट भी चल रहे हैं। कहीं दोषियों को सरेआम फांसी देने की बात है तो कहीं ऐसी घटनाओं के पीछे समाज में निरंतर गिरते सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को दोषी बताया जा रहा है।
रेप की घटना हो जाने के बाद तो प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ जाती है लेकिन ये जो रेप की धमकियां सोशल मीडिया पर दी जाने लगी हैं उनका क्या? अब अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हो चले हैं कि वे अपराध को अंजाम देने से पहले बाकायदा उसका ऐलान करते हैं। रेप की धमकी को एक वीरतापूर्ण कृत्य की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है।
ऐसा ताजा मामला कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी को ट्विटर पर दी गई धमकी का है। यह धमकी देने वाले ने प्रियंका को लिखा कि वह उनकी बेटी का रेप करना चाहता है, वे अपनी बेटी को उसके पास भेजें। गुरुवार को खबर आई कि पुलिस ने उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है। हो सकता है यह मामला हाईप्रोफाइल हो जाने के कारण पुलिस ने तत्परता से कार्रवाई की हो, लेकिन सामान्य तौर पर सोशल मीडिया पर चलने वाले ऐसे आपराधिक संदेशों पर कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
हाल ही में बच्चा चोरी के शक में भीड़ द्वारा लोगों को पीट पीट कर मार दिए जाने की घटनाओं से केंद्र सरकार पर दबाव बना है और वह हरकत में आई है। गुरुवार को उसने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को इस तरह की घटनाएं सख्ती से रोकने का निर्देश जारी किया। इससे पहले सरकार ने कहा था कि फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म ऐसे भड़काऊ संदेशों के प्रसार में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। उन्हें ऐसे संदेशों पर रोक लगानी होगी।
दरअसल ऐसे मामलों में सबसे बड़ी समस्या संदेश भेजने वाले की पहचान और संदेश की प्रामाणिकता को लेकर आती है। चूंकि सोशल मीडिया पर रजिस्टर्ड व्यक्ति की प्रामाणिक पहचान सत्यापित करने का कोई पुख्ता मैकेनिज्म नहीं है, इसलिए लोग छद्म नाम से अपना अकाउंट खोलते हैं और मनमाने संदेश प्रसारित करते रहते हैं।
दूसरा मुद्दा ऐसे भड़काऊ या ललचाने वाले संदेशों को फॉरवर्ड करने का है। लोग आंख मूंदकर ऐसे संदेशों को सच मानते हुए उन्हें धड़ाधड़ फॉरवर्ड करते हैं और देखते ही देखते एक भ्रामक या विध्वंसक संदेश वायरल हो जाता है। ऐसे संदेश एक मिसाइल की तरह समाज पर गिरते हैं और किसी को पता नहीं होता कि वह मिसाइल कहां कितना नुकसान करेगी।
इसके लिए मेरे दो सुझाव हैं। पहला तो यह कि सोशल मीडिया पर व्यक्ति की प्रामाणिक पहचान सुनिश्चित किए जाने का कोई मैकेनिज्म तत्काल बनाया जाना चाहिए। उसके लिए किसी भी प्रामाणिक दस्तावेज को अनिवार्य आधार बनाया जा सकता है। व्यक्ति की वास्तविक पहचान यदि उजागर होगी तो वह ऐसे हिंसक या आपराधिक संदेश भेजने से थोड़ा बहुत परहेज जरूर करेगा।
दूसरा सुझाव संदेशों को लेकर है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म को इस बात के लिए बाध्य किया जाना चाहिए कि वे ऐसी व्यवस्था करें कि कोई भी संदेश चलाने या फॉरवर्ड किए जाने से पहले संबंधित व्यक्ति की जिम्मेदारी भी तय हो जाए। इससे समाज को हानि पहुंचाने वाले तत्वों की पहचान आसानी से हो सकेगी।
इसके लिए यूं किया जा सकता है कि कोई भी संदेश सेंड करने से पहले एक ऑप्शन हो जिसमें भेजने वाले से यह पूछा जाए कि आप उस संदेश के जनक हैं या फिर आप उसे फॉरवर्ड कर रहे हैं। मूल संदेश और फॉरवर्ड संदेश के लिए अलग अलग रंगों वाले निशान, जैसे कि ट्विटर पर प्रामाणिक अकाउंट होल्डर की पहचान के लिए नीले टिक वाला निशान होता है, तय कर दिए जाएं। ऐसा करने से जिसके पास भी वह संदेश पहुंचेगा वह जान सकेगा कि वह मूल रूप से उसके पास आया है या फॉरवर्ड होकर। इससे आपराधिक संदेशों के मामले में व्यक्ति की पहचान जल्द तय हो सकेगी।
कोई भी संदेश तभी आगे बढ़ेगा जब आप मूल संदेश या फॉरवर्ड संदेश वाले ऑप्शन में से किसी एक पर टिक करें। स्पेशल कोडिंग के जरिये यह ऑप्शन भी जोड़ा जा सकता है कि कोई संदेश कितनी बार फॉरवर्ड हुआ। इसके अलावा संदेश भेजने से पहले स्क्रीन पर यह चेतावनी भी आनी चाहिए कि इस संदेश को लेकर कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर आप जिम्मेदार होंगे।
मुझे मालूम है कि ऐसे किसी भी उपाय को सोशल मीडिया बिरादरी आसानी से स्वीकार नहीं करेगी, लेकिन जिस तरह से इस मीडिया के शैतानी पंजे समाज की गरदन पर जकड़ते जा रहे हैं, वहां ऐसे उपाय करना अब बहुत जरूरी हो गया है।