हिन्दी के सुपरिचित हस्ताक्षर बालकवि बैरागी का रविवार 13 मई को देहावसान हो गया। 87 वर्षीय बालकवि जी का जन्म मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की मनासा तहसील के रामपुर गांव में हुआ। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया।
बालकवि जी राजनीति एवं साहित्य दोनों क्षेत्रों से जुडे रहे। वे मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री तथा राज्यसभा के सदस्य रहे तथा हिन्दी काव्य-मंचों पर भी लोकप्रिय रहे। इनकी कविता ओजगुण सम्पन्न हैं। उनके मुख्य काव्य-संग्रह हैं : ‘गौरव-गीत, ‘दरद दीवानी, ‘दो टूक, ‘भावी रक्षक देश के’ आदि।
बालकवि जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रस्तुत है उनकी एक सुंदर कविता
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
नव कोंपल के आते-आते
टूट गये सब के सब नाते
राम करे इस नव पल्लव को
पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
कहीं रंग है, कहीं राग है
कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है
और धूसरित पात नाथ को
टुक-टुक देखे शाख विरहनी
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
पवन पाश में पड़े पात ये
जनम-मरण में रहे साथ ये
“वृन्दावन” की श्लथ बाहों में
समा गई ऋतु की “मृगनयनी”
झर गये पात
बिसर गई टहनी
करुण कथा जग से क्या कहनी ?
– बालकवि बैरागी
(1931-2018)