एक पखवाड़ा मौत के साथ-9
NIMHNS बेंगलुरू से ममता को रेबीज होने की रिपोर्ट तो आ गई थी, लेकिन इसके साथ ही रिपोर्ट में एक पेंच छोड़ दिया गया था। उसे पढ़ने के बाद हमें समझ में नहीं आ रहा था कि हम इस रिपोर्ट को लेकर रोएं या मुसकुराने की गुंजाइश बाकी रखें। रिपोर्ट में कहा गया था- Kindly await results of RFFIT on the second CSF and Serum sample.
हमने डॉक्टरों से पूछा कि इस बात का क्या मतलब समझें? उनका कहना था कि यह शुरुआती रिपोर्ट है अभी ऐसे तीन टेस्ट और होंगे, यदि उसमें एंटीबॉडीज की संख्या बढ़ती है तो यह कन्फर्म हो जाएगा कि रेबीज है भी और वह बढ़ भी रहा है। यानी हमें अभी छह दिन और इंतजार करना था क्योंकि डॉक्टरों के ही मुताबिक एक सैम्पल की रिपोर्ट कम से कम तीन दिन में आती है।
खैर अब हम अपने पेशेंट को रेबीज होने की पहली रिपोर्ट हाथ में लिए, उसे रेबीज न हो सकने की उम्मीद पाले अगली रिपोर्ट का इंतजार करने लगे। इस बीच ममता की एमआरआई और सीटी स्कैन सहित अन्य और जांचें करवाने का सिलसिला चलता रहा। एक बार एमआरआई करवाने का प्लान बनाने के साथ ही डॉक्टरों ने बताया कि हम कोशिश करेंगे कि उसे बेहोशी की स्थिति से बाहर लाकर यह जांच करवाई जाए। इसके लिए कुछ घंटों पहले उसे बेहोश करके रखने वाली दवाई नहीं देंगे ताकि वह थोड़ी चैतन्य अवस्था में आ सके।
उन्होंने ऐसा किया भी, लेकिन ममता को होश नहीं आया। डॉक्टरों ने पहले आठ घंटे की बात कही थी, फिर 10 से 12 घंटे की बात हुई, लेकिन 24 घंटे तक उसके शरीर में वैसी कोई हलचल नहीं हुई, जिसे देखकर कहा जा सके कि वह होश में आ रही है। इस पर डॉक्टरों ने कहा कि हो सकता है दिमाग पर असर ज्यादा हुआ हो, इसलिए हम इनका एक ईईजी करेंगे। ईईजी यानी इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम जिसका मकसद ब्रेन में होने वाली इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को जांचना होता है।
यह टेस्ट हो जाने के बाद हमसे कहा गया कि बेहतर होगा कोई न्यूरोलॉजिस्ट पेशेंट को देख ले। इसके लिए डॉ. अजीत वर्मा का नाम आया। हमने उनसे संपर्क भी किया, लेकिन उनका आना संभव नहीं हो सका। हम दूसरे दिन अक्षय अस्पताल में उन्हें ईईजी रिपोर्ट दिखाने गए। रिपोर्ट देखने के बाद उनका पहला कमेंट था, इससे क्या होने वाला है, यह जांच क्यों कराई? इसका तो कोई मतलब नहीं है। उन्होंने एक अच्छी बात बोली- देखो भई मैं पुराने जमाने का डॉक्टर हूं, मरीज को देखकर बात करता हूं, इन जांचों वांचों में बहुत ज्यादा पड़ता नहीं। इसके बाद उन्होंने सिद्धांता रेडक्रॉस की आईसीयू डॉक्टर से बात कर उन्हें एक दवाई ममता के ट्रीटमेंट में जोड़ने को कहा…
इस बीच भोपाल स्थित एम्स में भी हम ममता के खून और सीएसएफ के सैम्पल भेजकर कई जांचें करवा चुके थे। उनमें पेशेंट को जापानी एन्सेफलाइटिस, हर्पीज सिम्लेक्स वायरस, साइटोमेगालो वायरस, एप्सटीन बार वायरस, पारवो वायरस, एन्टेरो वायरस, वेस्ट नाइल वायरस, वेरिसेला जोस्टर आदि सब निगेटिव पाए गए थे। डॉक्टरों के मुताबिक ममता के बाकी अंग जैसे लीवर, किडनी आदि सामान्य रूप से काम कर रहे थे। उसके बीपी में थोड़ा बहुत उतार चढ़ाव हो रहा था लेकिन वह काबू से बाहर नहीं हुआ था। उसके हृदय की जांच वाली इको कार्डियोग्राफी की रिपोर्ट भी नार्मल थी।
कहने का मतलब यह कि डॉक्टर जो जो जांच कराने को कहते हम कराते जा रहे थे। बस इतना ही था कि ऐसी हर जांच कराने के दौरान ममता की हालत देखकर लगता था कि उसे बहुत तकलीफ हो रही होगी। वह न तो बोल सकती थी और न ही हिलडुल सकती थी लेकिन हम महसूस कर सकते थे कि वह कितने कष्ट में होगी। एमआरआई जैसी जांच के लिए तो उसे अस्पताल से बाहर ले जाना पड़ता। ऐसे में जब डॉक्टरों से कोई गफलत हो जाती तो हमें बहुत गुस्सा आता। जैसे एक बार हम एमआरआई करवाकर लौटे तो उसके बाद ममता को देखने आए डॉक्टरों ने ही यह सवाल उठा दिया कि ब्रेन के साथ साथ स्पाइन की जांच भी क्यों नहीं करवा ली गई? जवाब आया- भूल गए…
मैं एक बात बता दूं, अस्पताल में वो स्थिति बहुत पीड़ादायक होती है जब आपको अपने परिजन के बच सकने और न बच सकने की सूचनाओं के बीच झूलना पड़ता है। ममता के मामले में तो बात ही यहीं से शुरू हुई थी कि यह तो सुनिश्चित मौत का मामला है। परिवारवाले भी अपनी किस्मत को कोसते हुए नियति को स्वीकार करने की मन:स्थिति बना रहे थे। लेकिन लगातार आने वाली निगेटिव या नार्मल रिपोर्टें हमें बार बार खींच कर इस बात पर ले आतीं कि नहीं, ममता बच भी सकती है।
नार्मल या निगेटिव करार दी गई ऐसी हर रिपोर्ट के बाद हमें भ्रमवश ही सही ममता के शरीर में हलचल दिखाई देने लगती। उसे देखने जाने वाले कभी यह सूचना लेकर आईसीयू से उतरते कि ममता ने आंख खोलने की कोशिश की तो कभी कहते उसने हाथ को हिलाडुला कर कोई संकेत दिया। कभी कोई कहता वह बोलने की, कुछ कहने की कोशिश करती दिखती है तो कभी किसी को उसकी आंखों से आंसू बहते दिखाई देते…
जैसाकि अकसर होता है, इस बीच कई लोग कई तरह के सुझाव लेकर आते। कोई कहता ये होम्योपैथी की दवाई है, रामबाण है इसे शुरू कर दो। ऐलोपैथी में तो नहीं पर होम्योपैथी में रेबीज का इलाज है। कोई कहीं से किसी वैद्यजी की पुडि़या लेकर आता। कहीं से कोई भभूत आती तो कहीं से किसी सरोवर का पानी… कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे हरेक नुस्खे के साथ कुछ सफलता की कहानियां भी जुड़ी होतीं।
एक पत्रकार होने के नाते मैं जान रहा था कि ये सब भावनात्मक या आस्थागत उपचार हैं। मैं डॉक्टरों पर अविश्वास नहीं कर रहा था, मैं चिकित्साशास्त्र को भी खारिज नहीं कर रहा था। दुनिया भर में रेबीज के मरीजों का इतिहास गूगल पर खंगालने के बाद मुझे भी ममता के बचने की गुंजाइश कम ही लग रही थी, लेकिन बार बार आने वाली निगेटिव और नार्मल रिपोर्टें मेरे यकीन पर भी हथौड़े चला रही थीं…
कल पढ़ें- और जब हमारे पारिवारिक डॉक्टर ने ममता को देखने के बाद कहा कि…