एक पखवाड़ा मौत के साथ-5
मैं जानता हूं कि कहानी लंबी हो रही है। हो सकता है कुछ लोगों को यह ब्योरा बोरियत भरा लगने लगा हो, लेकिन मेरे लिए इसे बताना और आपके लिए इसे सुनना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह ऐसा मसला है जिससे हर परिवार को एक न एक दिन गुजरना ही पड़ेगा। इस आपबीती को आपके सामने लाने का मकसद ही यह है कि दुर्भाग्य से आपको यदि ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े तो यह पता तो रहे कि आपको कैसे कैसे मंजर से गुजरना पड़ेगा।
और अभी तो कहानी आधी हुई है। अभी भीतर का बहुत कुछ टूटना बाकी है। बहुत कुछ देखना और सुनना बाकी है, वह सब, जो ईश्वर करे कभी किसी को देखना या सुनना न पड़े। मेरा दर्द यह नहीं है कि परिवार के एक सदस्य को हम बचा पाए या नहीं बचा पाए, मेरा दर्द यह है कि वह इंसान, भले ही जिसकी मौत तय हो, क्या यह समाज और यह व्यवस्था उसे सुकून से मरने लायक स्थितियां भी नहीं दे सकती?
नए अस्पताल यानी सिद्धांता रेडक्रास में ममता की जांचों का सिलसिला अनवरत चला। वे जांचें क्यों हो रही हैं और उनसे क्या नतीजा निकल रहा है हमें ठीक ठीक बताने वाला कोई नहीं था। डॉक्टर कहते आज सीटी स्कैन करवाना है, हम कहते करवा लीजिए। वे कहते आज एमआरआई करवाना है, हम कहते जैसा आप चाहें…! कभी वे कहते आज एक न्यूरोलॉजिस्ट को बुलाएंगे, हम तुरंत उसकी हामी भर देते।
और होता क्या? वह भी सुन लीजिए। एक बार हमें बताया गया कि ममता को एमआरआई के लिए भेजना है। कहने की जरूरत नहीं कि एमआरआई भी उसी सेंटर पर होना था जो अस्पताल ने तय कर रखा है। वहां से एंबुलेंस आई, साथ में एक डॉक्टर आया। वह ऊपर गया और नीचे आकर बोला, पेशेंट का बीपी ठीक नहीं है उसे नहीं ले जा सकते।
अब ये देखना अस्पताल की जिम्मेदारी थी कि पेशेंट एमआरआई करवाने की स्थिति में है या नहीं। एमआरआई सेंटर की एंबुलेंस को तभी बुलवाया जाना चाहिए था, लेकिन कहीं कोई कोआर्डिनेशन नहीं था। किसी डॉक्टर ने कहा इसका एमआरआई करवाओ, स्टाफ ने आंख मूंदकर एंबुलेंस बुलवा ली। उसने आकर कह दिया पेशेंट को नहीं ले जा सकते… और इस पूरे एपिसोड में हम कहां थे? सिर्फ उस जगह जहां उस खाली एंबुलेंस के साथ आने और खाली ही जाने वाले डॉक्टर ने कहा मेरी फीस दे दीजिए…
अस्पताल में कौन किस बात की फीस आपसे वसूल लेगा आप जान ही नहीं सकते। हम लोग जिस मनस्थिति में थे उसमें हमारा दिल और दिमाग पूरी संवेदनाओं के साथ मरीज की चिंता में लगा था और हमारे हाथ मशीन की तरह हर बिल का भुगतान करते जा रहे थे। एक दिन यूं ही बैठे बैठे जब बिल देखा तो उसमें भांति भांति के डॉक्टरों की विजिट का अमाउंट भी जुड़ा था।
पता किया तो मालूम हुआ कि जितने भी डॉक्टर आए उन्होंने यही ‘रहस्योद्घाटन’ किया कि पेशेंट को रेबीज है। यानी जो बात हमें दूसरे अस्पतालों से लेकर सिद्धांता रेडक्रास तक में दाखिल होते ही बता दी गई थी वही बात आकर हर डॉक्टर सिर्फ दोहरा भर रहा था और अपनी फीस लेकर जा रहा था। मसलन हमसे दो हजार रुपए डॉ. एनपी मिश्रा की विजिट के नाम पर लिए गए, हमें नहीं पता कि डॉ. मिश्रा को किसने व क्यों बुलाया था और उन्होंने आने के बाद क्या विशेषज्ञ सलाह दी या इलाज में कोई योगदान किया।
जब डॉ. मिश्रा की अगली विजिट पर हमसे पैसे मांगे गए तो हमने ऐतराज किया और कहा कि हमने तो नहीं कहा उन्हें बुलाने को, फिर पैसे किस बात के? अस्पताल ने पहले तो थोड़ा दबाव बनाया, लेकिन हमारे सख्त ऐतराज के बाद चुप हो गए। ताज्जुब की बात यह है कि डॉ. मिश्रा के नाम पर यह फीस नकद ली गई।
फीस का जाल कितना व्यापक है इसका एक और नमूना सुनिए। सिद्धांता आने से पहले एक अस्पताल में जहां ममता को भरती किया गया था वहां सिर्फ 14 सीढ़ी चढ़ने के एक डॉक्टर साहब ने 500 रुपए अतिरिक्त वसूले। वे नीचे ओपीडी में बैठे थे, वहां उनकी मरीज को देखने की फीस 1500 रुपए है लेकिन जब वे उसी अस्पताल में भरती मरीज को 14 सीढ़ी चढ़कर ऊपर आईसीयू में देखने आए तो फीस 2000 रुपए हो गई।
हमसे फीस तो जरूर ली जा रही थी लेकिन हमें पता ही नहीं था कि कोई डॉक्टर ममता के पास जाकर उसे वास्तव में देख भी रहा है या नहीं। क्योंकि हमें जो बताया गया उसके मुताबिक वह ऐसे रोग की मरीज थी जिसके पास जाना भी घातक माना जाता है। पता नहीं यही कारण था या कुछ और लेकिन एक डॉक्टर के रवैये को लेकर हमें ऐसा ही शक जरूर हुआ। जब अस्पताल वालों ने उस खास न्यूरोलॉजिस्ट को बुलाने के लिए हमसे कहा तो हमने उनसे संपर्क किया। वे डॉक्टर खुद फोन नहीं उठाते उनका असिस्टेंट ही यह काम करता है।
असिस्टेंट से बात करने पर उसने पहले तो काफी टालमटोल की और बाद में बहुत ना नुकुर के बाद बताया कि दरअसल डॉक्टर साहब की स्पेशल हॉस्पिटल विजिट की फीस बहुत ज्यादा है। हमने कहा आप बताइए तो सही, वह बोला वे इसका पांच हजार रुपया लेते हैं, हमने कहा देंगे, आप उनसे कहिए आ जाएं। लेकिन बताई गई फीस के लिए रजामंदी देने और डॉक्टर का स्लॉट बुक कराने के बावजूद वे डॉक्टर साहब नहीं आए।
उधर ममता की जाचों का सिलसिला जारी था, सिद्धांता वाले तय ‘प्रोटोकॉल’ के हिसाब से उसके सलाइवा (लार) आदि का सैम्पल NIMHNS बेंगलुरू को भिजवा चुके थे। और जब नौ मार्च को निमहंस की रिपोर्ट आई तो उसने हमें हैरान भी किया और हमारी उम्मीदें भी हरी कर दीं। ‘मरीज को रेबीज है’ की तमाम डॉक्टरों की रट के विपरीत उस रिपोर्ट में रेबीज निगेटिव बताया गया था। रिपोर्ट का निष्कर्ष था- ‘’CSF & Saliva Negative for Rabies viral RNA by real time PCR’’
जैसे ही यह रिपोर्ट आई सारे परिवार वालों के चेहरे चमक उठे। ऐसा लगा मानो कोई चमत्कार हुआ, ईश्वर ने हमारी सुन ली…
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