अतुल तारे
लोकतंत्र में विचारों को लेकर असहमति होती ही है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। संसद देश का सर्वोच्च सदन है। यह सदन साक्षी है, एक युवा सांसद की तीखी बहस का, जो देश के पहले प्रधानमंत्री को अपने तर्कों से निरुत्तर करता है। प्रशंसा करनी होगी, तत्कालीन प्रधानमंत्री की, जब वह राष्टÑपति भवन में विदेशी मेहमानों से उस युवा सांसद का परिचय कराते हैं तो यह कहते हैं ‘‘ये हैं, अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के युवा सांसद। आगे चलकर ये देश के प्रधानमंत्री बनेंगे’’।
लिखने की जरुरत नहीं कि लोकतंत्र के पक्षधर इस नेता का नाम पं. जवाहरलाल नेहरु था। आज उन्हीं की विरासत को संभालने का दावा कर रही कांग्रेस की क्या दुर्दशा हो गई है। राष्टÑपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव संसदीय लोकतंत्र की विशिष्ट परंपरा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस पर अपना वक्तव्य देना था।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेतृत्व में चल रही सरकार सफल है या असफल, इसने देश में विकास के नए प्रतिमान गढ़े हैं या बर्बादी के, यह विषय बहस का बेशक विषय है। नि:संदेह सरकार के खाते में कई बेहतरीन उपलब्धियां हैं तो कई गहरे अनुत्तरित सवाल भी हैं। देश उसके लिए प्रतीक्षारत है। अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर विपक्ष ने सवाल खड़े भी किए हैं, करना भी चाहिए।
नि:संदेह प्रधानमंत्री की वक्तव्य शैली भी इन दिनों बहस का विषय है। लोकतंत्र का तकाजा है कि बहस इस पर भी होनी चाहिए। सवाल खड़े किए जा सकते हैं कि क्या प्रधानमंत्री को इतना आक्रामक भाषा शैली के स्तर पर होना चाहिए? क्या प्रधानमंत्री के स्तर पर इतने कटाक्ष हर एक पर आवश्यक हैं। सवाल यह भी किया जा सकता है कि आखिर बार-बार कांग्रेस पर इतना हमलावर होने की जरूरत क्या है? बहस जारी है और यह चलनी भी चहिए।
पर इस बहस में एक तथ्य और जोड़ा जाना चाहिए? अटलजी का संसद का ऐतिहासिक भाषण आज तक सबको याद है। 13 दिन की सरकार के विश्वास मत को लेकर उन्होंने देश के सामने कुछ तीखे प्रश्न छोड़े थे? आज भी देश की राजनीति की दिलचस्पी उन प्रश्नों के उत्तर में नहीं है। सरकारें आएंगी-जाएंगी पर भाजपा के खिलाफ, भाजपा के नेताओं के खिलाफ, राष्ट्रीय विचार से प्रेरित जन संगठनों के खिलाफ जिस प्रकार विष वमन षड्यंत्रपूर्वक सामूहिक तौर पर चल रहा है, क्या बहस इन पर नहीं होनी चाहिए?
अटलजी की भाषा शैली अच्छी थी, वे संयमित भाषा का प्रयोग करते थे। तब अटलजी ने कहा था कि यह कहा जा रहा है, अटलजी ठीक हैं, पार्टी खराब है, तब आप अच्छे अटलजी के लिए क्या करना चाहते हैं? लिखने की आवश्यकता नहीं अटलजी को अंकों के खेल में पराजित होना पड़ा। आज लगभग डेढ़ दशक बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘टिट फॉर टेट’ की तर्ज पर हमलावर हैं तो बेचैनी क्यों? किस प्रकार कहा, इस पर बहस कीजिए।
पर जो कहा, वह तथ्यात्मक है या नहीं, इस पर भी गौर करना होगा। कांग्रेस के पाप गिनाना चाहिए या नहीं, कीजिए सवाल पर पाप हैं या नहीं, कांग्रेस इसका जवाब क्यों नहीं देती? दो शादी पर हिन्दू को जेल का कानून है तो मुस्लिम के लिए यह खेल, यह मोदी कहते हैं तो वह एक जनभावना को स्वर दे रहे हैं। अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर विपक्ष की भाषा शैली किस प्रकार थी?
भाषा शैली छोड़ भी दें तो क्या उनका भाषण अभिभाषण के विषय पर केन्द्रित था। अब प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी ही चाल को उनके ही तरीके से विफल करने का प्रयास किया तो बिलबिलाहट क्यों? प्रधानमंत्री के उद्बोधन के समय अनवरत नारेबाजी क्या एक शालीन परंपरा है? देश की संसद में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपना वक्तव्य दे रहे हैं। इसे पूरा देश सुन रहा था और चुने हुए चंद नुमाइंदे क्या उदाहरण प्रस्तुत कर रहे थे। इस हुड़दंग के बीच प्रधानमंत्री ने धैर्य से अपना वक्तव्य पूरा किया और कुछ तीखे तंज भी कसे तो दिक्कत कहां है?
भारतीय स्त्री शील का प्रतीक है। निर्लज्ज और लगातार बेहूदा अट्टहास आखिर किस प्रकार का विरोध है। तीर यद्यपि निशाने पर लगा है, पर प्रधानमंत्री ने सिर्फ रामायण सीरियल का जिक्र किया है? कांग्रेस ने इसे शूर्पणखा माना यह उनके विवेक का प्रमाण है। तात्पर्य बहस का स्तर गिर रहा है पर यह गिरा कौन रहा है, देश को भ्रम में कौन डाल रहा है, इस पर भी विचारने की जरूरत है।
बेशक कांग्रेस एवं तमाम विपक्षी दल भाषा की शालीनता पर चिंता करें पर स्वयं के आचरण पर भी गौर करें। साथ ही जो मुद्दे प्रधानमंत्री ने छेड़े हैं, उन पर भी विचार करें। प्रधानमंत्री का यह कथन लोकतंत्र कांग्रेस की देन नहीं है, यह भारतीय संस्कृति की विरासत है। क्या यह सत्य नहीं है? महात्मा गांधी कांग्रेस का विसर्जन चाहते थे, क्या यह ऐतिहासिक तथ्य नहीं है? कश्मीर के विषय में पं. जवाहर लाल नेहरू ने भूल नहीं की? यूपीए सरकार पर प्रधानमंत्री का सीधा आरोप है कि बैंक का एनपीए 18 लाख से बढ़कर 52 लाख हुआ, अगर प्रधानमंत्री गलत हैं तो कांग्रेस तथ्यों के साथ सामने आए। देश को लूटने वाले नहीं बचेंगे, वे जेल भी जाएंगे और लूट का माल लौटाना भी पड़ेगा, इस पर किस को आपत्ति है?
जाहिर है यह बिलबिलाहट खुद के घायल होने पर है। अत: यह बहस शूर्पणखा, महिषासुर आदि की तरफ ले जाकर मूल मुद्दों से देश को भटकाने की चाल है। प्रधानमंत्री के भाषण से बौखलाए विपक्ष के हमले और तेज होंगे। गोलबंदी भी होगी। अत: केन्द्र सरकार को भी अनावश्यक बहस में भागीदारी से बचना चाहिए और जो देश के मूलभूत प्रश्न हैं, उनके समाधान की दिशा में अपने प्रयास और तेज करना चाहिए। समय कम है।
विपक्ष पिच बदलने के प्रयास में है, आवश्यकता विकास की पिच पर ही सधी हुई आक्रामक बल्लेबाजी की है, साथ ही अपने राजनीतिक कुनबे में भी परस्पर विश्वास एवं संवाद बढ़ाना समय की ही नहीं सर्वकालीन आवश्यकता है। देश ने बेहद उम्मीद के साथ जनादेश दिया है, इसकी भावना से खिलवाड़ की इजाजत किसी को भी नहीं है, स्वयं सत्ता पक्ष को भी नहीं।
पुनश्च-राम को काल्पनिक मानने वाले शूर्पणखा पर क्यों तिलमिलाए हुए हैं
(एक फेसबुक वॉल से साभार)