अजय बोकिल
मेहरबानी कर इसे संता बंता डाॅट काॅम से न जोड़ें, क्योंकि यह अहम फैसला पंजाब सरकार का है और छात्राअों की सुरक्षा से जुड़ा है। राज्य की अमरिंदर सिंह सरकार ने ऐलान किया है कि सूबे की सरकारी कन्या शालाअों में अब पचास पार के पुरूष शिक्षकों को ही तैनात किया जाएगा। मकसद साफ है कि ऐसा करने से राज्य के कन्या विद्यालयों में छेड़छाड़ और अश्लील हरकतों जैसी घटनाअों पर अंकुश लगेगा। स्कूलों का वातावरण ज्यादा पवित्र और पिता-पुत्री के भाव से समृद्ध होगा। इसका परिणाम प्रकारांतर से महिला सशक्तिकरण में दिखेगा।
पंजाब में महिला शिक्षा पूरी तरह फ्री पहले से है। राज्य के स्कूली शिक्षा विभाग द्वारा जारी नए आदेश की पंजाब स्कूल टीचर्स एसोसिएशन ने सरकार कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि वह प्रदेश के सारे युवा पुरूष शिक्षको के चरित्र पर संदेह कैसे जता सकती है? ऐसा अजीब आदेश जारी कर वह क्या संदेश देना चाहती है ? स्त्री पुरूष समानता की पैरवी वाले इस दौर में क्या आदेश लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा नहीं देता?
देश के सीमावर्ती राज्य पंजाब में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में डेढ़ लाख से ज्यादा अध्यापक हैं। इन स्कूलों में 34 लाख के करीब विद्यार्थी पढ़ते हैं। पिछले कई दिनों से शिकायतें आ रही थीं कि कन्या शालाअों में तैनात कुछ शिक्षक छात्राअों के साथ अभद्र व्यवहार अथवा अश्लील हरकतें करते हैं। राज्य सरकार की यह स्वाभाविक चिंता थी कि ऐसी घटनाअों को किस तरह रोका जाए? कैसे संदेश दिया जाए कि स्कूलों में पुरूष टीचर भी टीचर की तरह ही बर्ताव करें और कोई मुगालता न पालें।
ध्यान रखें कि उनके और छात्राअों के बीच गुरू-शिष्या का ही नाता है और इसे कायम रहने दें। अध्यापन के अलावा कुछ न सोचें। हालांकि तमाम चेतावनियों के बाद भी कतिपय स्कूलो में टीचर द्वारा छात्राअों से छेड़छाड़ की शिकायतें आईं। सो, सरकार ने समस्या की जड़ पर चोट करने की ठानी। तय हुआ कि पचास पार मर्द ही कन्या स्कूलों में दिखेंगे। हालांकि यह जानकारी उपलब्ध नहीं है कि स्कूलों में युवा पुरूष टीचरों द्वारा अपनी ही छात्राअों से छेड़छाड़ के कितने मामले दर्ज हैं। फिर भी सरकार मानती है कि ऐसे जितने भी मामले हुए हैं, वे राज्य के कन्या स्कूलों की छवि पर बट्टा लगाने के लिए काफी हैं।
वैसे कन्या स्कूलों में छेड़छाड़ रोकने के लिए राज्य के स्कूलों में सरकारें नित नए प्रयोग करती रहती हैं। वर्ष 2012 में बादल सरकार के समय शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया था। इसके तहत शिक्षक भड़कीले वस्त्र पहन कर स्कूल नहीं आ सकते थे। उन्हें सादे कपड़ों में आना पड़ता है। स्कूल शिक्षा विभाग का मानना था कि कि शिक्षकों को देखकर बच्चों की आदतें बिगड़ने का खतरा रहता है।
इस आदेश के बाद स्कूलों का माहौल कितना सुधरा पता नहीं, लेकिन सरकार का ताजा आदेश स्त्री सुरक्षा का नवाचार है। पंजाब में कुल कितने कन्या विद्यालय हैं, उनमें कितने पुरूष शिक्षक हैं और उनमें से कितने ‘खतरनाक जोन’ में हैं, इसके आंकड़े साफ नहीं है। लेकिन चूंकि सरकार ने अब कन्या स्कूलों से जवान पुरूष शिक्षकों को हटाने का ऐलान किया है तो ऐसे शिक्षकों की संख्या भी काफी होगी, यह मानने में हर्ज नहीं है।
यहां बुनियादी शंका यह है कि कन्या विद्यालयों में अधेड़ या रिटायरमेंट की राह पर अग्रसर शिक्षकों की तैनाती से वहां का वातावरण यौन अपराधों की दृष्टि से कितना सुरक्षित होगा? सरकार पचास पार के पुरूष शिक्षकों को पूरी तरह ‘निरापद’ किस आधार पर मान रही है? क्या उसने ऐसा कोई अध्ययन कराया है या फिर राज्य के ऐसे तमाम शिक्षकों की शैक्षणेतर क्षमताअो को लेकर वह पूरी तरह आश्वस्त है? यह भी साफ नहीं है कि क्या सरकार ऐसे शिक्षकों की तैनाती के पहले कोई मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट भी लेगी या फिर केवल सूरत और सीरत देखकर ही पुरूष शिक्षकों की कन्या विद्यालयों में पोस्टिंग की जाएगी।
इससे इतना जरूर होगा कि कन्या शालाअों में सेवानिवृत्ति समारोहों की तादाद बढ़ जाएगी, दूसरी तरफ बालक विद्यालयों में पुरूषों के रूप में युवा और अनुभवहीन चेहरे ही ज्यादा दिखाई पड़ेंगे। मान लीजिए पंजाब सरकार ने यह फैसला पूरी सोच समझ और कन्याअों के हित में ही लिया होगा, लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि पचास पार के सभी पुरूष शिक्षक कोई ‘गड़बड़’ नहीं करेंगे?
सरकार के ताज आदेश के बाद भी कन्या स्कूलों से ऐसी शिकायतें आई तो सरकार क्या करेगी? क्या पचहत्तर पार के पुरूष शिक्षकों को प्राथमिकता देगी ? यदि स्त्री सुरक्षा कारणों से इतने बंधन लागू करने हैं तो सरकार कन्या स्कूलों में केवल महिला शिक्षकों को ही तैनात करने का निर्णय क्यों नहीं करती? इससे समस्या ही खतम हो जाएगी?
सरकार शायद भूल रही है कि सामाजिक रिश्तो की पवित्रता उम्र से नहीं, नैतिक मर्यादाअों से कायम रहती हैं। कतिपय शिक्षकों ने छात्राअों के साथ छेड़छाड़ की निंदनीय हरकत की भी है तो सभी शिक्षकों को उसी श्रेणी में मान लेना दुराग्रह है। शिक्षक का नैतिक पतन होने के दूसरे कारण भी हो सकते हैं और उसके लिए उमर का कोई बंधन नहीं है। अगर कोई पुरूष शिक्षक अपनी शिष्याअों के साथ अनैतिक व्यवहार करता है तो उसी सख्त सजा दी जानी चाहिए, लेकिन पुरूष शिक्षक इसी मानसिकता के हैं, यह सोच ही बुनियादी रूप से गलत है।
गुरू और शिष्य का रिश्ता परस्पर विश्वास पर टिका होता है। इसे उसी भाव में लिया जाना चाहिए और यह समझने के लिए किसी खास दिमाग की जरूरत नहीं है।
(सुबह सवेरे से साभार)