पिछले कई दिनों से ये खबरें लगातार आ रही हैं कि सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए पाकिस्तान हम पर भारी गोलाबारी कर रहा है। रविवार को ऐसी ही गोलाबारी में भारतीय सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा जब 23 वर्षीय कैप्टन कपिल कुंडू समेत 4 सैनिक शहीद हो गए। इन शहीदों में हमारे मध्यप्रदेश के राइफलमैन रामावतार भी थे।
सीमा पर अशांति के चलते पिछले कुछ हफ्तों में कई सीमावर्ती गांव खाली कराए गए हैं और वहां के स्कूल आदि बंद कर दिए गए हैं। नागरिक मोर्चे पर भी हमें जानमाल का नुकसान उठाना पड़ रहा है। जब जब भी ऐसी हरकतें हुई हैं, सेना पहले भी अपने स्तार पर जवाबी कार्रवाई करते हुए ‘दुश्मन’ को माकूल जवाब देती रही है। इसलिए तय मानना चाहिए कि ताजा शहादत का हिसाब भी पाकिस्तान को चुकाना ही होगा।
जैसाकि अब तक होता आया है सरकार की ओर से भी इस मामले में परंपरागत राजनीतिक बयान आए हैं और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक मीडिया चैनल से बातचीत में कहा कि ‘जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी, पाकिस्तान को इसका जवाब देना होगा। हमारी सेना हर तरह से सक्षम है। सेना पर भरोसा बनाए रखें। सरकार शहीदों के परिवार के साथ खड़ी है।’
दरअसल सेना को कश्मीर में एक साथ दो मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है। सीमा पर उसे दुश्मन की गोलियों का सामना करना पड़ रहा है तो घरेलू मोर्चे पर अलगाववादियों के पत्थरों का। जिस समय देश रविवार को शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि दे रहा था उसी समय मीडिया पर यह खबर भी स्क्रोल हो रही थी कि जम्मू कश्मीर की मेहबूबा मुफ्ती सरकार ने सेना पर एक और एफआई आर दर्ज की है।
सेना पर राज्य सरकार की ओर से इस तरह की कार्रवाई करने का यह चलन नया है। मेहबूबा सरकार ने इससे पहले 27 जनवरी को शोपियां में सेना की गोलीबारी में तीन पत्थरबाजों के मारे जाने के मामले में 10 गढ़वाल राइफल्स के एक मेजर सहित कुछ जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाद में सेना की ओर से भी पत्थरबाजों के खिलाफ एफआईआर करवाई गई थी।
दक्षिण कश्मीर में शोपियां जिले के गानोवपुरा इलाके में सेना की एक टुकड़ी पर पत्थरबाजों ने 27 जनवरी को हमला कर दिया था। बचाव में सेना की ओर से गोली चलाई गई जिसमें कुल तीन लोगों की मौत हो गई। सेना ने दावा किया कि पथराव में अपने सात जवान घायल होने के बाद उसने अपने बचाव में गोली चलाई।
सेना के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास के प्रकरण दर्ज किए जाने के मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया था और सेना के अफसरों सहित देश भर में एक बड़ा वर्ग इस मांग को लेकर सामने आया था कि सेना के खिलाफ दर्ज एफआईआर वापस ली जाए।
कश्मीर में हालात बिगड़ने का एक बड़ा कारण वहां सत्तारूढ़ भाजपा और पीडीपी के गठबंधन में दरार आना है। सत्ता पाने के लिए भाजपा से हाथ मिलाने वाली मेहबूबा मुफ्ती को अब लग रहा है कि भाजपा के साथ वह लंबी राजनीति नहीं कर सकती। इसलिए वह किसी न किसी बहाने इस गठबंधन को तोड़ना या उससे अलग होना चाहती हैं।
सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने के तत्काल बाद मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती ने राज्य के पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने का ऐलान भी विधानसभा में कर दिया। उन्होंने बताया कि सरकार ने ऐसे 1745 मामलों में 9730 लोगों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने का फैसला किया है।
एक तरफ सेना के खिलाफ एफआईआर और दूसरी तरफ पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने के फैसलों ने साफ संकेत दे दिया है कि कश्मीर में भाजपा और पीडीपी का साथ अब बहुत ज्यादा दिन नहीं चलने वाला। पीडीपी को लगता है कि वह स्थानीय लोगों के साथ खड़ी होकर ही अपना राजनीतिक अस्तित्व बचा सकती है।
लेकिन दुर्भाग्य से इस राजनीतिक खींचतान में सेना बिना वजह मोहरा बन रही है। निश्चित ही पिछले कुछ दिनों के दौरान भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर में आतंकवादी एवं अलगाववादी गतिविधियों पर लगाम कसी है और उसके चलते वहां से हिंसा और पथराव की खबरें आना कम हो गई हैं। लेकिन लगता है कि सरकार की शह मिलने के बाद पत्थरबाज एक बार फिर घाटी में तैनात सेना के खिलाफ सक्रिय हो गए हैं।
ऐसी स्थिति में यह सवाल मौजू हो जाता है कि आखिर केंद्र सरकार और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कश्मीर मामले में क्या रुख अपनाने जा रही है। वहां सरकार का रुख साफ होना इसलिए जरूरी है क्यों कि जम्मू कश्मीर में भारतीय सेना के सामने दुविधापूर्ण स्थितियां निर्मित हो रही हैं।
एक तरफ सेना तमाम नुकसान सहते हुए सीमा के साथ साथ घरेलू मोर्चे पर भी जांबाजी से हालात का मुकाबला कर रही है दूसरी तरफ राजनीतिक उठापटक में वह मोहरा भी बनाई जा रही है। सेना की उपलब्धि को एक पार्टी की उपलब्धि के तौर पर प्रचारित किए जाने के उपक्रम ने भी पीडीपी को सोचने के लिए मजबूर किया है। मेहबूबा मुफ्ती को लगता है कि यदि सेना ने स्थिति पर प्रभावी नियंत्रण पा लिया तो उसका श्रेय कम से कम उनकी पार्टी को तो कतई नहीं मिलने वाला।
ऐसे में राज्य सरकार अब सेना के ही खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने जैसे कदम उठा रही है। यह सेना के मनोबल के लिए भी ठीक स्थिति नहीं कही जा सकती। कम से कम सेना को तो इस राजनीतिक चक्रव्यूह से परे रखकर अपना काम स्वतंत्रतापूर्वक करने देना होगा।
राजनीतिक बयानबाजी के बीच मेहबूबा मुफ्ती का यह कथन भी बहुत संगीन है कि सेना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का कदम रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन की सहमति के बाद ही उठाया गया था। हालांकि इस मामले में रक्षा मंत्री की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है, लेकिन यदि ऐसा है तब तो स्थिति और भी गंभीर है।
देश को यह जानने का पूरा हक है कि आखिर सेना के साथ यह खेल कौन और क्यों खेल रहा है। सचाई सामने आना इसलिए भी जरूरी है कि जम्मू कश्मीर में मरने वाले हमारे सैनिक हैं, कोई खिलौने नहीं…