बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक कथा है। किसी ने बुद्ध को राह चलते खूब गालियां दीं। बुद्ध ने शांतचित्त से गालियां सुनी। फिर पूछा- तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो मैं आगे चलूं। उस आदमी ने कहा- मैं तुम्हें‘गालियां’ दे रहा हूं और तुम इसे ‘बात’ कहते हो। बुद्ध ने कहा- गालियां होंगी तुम्हारे लिए, मेरे लिए तो बात ही है।…तुमने गालियां दीं जरूर, लेकिन मैंने तो ली ही नहीं। तो गाली भी अब तुम्हारी ही हुई। तुम जानो कि उसका क्या करना है।
आज जब हमारी राजनीति में गालियों और अपशब्दों का दौर चल रहा है, तो यह सोचने का अवसर है कि हम हम गाली कब देते हैं और क्यों देते हैं। फिर गालियां बनती कैसे हैं? उनका राजनीतिक और समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य क्या होता है? उनका जातिगत, लैंगिक और सांप्रदायिक संदर्भ क्या होता है? हम गालियों से कैसे निपटें?
ऊपर से देखने पर भले ही यह लगता हो कि गाली देने वाला क्रोध के मारे पागल हो चुका है और वह सामने वाले की मान-प्रतिष्ठा को शब्दों के जरिए चोट पहुंचाना चाहता है, इसलिए गाली निकल पड़ती है। लेकिन इससे इतर एक सच्चाई यह भी है गाली वही देता है, जो शब्दों और विचारों के मामले में गरीब होता है। ऊपर से भले ही कोई शब्दों से खेलनेवाला साहित्यकार या विद्वान भी हो, लेकिन गाली वाले शब्दों का प्रयोग करते समय वह अपनी शब्द-गरीबी ही प्रकट कर रहा होता है।
इसका अर्थ है कि अपने विरोध, ऐतराज, आलोचना और यहां तक कि क्रोध को भी व्यक्त करने के लिए उसके पास अच्छे और पर्याप्त शब्द नहीं हैं। ऐसा भी हो सकता है कि उसे शब्द-ज्ञान तो हो, लेकिन उसकी विचारणा-शक्ति उसका साथ न दे रही हो। तो जैसे ही शब्द या विचार में से कोई भी एक-दूसरे का साथ न दे रहा हो, तो अप्रिय परिस्थितियों में, भावावेश में या थोड़ी सी असावधानी में, हम न केवल दूसरों के प्रति, बल्कि खुद के प्रति भी गालियों से काम ले सकते हैं।
आज लोग केवल गुस्से में ही नहीं, बल्कि ज्यादा खुश और आह्लादित होने पर भी गालियां बकते हैं। गालियां दिनचर्या का हिस्सा बन चुकी है। बच्चे क्रिकेट खेलते हुए, एक दूसरे को नाम से नहीं, बल्कि गाली विशेष से पुकारते हैं। युवाओं की पार्टियों में एक पैग भीतर गया नहीं कि दोस्तों के लिए ही मुंह से गालियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। अब तो फिल्में भी यथार्थ के नाम पर गालियों का महिमामंडन करती नजर आती हैं। जाहिर है गालियों को सभ्यता और असभ्यता के द्वंद्व से मुक्त किया जा रहा है।
(सत्याग्रह से साभार)