आज अपनी बात कहने से पहले मैं पाठकों को इस अस्वीकरण सूचना (Disclaimer) से अवगत करा देना अपन फर्ज समझता हूं-
‘’आगे मैं जो भी लिखने जा रहा हूं, उसका उस वाली खबर के पात्रों और घटनाओं से कोई प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष संबंध नहीं है, जो खबर इन दिनों मध्यप्रदेश के अखबारों में चर्चा का विषय है। मैं जिस घटना का जिक्र करने जा रहा हूं, यद्यपि उसके पात्र काल्पनिक नहीं हैं फिर भी मेरा निवेदन है कि इन्हें उस वाली खबर या घटना से कतई न जोड़ा जाए जो खबर इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। यदि मेरी बात में उस वाली घटना से कोई समानता दिख भी जाए तो उसे मात्र एक संयोग (या दुर्योग) समझा जाए।‘’
इस अस्वीकरण को लिख देने के बाद मेरा मन हलका हो गया है और मैं समझता हूं कि अब मैं अपनी बात कह सकता हूं…। आज बात दरअसल एक गड्ढे के बारे में है…. हंसने, कुटिल मुसकान बिखेरने या कनखियों से मेरी तरफ देखने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा नहीं है कि गड्ढे सिर्फ सड़क पर ही पाए जाते हैं, वे मनुष्य के जीवन में उसके भाग्य में भी हो सकते हैं….
हां, यह बात अलग है कि मैं आपको एक ऐसे गड्ढे के बारे में बताने जा रहा हूं जो था तो एक सड़क पर, लेकिन अपने वहां होने की वजह से किसी की किस्मत का गड्ढा साबित हुआ। चूंकि यह किसी गांव खेड़े के नहीं, बल्कि राजधानी की एक व्यस्त बस्ती की प्रमुख सड़क के गड्ढे की कथा है अत: इसे पूरे सम्मान के साथ ग्रहण करिएगा।
‘दुनिया की सबसे बेहतर’ सड़कों वाले हमारे मध्यप्रदेश की राजधानी के कोलार इलाके में यह गड्ढा कब नमूदार हुआ इसका ठीक ठीक इतिहास ज्ञात नहीं है। लेकिन जनश्रुति के अनुसार यह गड्ढा एक अवतार की तरह सड़क पर अचानक रातोंरात प्रकट हुआ। कुछ लोगों को उसमें देवत्व का अंश भी दिखा था लिहाजा किसी ने भी उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड़ की कोई चेष्टा नहीं की।
एक दिन एक व्यक्ति ने उस देवतुल्य गड्ढे के अस्तित्व को नकारते हुए वहां से गुजरने की कोशिश की और गड्ढा देव के शाप के कारण वह शैयाशायी हो गया। बाद में पता चला कि शैयाशायी होने वाले व्यक्ति का नाम जॉय तिर्की है और वह मर्चेंट नेवी में अफसर है।
वैसे तो ऐसे गड्ढों के कारण लोग आए दिन हाथ पैर तुड़वाते रहते हैं, और बेचारे चुपचाप इलाज करवाकर फिर अगले गड्ढे का इंतजार करने लगते हैं। लेकिन जॉय की पत्नी ने मामले को यूं ही नहीं छोड़ा, उन्होंने बाकायदा इसकी पुलिस में रिपोर्ट की और दोषी को सजा दिलवाने के लिए अभियान छेड़ दिया।
अब पुलिस यह पता लगा रही है कि गड्ढा आखिर खोदा किसने था? दिलचस्प बात यह है कि जिस गड्ढे की जांच हो रही है वह पुलिस थाने से ज्यादा दूर नहीं है। संदेह के घेरे में एयरटेल और बीएसएनएल जैसी दूरसंचार कंपनियों के अलावा भोपाल नगर निगम के अधिकारी भी हैं और सभी को नोटिस भेजे गए हैं।
इसी जांच के दौरान रविवार को और मजेदार वाकया हुआ। आमतौर पर हत्या जैसे मामलों में पुलिस दफ्न हुई लाश को निकलवा कर उसकी जांच करवाती है। लेकिन यहां पुलिस ने यह जानने के लिए कि गड्ढा किसने खोदा था, उस गड्ढे को और गहरा खुदवाया। खुदाई में उसे एक दूरसंचार कंपनी की केबल भी मिली और नगर निगम की पाइप लाइन भी। पर दो ढाई घंटे की इस मशक्कत नतीजा भी सिफर ही रहा। कुछ पता नहीं चला कि गड्ढा खोदा किसने है।
जिन जिन लोगों को इस मामले में नोटिस दिए गए वे गड्ढे की खुदाई का दोष दूसरे पर मढ़ रहे हैं। उधर गड्ढे में गिरकर घायल हुए जॉय तिर्की की पत्नी अलका तिर्की ने खुदाई के लिए नगर निगम अफसरों पर शक जताते हुए आरोप लगाया है कि सारे लोग गुनहगार को बचाने के लिए जांच अधिकारी को जानबूझकर गुमराह कर रहे हैं।
मुझे यह तो नहीं मालूम कि ऐसे हालात पैदा होने पर वाशिंगटन जैसे शहरों में क्या होता है, क्योंकि मैं कभी वहां गया नहीं और न ही मैंने वहां की सड़कें देखीं हैं, न ही गड्ढे। मैं तो बस अपने प्रदेश के, अपने शहर की सड़कों और उनके गड्ढों के बारे में जानता हूं। इसी जानकारी के आधार पर कह सकता हूं कि जिस तरह मध्यप्रदेश में किसी को भी कहीं भी सड़क पर झुग्गी खड़ी कर लेने या गुमटी लगा लेने की आजादी है, उसी तरह यहां हरेक को जब चाहे, जहां चाहे सड़क खोद डालने का मौलिक अधिकार भी दिया गया है।
सड़कों के ये गड्ढे पता नहीं कितने लोगों की जान ले चुके हैं, कितनों को अपाहिज बना चुके हैं और कितने ही परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा कर चुके हैं। लेकिन आज तक इनका कोई इलाज नहीं हो सका है। जिस तरह व्यवस्था में बड़े बड़े गड्ढे बदस्तूर फलफूल रहे हैं उसी तरह सड़कों पर भी उनके उपनिवेश लगातार विस्तारित हो रहे हैं। कोई नहीं जानता कि दुनिया भर में सर्वश्रेष्ठ इस प्रदेश की सड़कें,इन सर्वश्रेष्ठ गड्ढों से कब मुक्त होगी।
जैसाकि मैंने शुरुआत में कहा था, भोपाल की इस गड्ढा पुराण को सुधी पाठक कृपया सड़कों संबंधी किसी भी बयान या अन्य घटनाक्रम से जोड़कर न देखें। बाहर हम जब भी बात करेंगे, मध्यप्रदेश की चमचमाती सड़कों की ही बात करेंगे। अपने घर में लाख गड्ढे हों, पर क्या घर से बाहर कोई उनका जिक्र करता है भला? यह भी घर का मामला है, घर तक ही रहना चाहिए। कवि दुष्यंत ने कहा था ना-
मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।
shandar.
धन्यवाद जी