क्‍या भारत को जिन्‍ना का शुक्रगुजार होना चाहिए?

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एकमुश्‍त तीन तलाक कहकर पत्‍नी को तलाक दिए जाने की प्रथा असंवैधानिक करार देने और सरकार को इस संबंध में यथोचित कानून बनाने का निर्देश देने के बाद देश में समान नागरिक संहिता और मुस्लिम आबादी के आचार व्‍यवहार को लेकर नई बहस चल पड़ी है। कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पैदा हुई राजनैतिक व सामाजिक लहरें कश्‍मीर के विशेष दर्जे से लेकर राममंदिर निर्माण की प्रक्रिया को भी प्रभावित करेंगी।

इसी गहमागहमी में मध्‍यप्रदेश के एक पत्रकार की जल्‍दी ही आने वाली किताब नए विवाद को जन्‍म दे सकती है। रिटर्न आफ दी इन्फिडेल’ शीर्षक से यह किताब इंदौर में जन्‍मे वरिष्‍ठ पत्रकार वीरेंद्र पंडित ने लिखी है और जल्‍दी ही इसका वैश्विक विमोचन होने वाला है। वीरेंद्र पंडित इन दिनों अहमदाबाद में ‘द हिन्‍दू‘ समूह की पत्रिका‘बिजनेस लाइन’ के कंसल्टिंग एडिटर हैं। मुझे उनकी याद इसलिए भी आई क्‍योंकि हम दोनों ने समाचार एजेंसी यूएनआई भोपाल में एकसाथ काम किया था। 1998 में वीरेंद्र पंडित अहमदाबाद चले गए थे और तब से वहीं हैं।

पंडित की किताब भारत के विभाजन और पाकिस्‍तान के जन्‍म पर एक नई थ्‍योरी के साथ सामने आई है। यह थ्‍योरी कहती है कि मोहम्‍मद अली जिन्‍ना यदि मुसलमानों के लिए अलग राष्‍ट्र की मांग पर नहीं अड़े होते तो आज भारत का सामाजिक परिदृश्‍य कुछ और ही होता। किताब में अनुमान लगाया गया है कि पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश की वर्तमान मुस्लिम आबादी यदि भारत में ही रह रही होती तो भारत में 2050 तक मुस्लिमों की जनसंख्‍या करीब 75 करोड़ होती और उस लिहाज से हम दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश होते।

आंकड़े कहते हैं कि पाकिस्‍तान की वर्तमान आबादी करीब 18 करोड़ और बांग्‍लादेश की करीब 17 करोड़ है। भारत में मुलसमानों की संख्‍या 20 करोड़ से अधिक है। ऐसे में आज अविभाजित भारत की जनसंख्‍या करीब 160 करोड़ होती, जिसमें मुस्लिम आबादी लगभग 55 करोड़ यानी देश की कुल जनसंख्‍या का एक तिहाई रहती। अब जरा सोचकर देखिए कि यदि ऐसा होता तो आज के भारत का सामाजिक और आर्थिक परिदृश्‍य क्‍या होता?

इस लिहाज से किताब कहती है कि जिन्‍ना को गाली देने के बजाय उन्‍हें सम्‍मान की दृष्टि से देखा जाना चाहिए क्‍योंकि उन्‍होंने हिन्‍दुस्‍तान को मुस्लिम देश होने से बचा लिया और उसे हिन्‍दु-स्‍तान बने रहने दिया। यदि इस विचार को तवज्‍जो दी जाए तो फिर राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ जैसे संगठनों को भी जिन्‍ना को देखने की अपनी दृष्टि बदलनी चाहिए।

किताब कहती है, ‘’आधुनिक भारत के ‘राष्‍ट्रपिता’ गांधी नहीं बिल्‍क जिन्ना थे।‘’ वे प्रसिद्ध लोककथा ‘पाइड पाइपर’ की तरह बांसुरी बजाते हुए हिन्‍दुस्‍तान से मुलसमानों को बाहर ले गए। यह किताब जिन्‍ना के संदर्भ में लालकृष्‍ण आडवाणी के विचारों को लेकर राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ के सामने भी ‘पश्‍चाताप’ का सवाल खड़ा करती नजर आती है।

इस किताब में गांधी को लेकर भी नई दृष्टि प्रस्‍तुत की गई है। लेखक के अनुसार महात्मा गांधी ने उस समय यह दिखावा किया था कि वह बंटवारे के हक में नहीं हैं, लेकिन अपने भीतर से उन्हें इस बात का संतोष था कि बंटवारे के बाद हिंदुस्तान एक ऐसा देश होगा जो अपनी हिंदू विरासत और मूल्यों के अनुसार जीवन जी सकेगा। मुख्य रूप से सभ्यताओं के विकास और विनाश की कहानी पर आधारित इस किताब का निष्‍कर्ष है कि गांधी और जिन्ना के साथ ही हिंदुस्तान का 711 में शुरू हुआ मध्ययुगीन काल समाप्त हुआ।

वितास्ता प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में कई रोचक तथ्य भी हैं। जैसे जिन्ना का असली नाम ‘मामदभाई जिनियाभाई ठक्कर’ यानि एम.जे. ठक्कर था। जिन्ना अपनी जन्मतिथि 20 अक्तूबर 1875 से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने बाद में इसे बदलकर 25 दिसंबर 1876 कर लिया और ऐसा उन्होंने अपनी जन्मतिथि ईसा मसीह के जन्म की तारीख के बराबर करने के लिए किया।

आज के संदर्भों में इस किताब का जिक्र इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ भारत में बढ़ती मुस्लिम आबादी को लेकर कई बार चिंता जता चुका है। नवंबर 2015 में रांची में अपने अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में उसने जनसंख्या असंतुलन को लेकर अहम प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्‍ताव में सरकार से आग्रह किया गया था कि जनसंख्या नीति का पुनर्निधारण कर उसे सब पर समान रूप से लागू किया जाए।

संघ ने उस प्रस्‍ताव में सरकार द्वारा जारी जनसंख्‍या के जातिगत आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा था कि ‘’वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अन्तर के कारण जहां भारत में उत्पन्न मतपंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 प्रतिशत से घटकर 83.8 प्रतिशत रह गया है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 प्रतिशत से बढ़ कर 14.23 प्रतिशत हो गया है।

प्रस्‍ताव में कहा गया था कि-‘’देश के सीमावर्ती प्रदेशों यथा असम, पश्चिम बंगाल व बिहार के सीमावर्ती जिलों में तो मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, जो स्पष्ट रूप से बंगलादेश से अनवरत घुसपैठ का संकेत देता है।‘’

भारत में मुस्लिमों की वर्तमान आबादी और उनकी बढ़ती जनसंख्‍या दर के कारण संघ जैसे संगठनों में आज भी चिंता व्‍याप्‍त है, ऐसे में कल्‍पना करना कठिन नहीं है कि यदि पाकिस्‍तान और बांग्‍लादेश भारत से अलग नहीं हुए होते तो चिंता का स्‍तर क्‍या होता? तो क्‍या सचमुच भारत या हिन्‍दुस्‍तान को जिन्‍ना का शुक्रगुजार होना चाहिए?

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here