अतुल तारे
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व जिलाध्यक्ष राज चड्ढा को पार्टी की सदस्यता से निलंबित कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी एक अनुशासित राजनीतिक दल है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता को पार्टी के विषय में अगर कोई पीड़ा है शिकायत है तो इसके लिए पार्टी के पास पर्याप्त मंच है। यह बात वहीं रखी जानी चाहिए थी। श्री चड्ढा ने इसका पालन नहीं किया। लक्ष्मण रेखा लांघी और पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। पार्टी के अनुशासन के लिहाज से यह कदम नि:संदेह उचित है। पर राज चड्ढा ने जो प्रश्न खड़े किए हैं, जो शिकायत दर्ज कराई हैं, जो उनका आक्रोष है क्या वह सिर्फ राज चड्ढा का ही है? क्या आज मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर नहीं है? क्या आज प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं स्वयं वेंटीलेटर पर नहीं है। राज चड्ढा ने यह बात फेस बुक पर मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए अपनी वॉल पर लिखी और कहा कि या तो इसे ठीक कीजिए अथवा हम जैसे कार्यकर्ताओं को जो दीनदयाल जी के सपनों को पूरा करने के लिए अपना जीवन खपा चुके हैं बाहर कर दीजिए।
पार्टी नेतृत्व ने आसान रास्ता चुना है और आज राज चड्ढा पार्टी से बाहर कर दिये गए हैं। बेशक श्री चड्ढा जैसे पुराने एवं वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। यह भी सही हो सकता है कि वे स्वयं एक लंबे समय से राजनीतिक वनवास को भुगत रहे हैं जिसके चलते उनके मन में कुंठा जागृत हुई हो। पर इसके बावजूद श्री चड्ढा का निलंबन करके पार्टी नेतृत्व को नींद नहीं आनी चाहिए। आखिर क्या वजह है कि एक पुराना कार्यकर्ता अपनी बात पार्टी फोरम पर नहीं कह रहा? क्या पार्टी के आंतरिक फोरम पर सुनना कुछ कम हुआ है? क्या वजह है कि पार्टी की प्रदेश कार्य समितियों की बैठके विगत लंबे समय से सिर्फ इक तरफा प्रबोधन का मंच बन रही है और यही प्रक्रिया जिला स्तर तक है।
भाजपा के पास एक ऐसा तंत्र, ऐसा स्थान हमेशा से रहा हैं। आज भी है, जो सिर्फ सुनने का काम करते थे। पर शांति से श्रवण और कार्यकर्ता की पीठ पर स्नेहिल हाथ उन्हें फिर एक ऐसी ऊर्जा प्रदान करता था कि वह अपनी शिकायत को ही भूल जाता था? क्या आज प्रक्रिया कहीं अवरुद्ध हुई है? बेशक पहले पार्टी सत्ता में नहीं थी आज सत्ता में हैं और सत्ता की अपनी विवशताएं एवं व्यस्तताएं होती हैं लेकिन यह एक सच है कि आज पार्टी के हजारों कार्यकर्ता पार्टी में आए आतंरिक स्खलन से दुखी हैं। वे नौकरशाहों के भ्रष्टाचार से हतप्रभ है। सत्ता पर अंकुश की अनुपस्थिति से पीड़ित हैं। इसलिए यह पार्टी नेतृत्व को मानना होगा कि यह पीड़ा अकेले श्री राज चड्ढा की नहीं है श्री चड्ढा ने दीनदयाल जी का उल्लेख किया है। यह वर्ष उन्हीं की जन्मशती का वर्ष है। वे कहते थे कि अगर सत्ता में आने के बाद पार्टी अपने मौलिक चरित्र से भटकी तो वे जनसंघ को भंग करने में यकीन रखेंगे। आज उनके इस कथन का पुनर्पाठ पार्टी नेतृत्व को आज के संदर्भ में करना होगा। बेशक आज भाजपा देश की आशा का केन्द्र है। वह देश को एक निर्णायक दिशा दे रही है। सम्पूर्ण देश में यही कारण है कि उसके प्रति अपूर्व विश्वास प्रगट हो रहा है। अत: आज पार्टी के भंग के विचार पर तो वे स्वयं भी पुनर्विचार करते पर यकीनन अपनी आंतरिक विकृतियों के प्रति वे कितने कठोर होते इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। क्या पार्टी नेतृत्व समय रहते यह साहस दिखाएगा इसकी सभी को प्रतीक्षा है।