हो सकता है मैं जो लिखने जा रहा हूं, आप उससे सहमत न हों, संभव है आपको मेरी बात एक पक्षीय या एकरंगी लगे, लेकिन मेरा मानना तो यही है… यही याने यह कि बाबरी ढांचा ढहाए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित तमाम नेताओं पर आपराधिक साजिश करने का जो मुकदमा चलाने का फैसला सुनाया है वह भाजपा के और ‘अच्छे दिन’ लाने वाला है।
मेरे हिसाब से इस फैसले से भाजपा की किस्मत का छींका ही नहीं टूटा बल्कि उसे तो छप्पर फाड़ मुराद मिल गई है। इस फैसले को दो दृष्टि से देखा जा रहा है। तात्कालिक राजनीतिक दृष्टिकोण से इस फैसले को देखने वाले लोग कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी चतुराई से अपने गुरु और मार्गदर्शक लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं का राष्ट्रपति चुनाव में पत्ता कटवा दिया है। अब आपराधिक प्रकरण के चलते नैतिकता और लोकलाज के लिहाज से इन नेताओं को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार नहीं बनाया जा सकेगा।
लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा निष्कर्ष निकालना बहुत ही छोटी या तात्कालिक बात होगी। दरअसल भाजपा मलयालम की उस कहावत पर चल रही है जिसका जिक्र मैंने कुछ दिनों पहले इसी कॉलम में किया था। वह कहावत कहती है कि भागते हुए कुत्ते को यदि मारना है तो पत्थर दस कदम आगे फेंको। और भाजपा इन दिनों राजनीतिक और रणनीतिक दोनों लिहाज से अपना हर पत्थर दस कदम आगे ही फेंक रही है। बाबरी साजिश का मामला भी वैसा ही है।
आप ही सोचें, यदि नरेंद्र मोदी ठान लें कि लालकृष्ण आडवाणी या मुरलीमनोहर जोशी को राष्ट्रपति नहीं बनवाना है तो क्या आज की तारीख में कोई माई का लाल उन्हें ऐसा करने से रोक सकता है? कौन है जो उन पर इसके लिए दबाव बना सकेगा। आज नरेंद्र मोदी जिस स्थिति में हैं, उसके चलते उन्हें इन नेताओं को रोकने के लिए न तो खुद कोई साजिश करने की जरूरत है और न ही उसके लिए सीबीआई को टूल बनाने की। यह काम वे सीधे भी कर सकते हैं।
मै मानता हूं कि निगाहें राष्ट्रपति चुनाव से भी बहुत बहुत आगे लगी हैं। 20 मार्च को मैंने उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले के बारे में लिखा था कि- ‘’अभी जो केसरिया माहौल है वह धीरे धीरे और गाढ़ा होगा। ऐसे में अव्वल तो ‘भगवा के जले’ राजनीतिक दल विरोध की हिम्मत ही नहीं जुटा पाएंगे और यदि किसी ने कोशिश भी की तो उसकी राजनीति खतरे में पड़ जाएगी।और कोई यदि इस मामले को न्यायालय में ले गया और वहां से कोई अवरोध पैदा हुआ तो भी फायदे में भाजपा ही रहेगी। क्योंकि फिर जनता का टारगेट भाजपा नहीं बल्कि न्यायालय होगा।‘’
बाबरी ढांचा गिराए जाने को आपराधिक साजिश के दायरे में धकेलना, मामले के उसी दिशा में जाने का संकेत करता है। जरा ध्यान से देखिए बुधवार को उमा भारती की प्रेस कान्फ्रेंस। उसमें वे कितने निश्चिंत और गर्व भाव से कह रही हैं कि इसमें साजिश जैसी कौनसी बात है जो कुछ हुआ खुल्लम खुल्ला हुआ। वे बोलीं- ‘’हां मैं 6 दिसंबर को वहां मौजूद थी, इसमें साजिश की कोई बात नहीं। अयोध्या आंदोलन में मेरी भागीदारी थी, मुझे कोई खेद नहीं। मैं इसके लिए कोई भी सजा भुगतने को तैयार हूं। मुझे इस आंदोलन में भागीदारी का गर्व रहा है।‘’
भाजपा की ‘ऑफिशियल लाइन’ इस मामले में चाहे जो हो, कोर्ट में भाजपा नेताओं के वकील चाहे जो तर्क रखें, लेकिन पार्टी की मैदानी या राजनीतिक लाइन, उमा भारती के बयान जैसी ही रहने वाली है। जनता में यही संदेश भेजा जाएगा कि राम मंदिर हमारे लिए आस्था का विषय है। उसके लिए जो आंदोलन हुआ उसमें शामिल होना हमारे लिए गर्व की बात थी।
इस समय देश का माहौल हिन्दूवादी है। उत्तरप्रदेश के नतीजे इसकी खुली गवाही दे रहे हैं। इस समय जिस किसी भी मंच से हिन्दू या हिन्दू आस्था के विरोध का स्वर उठेगा, उसके विरोध में दुगुना बड़ा जनसमूह खड़ा मिलेगा। फिर चाहे वह कोई राजनीतिक दल हो या अदालतें। जवाब इसी सवाल का पूछा जाएगा कि क्या हिंदू अपने ही देश में अपनी आस्था के केंद्र भगवान राम का मंदिर बनाने की बात नहीं कर सकता?
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की रोज सुनवाई करने और दो साल में इसका निपटारा करने के निर्देश दिए हैं। इसके भी दो मायने हैं। पहला यह कि अब लगातार दो साल तक राममंदिर का मुद्दा रोज मीडिया में छाया रहेगा। और दूसरा यह कि दो साल बाद यह वही समय होगा जब मोदी सरकार चुनाव में जा रही होगी। सजा हो गई तो भी और न हुई तो भी, भाजपा को फायदा दोनों सूरत में होगा।
ध्यान दें, उमा भारती के अलावा राम मंदिर आंदोलन के सक्रिय नेता रहे विनय कटियार ने भी 20 अप्रैल को अयोध्या पहुंचने और रामलला के दर्शन करने की बात कही है। कटियार का तो कहना है कि ‘’जरूरत पड़ी तो एक नया आंदोलन खड़ा करेंगे। यह भाजपा नेताओं के खिलाफ सीबीआई की साजिश है। राम मंदिर के लिए हम जेल भी जाने को तैयार हैं।‘’
जरा सोचिए, यदि ऐसा कोई ‘नया आंदोलन’ खड़ा हो और लाखों लोग अयोध्या की ओर कूच कर जाएं तो क्या होगा? राम मंदिर बनाना भाजपा का संकल्प है। राजनीतिक रूप से समय उसके अनुकूल है। मैं जिस दृश्य की कल्पना कर रहा हूं वो ये है कि यदि मंदिर निर्माण का यह संकल्प उसी तर्ज पर पूरा हो जिस तर्ज पर बाबरी विध्वंस हुआ था, तो क्या होगा? जरा सोचिए, यदि लाखों लोग अयोध्या पहुंच जाएं और मंदिर का निर्माण शुरू कर दें तो कोई भी प्रशासन, सरकार या अदालत क्या कर लेगी?