‘कोचिंग सिटी’ कोटा में कैसे रुकेंगी छात्रों की आत्महत्याएं?

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रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान के कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रहे एक छात्र राजेन्द्र सिंह परमार (28) ने 12 अप्रैल को दादाबाड़ी स्थित अपने कमरे में फांसी लगाकर जान दे दी। वो कोटा में पिछले 4 साल से कोचिंग लेकर मेडिकल में प्रवेश की तैयारी कर रहा था। मौके से बरामद सुसाइड नोट में भरतपुर जिले की बयाना तहसील के तरबीजपुर निवासी इस छात्र ने घटना के लिए खुद को जिम्मेदार बताया है।

कोचिंग की मंडी राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है। 2000 से लेकर अब तक कोचिंग करने वाले 288 छात्र यहां आत्महत्या कर चुके हैं। ऐसा लगता है कि यहां शिक्षा के बजाय मौत का कारोबार हो रहा है। कोटा एक तरफ जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने के लिए जाना जाता है, वहीं इन दिनों छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2016 में यहां 18 छात्रों ने खुदकुशी की। 2015 में 31 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया था। जबकि 2014 में 45 छात्रों ने आत्महत्या की थी जो 2013 की अपेक्षा लगभग 61.3 प्रतिशत ज्यादा थी।

कोटा शहर आज आइआइटी-जेईई में दाखिले की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों का बड़ा केंद्र है। इसे कोचिंग का सुपरमार्केट कहा जा सकता है। पिछले जेईई परीक्षा परिणाम में टॉप रैंक में 100 में से 30 छात्र कोटा के कोचिंग सेन्टरों से ही निकले थे। एक अनुमान के हिसाब से कोटा के कोचिंग मार्केट का सालाना टर्नओवर 1300 करोड़ रुपए है। ये सेंटर सरकार को अनुमानत: सालाना 130 करोड़ रुपए का टैक्‍स देते हैं। यहां देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे मोटे 150 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। आज की तारीख में यहां लगभग डेढ लाख छात्र कोचिंग ले रहे हैं। लेकिन इस कामयाबी का स्याह पक्ष यह है कि यहां कोचिंग के लिए पहुंच रहे छात्रों द्वारा आत्महत्या की खबरें भी दिन पर दिन बढ़ने लगी हैं।

28 अप्रैल 2016 को पांचवी मंजिल से कूद कर आत्महत्या करने वाली कोचिंग छात्रा कीर्ति त्रिपाठी के सुसाइड नोट में कुछ महत्‍वपूर्ण बातें सामने आई थीं। उसने लिखा था कि मैं जेईई-मेंस में कम नम्बर होने के कारण जान नहीं दे रही हूं, मुझे तो इससे भी खराब रिजल्ट की आशंका थी। बल्कि मैं तो खुद से ही ऊब गई हूं,इसलिए जान दे रही हूं। कीर्ति के जेईई-मेंस में 144 अंक आए थे, जो जनरल के कट ऑफ से 44 अंक अधिक थे।

परिवार और मित्रों को सम्बोधित सुसाइड नोट में उसने तनाव और दिक्कतों के बारे में लिखा है। वह अपने आस-पास के माहौल से बेहद तनाव में थी।उसने भारत सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को यह तक सुझाव दिया था कि जल्द से जल्द इन कोचिंग संस्थानों को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि यहां बच्चों को तनाव मिल रहा है। उसने लिखा था कि मैंने कई लोगों को तनाव से बाहर आने में मदद की, लेकिन कितना हास्यास्पद है कि मैं खुद को इससे नहीं बचा पाई। कीर्ति ने सुसाइड नोट में मां को संबोधित करते हुए लिखा कि मैं साइंस नहीं पढ़ना चाहती थी, मेरा इंट्रेस्ट तो फिजिक्स में था, मैं बीएससी करना चाहती थी।

कोचिंग संस्थान भले ही बच्चों पर दबाव न डालने की बात कहते हों लेकिन कोटा के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में तैयारी करने वाले बच्चे दबाव महसूस न करें ऐसा संभव ही नहीं है। कोचिंग में प्रतिदिन डेढ़-डेढ़ घंटे की तीन क्लास लगती हैं।5 घंटे कोचिंग में ही चले जाते हैं। कभी-कभी तो सुबह पांच बजे कोचिंग पहुंचना होता है,तो कभी कोचिंग वाले अपनी सुविधानुसार दोपहर या शाम को क्लास के लिए बुलाते हैं।

समय तय नहीं होने के कारण एक छात्र के लिए अपनी दिनचर्या के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है। वह अपने लिए और मनोरंजन की गतिविधियों के लिए समय ही नहीं निकाल पाता। ऊपर से 500-600 बच्चों का एक बैच होता है, जिसमें शिक्षक और छात्र का तो इंटरेक्शन हो ही नहीं पाता। अगर एक छात्र को कुछ समझ न भी आए तो वह इतनी भीड़ में पूछने में भी संकोच करता है। विषय को लेकर उसकी जिज्ञासाएं शांत नहीं हो पातीं। तब धीरे-धीरे उस पर दबाव बढ़ता जाता है। ऐसे ही अधिकांश छात्र आत्महत्या करते हैं।

पिछले साल इसी समस्‍या को लेकर कोटा के जिला कलेक्टर ने पांच पृष्ठों का एक पत्र शहर के कोचिंग संस्थानों को भेजा था जिसे हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनूदित करवा कर छात्रों के माता पिता को भी भेजा गया था। कलेक्टर ने लिखा था कि इन बच्चों के माता पिता की उनसे जो कुछ भी उम्मीदें थीं उनकी बनावटी दुविधा में जीने के बजाय उन्होंने मौत को गले लगाना आसान समझा। उन्हें बेहतर प्रदर्शन के लिए डराने धमकाने के बजाय आपके सांत्वना के बोल और नतीजों को भूलकर बेहतर करने के लिए प्रेरित करना, उनकी कीमती जानें बचा सकता है।

अपने पत्र में भावुक अपील करते हुए उन्होंने इन छात्रों के माता पिता से कहा था- अपनी अपेक्षाओं और सपनों को जबरन अपने बच्चों पर नहीं थोपें, बल्कि वे जो करना चाहते हैं, जिसे करने के वे काबिल हैं, उन्हें वही करने दें।

जिला प्रशासन ने विभिन्न संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों के तनाव के स्तर को जानने और छात्रों की परेशानी के संकेत मिलने पर ऐसे संस्थानों से उसकी जांच पड़ताल करने को भी कहा। कलेक्‍टर ने छात्रों से कहा कि उन्हें इंजीनियरिंग और मेडिकल को अपना करियर बनाने के अलावा अन्य विकल्पों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। …जारी

कल पढि़ए कोटा का भयावह सच 

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