राव श्रीधर
यूं तो किसी लड़की का चीखना और उसका आक्रामक स्वभाव प्रथम दृष्टया नकारात्मक गुण ही माना जाएगा, लेकिन जब किसी बेहद सरल और शर्मीली लड़की को रूला-रुला कर उसे चीखना सिखाया गया हो और आक्रामकता उसमें ठूंसी गयी हो तो आप क्या कहेंगे। जी हां! भारत के कोच पुलेला गोपीचंद ने उस लड़की से सिर्फ इसलिए बोलचाल बंद कर दी थी क्योंकि उसे कोर्ट में चीखना नहीं आता था।
चारों तरफ जूनियर खिलाड़ियों का मेला था और सबकी नजरें उस लड़की पर थी और गोपी का फरमान था जब तक पागलों की तरह चीखोगी नहीं तब तक कोई कोचिंग, ट्रेनिंग नहीं होगी । उस बेहद शर्मीली लड़की ने तीन-चार घंटे कोर्ट में मायूसी और संकोच में गुजार दिये, लेकिन जब लगा की गुरु और बैडमिंटन की आन पर बन आई है तो उसने रोते-रोते ही सही चीखना शुरू किया। उसकी यही चीख उसे रियो ओलम्पिक के फायनल तक ले गई और उसने भारत को बैंडमिंटन का पहला रजत पदक दिलाया ।
जी हां ये कहानी ही भारतीय बैंडमिंटन की स्टार पीवी सिंधु की है, जिसने हाल ही में एक बार फिर भारतीय खेलप्रेमियों को गर्व का अवसर तोहफे में दिया। साथ ही सिंधु ने रियो में हुई एक बड़ी हार का बदला भी सूद समेत ले लिया। अपनी सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धी स्पेन की कैरोलीना मरीन को सिंधु ने रियो के बाद सबसे पहले DUBAI WORLD SUPER SERIES FINALS में हराया और फिर 2 अप्रैल 2017 की शाम को पहले YONEX SUNRISE INDIA OPEN सुपर सीरीज के फायनल में धूल चटाई। इसी दिन साल 2011 को भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्डकप जीता था, उस जीत की सालगिरह को सिंधु ने अपनी जीत ने यादगार बना दिया ।
पहला इंडिया ओपन सीरीज जीतना साधारण नहीं था। सिंधु ने इस टूर्नामेंट में पहले भारतीय प्रतिद्वंदी साइना नेहवाल को हराया और फिर सेमीफायनल में वर्ल्ड नंबर टू सुन जी ह्यू को पराजित किया और फिर ओलंपिक चैम्पियन मारिन को फायनल में मात दी ।
ये जीत हर उस खिलाड़ी को, चाहे वो पुरुष हो या स्त्री उसे प्रेरित करेगी। क्योंकि इसमें लगन है… ऐसी लगन जिसमें 10 साल की लड़की सुबह 3 बजे उठ कर दो घंटे का सफर करके अपनी एकेडमी पहुंचती थी। जिस उम्र में बच्चे चॉकलेट और टॉफी की जिद करते हैं, उस उम्र में सिंधु ने फीका दूध पिया। बड़ी हुई, कॉलेज पहुंची तो त्याग ऐसा कि फेवरेट मूवी छूट गई। दोस्तों की बर्थ-डे पार्टी छूट गई। जब सारी सहेलियां आइस्क्रीम के मजे लेती थीं, उस समय सिंधु ने बैंडमिंटन के लिए मन को मार दिया। उसका मोबाइल तक गोपीचंद ने छीन कर अपने पास रख लिया था ।
लगन, मेहनत और त्याग के अंतहीन उदाहरण जब सफल हुए तब जाकर सिंधु जैसा सागर तैयार हुआ, जिसमें आसमान तक उठनेवाली गर्व की ऊंची-ऊंची लहरों पर आज पूरा देश झूम रहा है।
धन्यवाद सिंधु! पूरे देश को तुम पर नाज है…