आपका नाम खान है…, मकान नहीं दे सकते

बुधवार को एक खबर मेरे ध्‍यान में लाई गई। खबर का कंटेंट पढ़कर लगा कि इस पर बात जरूर होनी चाहिए। क्‍योंकि खबर का मसला हमारे सामाजिक तानेबाने से जुड़ा है। यह खबर 4 अप्रैल को अंतर्राष्‍ट्रीय वेबसाइट हफिंगटन पोस्‍ट में भोपाल के रिपोर्टर शम्‍स उर रहमान अलवी के नाम से प्रकाशित हुई है। शम्‍स भोपाल से बंद हो चुके हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स में क्राइम रिपोर्टर रहे हैं और इन दिनों वे हफिंगटन पोस्‍ट के लिए भी लिखते हैं।

हफिंगटन पोस्‍ट ने यह खबर जिस शीर्षक से प्रकाशित की है वह है-

This Is Social Boycott, Says Muslim Woman Who Was Allegedly Denied A Flat In A Hindu-Majority Housing Complex In Bhopal

यह खबर भोपाल की एक मुस्लिम महिला जाहिदा खान के अनुभव पर आधारित है। जाहिदा के पति मजहर खान का भोपाल में एक निजी व्‍यवसाय है। हाल ही में खान दंपति राजधानी के होशंगाबाद रोड इलाके में एक रेसिडेंशियल कॉम्‍प्‍लैक्‍स में फ्लैट खरीदने के इरादे से गया। बातचीत के बाद उन्‍होंने एक फ्लैट पसंद कर लिया,लेकिन जब उसे खरीदने के इरादे से अंतिम बातचीत शुरू की तो कॉम्‍प्‍लैक्‍स के कर्मचारियों ने उनका नाम जानना चाहा। जाहिदा के अनुसार जैसे ही उन्‍होंने अपना नाम बताया उनसे कहा गया कि हम मुस्लिमों को मकान नहीं देते। इस जवाब ने खान दंपति को हैरान कर दिया।

हफिंगटन पोस्‍ट की खबर में कॉम्‍प्‍लैक्‍स के एक अधिकारी राजेंद्रसिंह के हवाले से कहा गया है कि खान दंपति किराए से मकान चाहते थे और जिस व्‍यक्ति का वह मकान था जब उससे इसके लिए बात की गई तो उसने मना कर दिया। यह तो मकान मालिक की मर्जी है कि वह किसे मकान दे या न दे, हम किसी पर दबाव कैसे डाल सकते हैं?

राजेंद्रसिंह का यह भी कहना है कि कॉम्‍प्‍लैक्‍स में ज्‍यादातर हिंदू ही रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारी ओर से धर्म के आधार पर इस तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। हां, अपना मकान बेचना या उसे किराये पर देना, यह फैसला तो मकान के मालिक का ही होगा।

उधर जाहिदा खान ने इस घटना को अपने साथ सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव बताते हुए इसकी शिकायत राज्‍य मानवाधिकार आयोग और पुलिस दोनों से की है। जाहिदा ने अपनी शिकायत में कहा है कि- ‘’क्‍या हमें सिर्फ मुसलमान होने की वजह से सुख सुविधा वाली नवनिर्मित कॉलोनियों में रहने का अधिकार नहीं है? क्‍या नई कॉलोनी सिर्फ हिन्‍दुओं के लिए है? क्‍या ये क्षेत्रवाद, जातिवाद सही है? क्‍या इस तरह की संकीर्ण विचारधारा रखकर मुसलमानों का शोषण या सामाजिक बहिष्‍कार नहीं किया जा रहा है? ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे मुसलमानों को पुराने भोपाल एवं पुरानी कॉलोनी में रहने को बाध्‍य किया जा रहा हो। क्‍या इस प्रकार का व्‍यवहार हमारे मौलिक अधिकारों का उल्‍लंघन नहीं है?’’

मध्‍यप्रदेश में हाल ही में गठित रीयल एस्‍टेट रेग्‍युलेटरी अथॅारिटी (रेरा) के अध्‍यक्ष और राज्‍य के पूर्व मुख्‍य सचिव एंटनी डिसा से जब मैंने इस बारे में पूछा तो उनका कहना था कि रेरा में इस बाता स्‍पष्‍ट प्रावधान है कि कोई भी बिल्‍डर धर्म या जाति के आधार ऐसा भेदभाव नहीं कर सकता। लेकिन उनकी अथॉरिटी ऐसे ही प्रोजेक्‍ट्स से जुड़े मामलों को सुन सकती है जो एक मई की स्थिति में अपूर्ण हों या भविष्‍य में आने वाले हों और रेरा के साथ रजिस्‍टर्ड हों। बाकी मामलों में ऐसा कोई भी शिकायतकर्ता उपभोक्‍ता फोरम के पास जा सकता है।

लेकिन मेरा मानना है कि ये कानूनी से ज्‍यादा समाजिक प्रश्‍न है। इसका समाधान भी सामाजिक तरीके से ही हो तो बेहतर होगा। हमें ध्‍यान रखना होगा कि ऐसी घटनाएं इफरात में नहीं बल्कि अपवादस्‍वरूप ही होती हैं। खासतौर से मध्‍यप्रदेश में आज भी ऐसा माहौल नहीं है जिसे मुस्लिमों के बहिष्‍कार की संज्ञा दी जा सके। ऐसे में इस तरह की खबरों को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ लिया जाना चाहिए।

देश में, खासतौर से उत्‍तरप्रदेश चुनाव के बाद जो माहौल बन रहा है, उसके बाद मुस्लिम समाज को भी बहुत सी बातों के अर्थ समझ में आने लगे हैं। मुस्लिमों में ही एक वर्ग ऐसा है जो कठमुल्‍लाओं के शिकंजे से दूर होकर देश की मुख्‍यधारा और मुख्‍य समाज का हिस्‍सा होना चाहता है। ऐसे में यदि कोई परिवार किसी विशुद्ध मुस्लिम बस्‍ती का हिस्‍सा बनने के बजाय, किसी हिन्‍दू बस्‍ती में आकर रहना चाहता है, तो यह भारत की समरसता को मजबूत करने वाली ही बात है।

निश्चित ही कुछ लोग समाज को अलग अलग खाचों में बांटने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन इसके समानांतर यह भी सच है कि कई बार ऐसी घटनाएं या तो बढ़ा चढ़ाकर प्रस्‍तुत कर दी जाती हैं या फिर सामने आने के बाद उन पर अतिरंजना का रंग चढ़ा दिया जाता है। ये दोनों ही स्थितियां किसी भी वर्ग या समुदाय के लिए ठीक नहीं हैं। भोपाल की ताजा घटना में मामला तूल पकड़े इससे पहले जरूरी है कि इसकी पूरी तहकीकात कर सचाई सामने लाई जाए।

जाहिदा खान के अनुसार उन्‍होंने मानवाधिकार आयोग और पुलिस दोनों को शिकायत भेजी है। इससे पहले कि इस पर मीडिया का रंग चढ़े, दोनों स्‍तर पर मामले का समुचित समाधान आवश्‍यक है। लंबा खिंचने पर ऐसे मामले माहौल को खराब करने का ही काम करते हैं। चूंकि मध्‍यप्रदेश में स्थितियां अभी उतनी नहीं बिगड़ी हैं, इसलिए भी जरूरी है कि हम प्रदेश की साख और उसकी छवि पर कोई आंच न आने दें।

 

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