कलेक्‍टर एसपी हटने से क्‍या कांग्रेस चुनाव जीत जाएगी?

सोमवार को मैंने इसी कॉलम में भिंड जिले के अटेर में हो रहे विधानसभा उपचुनाव की बात की थी। यह उपचुनाव मध्‍यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता सत्‍यदेव कटारे के निधन के कारण हो रहा है। ईवीएम मशीन के ट्रायल के दौरान भाजपा के नाम की पर्ची निकलने से पैदा हुए विवाद को लेकर मैंने कहा था कि‘’जरूरी नहीं बिल्‍ली के भाग से हमेशा छींका ही टूटे। बिल्‍ली की बदनसीबी से छत भी टूटकर उस पर गिर सकती है।‘’ मैंने कल छत टूटने के हश्र का जिक्र भी किया था।

लेकिन लगता है, मुझसे थोड़ी चूक हो गई। दरअसल भिंड में दोनों ही घटनाएं हुई हैं। या यूं कहें कि एक ही घटना के फलितार्थ अलग अलग हैं। वहां बिल्‍ली की बदनसीबी से छत भी टूटी है और भाग्‍य से छींका भी टूटा है। बदनसीबी आई प्रशासनिक अधिकारियों के हिस्‍से में तो छींके पर रखी मलाई की हंडिया आई कांग्रेस के खाते में।

ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्‍योंकि मुझे लगता है, यदि भिंड में ईवीएम मशीन वाला हादसा नहीं होता, तो कांग्रेस अटेर के चुनाव में मुद्दा क्‍या बनाती? पिछले 13 सालों से वह सारे मुद्दे अपना कर देख चुकी है, चुनाव हों या उपचुनाव, सारे कारतूस चलाए जा चुके हैं। ऐसे में अटेर में कारतूस तो क्‍या उनके खोखे भी नहीं बचे थे। वो तो भला हो ईवीएम का कि उसने कांग्रेस को मुद्दे का तिनका दे दिया। यह तिनका चुनाव प्रचार में भी काम आएगा और यदि हार गए तो मुंह ढंकने में भी मदद करेगा। आसानी से कहा जा सकेगा कि भाजपा तो मशीनों में हेराफेरी करके चुनाव जीती है।

ऐसा लगता है कि कहीं यह सब सोची समझी साजिश के तहत तो नहीं किया गया है। क्‍योंकि अब तक कांग्रेस भले ही कुछ तैयारी करने की सोच रही हो लेकिन अब तो बहुत आसानी हो गई है। ज्‍यादा कुछ करने की जरूरत ही नहीं है, बस परिणाम आने के बाद ठीकरा फोड़ने की रसम ही बाकी बची है।

कई बार भ्रम होता है कि कांग्रेस चुनाव लड़ भी रही है या नहीं। ताजा ईवीएम एपिसोड में भले ही हो-हल्‍ले के बाद चुनाव आयोग ने भिंड में कलेक्‍टर और एसपी सहित कई अफसरों को बदल दिया हो। कांग्रेस इसे अपनी बड़ी सफलता मान रही हो, लेकिन क्‍या कलेक्‍टर और एसपी को बदले जाने भर से कांग्रेस अटेर का चुनाव जीत जाएगी? एक अफसर गया है तो उसकी जगह दूसरा आ गया है। सरकार तो वही है। और अफसरों को भी मालूम है, आज हटाए गए हैं, कल ‘ऊपर वाले’ ने चाहा तो चुनाव बाद यहीं लौट आएंगे।

असली मुद्दा मैदानी तैयारी, मैदानी रणनीति और भाजपा के मुकाबले ज्‍यादा वोट हासिल कर ईवीएम में अपने वोटों की संख्‍या बढ़वाने का है। और वोटों की संख्‍या ऐसे नहीं बढ़ा करती। उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है (और तिकड़म भी)। क्‍या अटेर में कांग्रेस अपेक्षित मेहनत कर रही है? क्‍या चुनाव जीतने लायक उसकी मैदानी तैयारी है?

भिंड जिले की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण दोनों बराबरी से अपना प्रभाव रखते हैं। सत्‍यदेव कटारे इस इलाके में ब्राह्मण राजनीति के केंद्र थे। भिंड एक समय प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण राजनीति का गढ़ हुआ करता था,जब वहां से चुने गए दिग्‍गज ब्राह्मण नेता नरसिंहराव दीक्षित प्रदेश के गृह मंत्री होते थे। यह संयोग ही है कि नरसिंहराव दीक्षित की तर्ज पर ही दबंगई से राजनीति करने वाले कटारे भी राज्‍य के गृह मंत्री रहे। कटारे एक समय कांग्रेस की क्षेत्रीय राजनीति में दिवंगत माधवराव सिंधिया के खेमे में हुआ करते थे जबकि नरसिंहराव दीक्षित भाजपा में आने से पहले कांग्रेस के टिकट पर तत्‍कालीन जनसंघ की दिग्‍गज नेता विजयाराजे सिंधिया को चुनावी टक्‍कर दे चुके थे।

भिंड का यह अतीत इसलिए भी याद आया क्‍योंकि अटेर के चुनाव ने इतिहास के भी कुछ पन्‍ने खोल दिए हैं। और इन पन्‍नों का खुलना भी कांग्रेस के लिए छींका टूटने के समान ही है। पता नहीं क्‍यों भाजपा प्रत्‍याशी का प्रचार करने गए मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपनी एक सभा में सिंधिया वंश के अंग्रेजों से संबंध का हवाला देते हुए यह तक कह दिया कि अंग्रेजों के साथ मिलकर सिंधियाओं ने क्षेत्र की जनता पर जुल्‍म ढाए।

शिवराज के इस बयान ने भी कांग्रेस के हाथ में एक बड़ा मुद्दा दे दिया है, क्‍योंकि सिंधिया के वंशज कांग्रेस में ही नहीं भाजपा में भी हैं और ग्‍वालियर घराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया को तो भाजपा की स्‍थापना में अहम योगदान के कारण श्रद्धाभाव से देखा जाता है। अपने स्‍वभाव के विपरीत की गई शिवराज की इस टिप्‍पणी का संदेश खुद उनकी पार्टी में भी अच्‍छा नहीं गया है। मतभेद हो सकते हैं, लेकिन क्षेत्र में आज भी सिंधियाओं का नाम अनादर भाव से नहीं लिया जाता। यानी कांग्रेस चाहे तो कटारे के निधन से जुड़े सहानुभूति भाव के साथ साथ इस भावनात्‍मक मुद्दे को भी कैश करा सकती है।

लेकिन सवाल यही है कि क्‍या इतना सब कुछ होने के बाद भी कांग्रेस कुछ कर पाएगी? यदि यह चुनाव भी भाजपा जीत गई तो तय मानिए कि कांग्रेस प्रदेश में ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया का जो पत्‍ता चलना चाहती है,उसकी भी हवा निकलेगी। शिवराज ने अनजाने में ही सही दो निशाने साध लिए हैं। उन्‍होंने सिंधिया वंश को नहीं, इतिहास के साथ-साथ अपने वर्तमान को भी चुनौती दे डाली है। यदि वे अटेर जीत गए तो यह इतिहास बनाना नहीं बल्कि इतिहास की छाती पर नाच कर जीत हासिल करना होगा।

 

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