डॉ. चंदर सोनाने
सुनने में यह बात अजीब लग सकती है और अविश्वसनीय भी। लेकिन यदि तथ्यों के आधार पर कहा जाए कि यह बात सौ फीसदी सच है तो…? जी हां, भारत में आज भी 15 करोड़ से अधिक परिवारों की महिलाएं एक घंटे में चार सौ सिगरेट जितना धुंआ अपने फेफड़ों में उतार रही हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सन 2014 में जारी एक रिपोर्ट में बताया गया हैं कि भारत में अभी 70 करेड़ लोग ठोस या पारंपरिक ईंधन पर ही निर्भर हैं। यह सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। इसी प्रकार जनगणना 2011 के अनुसार देश के गांवों में करीब 13 प्रतिशत के पास ही गैस सिलेंडर हैं। हालांकि राजीव गांधी एलपीजी योजना और फिर अब उज्ज्वला योजना में करीब 1.9 करोड़ गैस कनेक्शन देने से गांवो मे स्थिति थोडी सुधरी हैं । पेट्रोलियम मंत्रालय के अनुसार वर्तमान में गांवों में करीब 30 फीसदी घरों मे एलपीजी पहुंच चुकी हैं। लेकिन फिर भी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती हैं। चूल्हे के धुंए से महिलाओं की सेहत को होने वाले नुकसान को देशते हुए इस दिशा में और तेजी से काम करने की जरूरत है।
एक अनुमान के अनुसार देश में 15 करोड परिवारों की महिलाएं अभी भी लकडी, कोयला और गोबर के कंडे जलाकर खाना बनाती हैं। इनके घर तक अभी भी एलपीजी गैस नहीं पहुंची हैं। ये रोजाना कई किलोमीटर पैदल चलकर जंगलों से लकडिया बीन कर लाती हैं। और हर दिन चूल्हे की आंच से उठने वाले धुंए की चपेट में आकर बीमार होती हैं।
देश में हर साल 5 से 9 लाख लोगों की मौत केवल गैर स्वच्छ ईंधन के सहारे खाना बनाने के कारण होती हैं। इन 15 करोड़ परिवारों में से 6 करोड महिलाएँ तो स्वयं वर्ष 2011-13 के उस सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना के हिसाब से हैं, जिसके आधार पर उज्ज्वला योजना के कनेक्शन दिए जा रहे हैं। यह सर्वे तत्कालीन यूपीए सरकार ने करवाया था। जबकि अन्य 9 करोड़ परिवार भी पेट्रोलियम मंत्रालय के ही आंतरिक सर्वे का हिस्सा हैं। इसके माध्यम से उसने यह जानने का प्रयास किया था कि इस अध्ययन के अलावा भी कितने ऐसे परिवार हैं जिन्हें अभी स्वच्छ ईंधन की जरूरत है।
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में ग्लोबल एन्वायरमेंट हेल्थ के विशेषज्ञ प्रोफेसर डॉक्टर किर्क स्मिथ के अनुसार जब महिलाएँ चूल्हे पर लकड़ी जलाकर खाना बनाती हैं तो एक घंटे के भीतर करीब 400 सिगरेट जलाने के बराबर हानिकारक धुंआ हो जाता हैं। भारत में ग्रामीण महिलाओं को कम से कम तीन घंटे रोजाना रसोई में बिताने ही होते हैं। इस हिसाब से ये महिलाएँ रोज कम से कम 1200 सिगरेट के बराबर धुंए के बीच भोजन बना रही हैं। यह अत्यंत खतरनाक स्थिति हैं। इसमें बदलाव की सख्त आवश्यकता हैं।
यह खुशी की बात हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता सूची में उज्ज्वला योजना को बहुत ऊपर रखा गया है। वे इस पर सर्वाधिक ध्यान केंद्रित कर रहे है। पेट्रोलियम मंत्री धमेंद्र प्रधान से भी अपेक्षा हैं कि इस योजना को अपने मंत्रालय की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली योजनाओं में लेते हुए इस दिशा में युद्धस्तर पर काम करवाएंगे ताकि खाना पकाने के नाम पर धुंए का जहर पी रही लाखों महिलाओं को असमय मौत से बचाया जा सके।