हम तो हर बात में पत्‍थर दस कदम आगे ही फेंक रहे हैं

मलयालम की यह कहावत मुझे मेरे मित्र जोसफ जॉन ने सुनाई थी। यह कहावत कहती है कि ‘’यदि आपको भागते हुए कुत्‍ते को पत्‍थर मारना है, तो पत्‍थर दस कदम आगे फेंको…’’

अपनी व्‍यावहारिकता के कारण यह कहावत मुझे बहुत दिलचस्‍प और सटीक लगती है। आप भी इस कहावत को ध्‍यान में रखते हुए जरा उस दृश्‍य की कल्‍पना कीजिए,  जिसमें आप कुत्‍ते को पत्‍थर मार कर भगाना चाह रहे हों। पत्‍थर यदि पीछे रह गया तो कुत्‍ते को लगेगा नहीं और पत्‍थर सन्‍नाते समय आपने निशाना उस जगह लगाया जहां कुत्‍ता ठीक उस वक्‍त मौजूद है, तो भी वह बच निकलेगा, क्‍योंकि जब त‍क आपका पत्‍थर उस तक पहुंचेगा, वह दस कदम दूर जा चुका होगा…

इसलिए यदि आपका अभीष्‍ट यह है कि पत्‍थर कुत्‍ते को लगे, तो निशाना ऐसा होना चाहिए कि पत्‍थर और कुत्‍ते के भागने की गति में सटीक तालमेल हो… क्‍योंकि आपके द्वारा दस कदम आगे फेंका गया पत्‍थर जब तक नीचे गिरेगा, कुत्‍ता खुद ब खुद उसकी जद में आ चुका होगा और ‘आ बैल मुझे मार’ की तर्ज पर ‘आ पत्‍थर मुझे मार’ जैसी कोई कहावत गढ़ते हुए खुद ही पत्‍थर खा बैठेगा।

आप सोच रहे होंगे कि आज मुझे अचानक ये कुत्‍ता, पत्‍थर जैसी बातें क्‍यों याद आ गईं। दरअसल मामला कल छपे मेरे इसी कॉलम से जुड़ा है। मैंने संसद में हिन्‍दू नववर्ष या गुड़ी पड़वा मनाए जाने की बात को आधार बनाते हुए कुछ मनकही आपसे शेयर की थी। उस पर रोचक प्रतिक्रियाएं आईं।

ऐसी ही एक प्रतिक्रिया में सवाल उठाया गया कि यूपी, बिहार, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, कश्‍मीर, उत्‍तर पूर्व, बंगाल, उड़ीसा आदि में गुड़ी पड़वा नहीं मनाया जाता, ऐसी स्थिति में क्‍या गुड़ी पड़वा को हिंदू नववर्ष कहा जा सकता है?

मुझे इस तरह की प्रतिक्रियाओं की आशंका पहले से ही थी और इसीलिए मैंने कॉलम के शुरू में कह दिया था कि ‘‘देश में इन दिनों जो माहौल है, खासतौर से उत्‍तरप्रदेश के चुनाव के बाद, उस माहौल में इस खबर को भी सांप्रदायिक नजरिये से देखा जाकर, देश की संसद का हिन्‍दूकरण करने का आरोप भी लगाया जा सकता है। हो सकता है कुछ असहिष्‍णुतावादी, प्रगतिशील या सांप्रदायिक नेता इस कार्यक्रम के बहिष्‍कार की अपील भी जारी कर दें।’’

बहिष्‍कार की बात तो खैर नहीं उठी, लेकिन यह बात जरूर उठी कि परोक्ष रूप से यह एक खास विचारधारा को जन्‍म देने वाले, एक खास किस्‍म के क्षेत्रवाद को थोपने का प्रयास है। इस प्रतिक्रिया से कई तर्क उपजे और मेरी वाट्सएप पर लंबी बहस हुई।

मैं यहां उस बहस का जिक्र न करके, इस प्रसंग से जुड़े दूसरे मुद्दे पर बात करना चाहता हूं। यह बात मलयालम की उसी कहावत से जुड़ी है जिसका जिक्र मैंने कॉलम की शुरुआत में किया। वह कहावत तो भागते हुए कुत्‍ते पर सटीक निशाना लगाने का एक गुर आपको बताती है, लेकिन मुझे लगता है कि आज का समाज भागते हुए कुत्‍ते को तो छोडि़ए, खड़े हुए पर भी सही निशाना नहीं लगा पा रहा है।

यहां कुत्‍ते को एक ‘समस्‍या’ अथवा ‘मुद्दे’ के रूप में देखिए। क्‍या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि किसी भी समस्‍या को हम सही ढंग से देख पा रहे हैं, उसे सही तरीके से समझ पा रहे हैं…? क्‍या पत्‍थर फेंकने भर को हम समस्‍या का समाधान समझ रहे हैं…? और कुत्‍ता बेचारा यदि बगैर किसी को कोई नुकसान पहुंचाए,चुपचाप खड़ा है तो उस पर पत्‍थर चलाकर क्‍या हम उसे काटने के लिए उकसा नहीं रहे हैं…? और अब तो यह हो रहा है कि कुत्‍ता भले ही भाग न रहा हो फिर भी हम अपना पत्‍थर दस कदम आगे फेंक रहे हैं… इसलिए कि हमें बस पत्‍थर फेंकने से मतलब है…

मध्‍यप्रदेश के ही चर्चित कवि दुष्‍यंत ने कहा था-

कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।

आकाश में सुराख करने से हमारा वास्‍ता हो या न हो, हम तबीयत से पत्‍थर जरूर उछाल रहे हैं। कई बार तो लगता है कि हम पत्‍थर भी नहीं उछाल रहे, आसमान पर थूक रहे हैं, जो लौटकर हमारे ही मुंह पर गिर रहा है…

जहां सुई की भी संभावना न हो वहां तलवारों का जखीरा बता देने की प्रवृत्ति ने इस समाज का बहुत नुकसान कर डाला है। बचपन में एक और कहावत सुनी थी- ‘’भूले चोर को लाठी बताना’’… हम वही कर रहे हैं। कोई भी काम भले ही किसी और मकसद से या किसी भी खास मकसद से न होकर, बस यूं ही हो रहा हो, वहां भी संभावनाओ और आशंकाओं के हजार द्वार खोलकर हम खुद का और समाज का, दोनों का नुकसान कर रहे हैं।

जरूरत से ज्‍यादा दिमाग लगाने का नतीजा यह हुआ है कि हम लक्ष्‍य को पाने के बजाय उससे और दूर होते जा रहे हैं। किसी के दिमाग में उलटी (या सीधी) बात का रेशा तक न आया हो लेकिन हम अपने दिमाग में ऐसा कीड़ा बैठाए दे रहे हैं जो हमें ही दीमक की तरह चाट रहा है। इस गैर जरूरी ‘हाइपर सोशल एक्टिविज्‍म‘  में नुकसान किसी और का नहीं खुद हमारा ही हो रहा है क्‍योंकि जरूरत हो या न हो, पत्‍थर को दस कदम आगे फेंकना, हमने अपनी आदत में शुमार जो कर लिया है।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here