वैसे मैं ये दिन दिना दिन (कृपया इसे दन दना दन न पढ़ें) मनाए जाने की परंपरा का बहुत ज्यादा समर्थक नहीं हूं, लेकिन फिर भी इतना जरूर है कि ऐसे ही खास दिनों के बहाने मीडिया और समाज वे बातें याद कर लेता है जिन पर राजनीति और अपराध जैसे प्रिय विषयों पर मचने वाली धमाचौकड़ी के कारण आमतौर पर बात नहीं हो पाती।
इस लिहाज से आज यानी 8 मार्च का दिन खास महत्व का है। यह दिन दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि ‘भारतीय संस्कृति’ के पोषक समूह, अकसर इसे पश्चिम का चोचला बताते हुए, साल भर में दो बार होने वाली दुर्गा पूजा का उदाहरण देकर, तर्क देते रहे हैं कि हमारे यहां तो नारी शक्ति का सम्मान करने और उसे पूजने की पुरानी परंपरा है।
लेकिन मैं आज इस तरह की किसी भी निरर्थक बहस में पड़ने के बजाय कुछ और बात करना चाहता हूं। हम चूंकि मीडिया और सोशल मीडिया की दुनिया में ही ज्यादातर रमे रहते हैं और वहां नकारात्मकता का बोलबाला होने के कारण, नकारात्मकताओं में ही जीने लगते हैं। लेकिन तमाम राजनीतिक और प्रशासनिक दुरवस्था के बावजूद देश और समाज धीमी गति से ही सही कई सकारात्मक घटनाओं को भी अंजाम दे रहा है।
जब भी महिलाओं की बात चलती है, यही सुर सुनाई देता है कि इस देश में उनके जीने लायक माहौल नहीं है,आज भी वे दबी कुचली जिंदगी जी रही हैं, अपनी मर्जी से उन्हें जीने के अवसर नहीं हैं… आदि। लेकिन इन्हीं डरा देने वाली खबरों के बीच कुछ ऐसी खबरें भी हैं जो सुकून देती हैं, आश्वस्त करती हैं कि समाज में चारों तरफ अंधेरा ही नहीं है।
ऐसी ही रोशनी की लकीर जैसी एक खबर राष्ट्रीय फैमिली हैल्थ सर्वे-4 (2015-16) के हाल ही में जारी हुए आंकड़ों से सामने आई है। यह खबर कहती है कि भारत में 84 प्रतिशत विवाहित महिलाएं घर परिवार के फैसले लेने की प्रक्रिया में भागीदार रहती हैं। इस मामले में महिलाओं की ताकत पिछले दस सालों में साढ़े सात प्रतिशत बढ़ी है। 2004-5 के सर्वे में ऐसी महिलाओं की संख्या 76.5 प्रतिशत ही थी। इसी तरह पति के द्वारा हिंसा का शिकार होने वाली महिलाओं की संख्या में करीब साढ़े आठ प्रतिशत की कमी आई है।
आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं के सशक्त होने के मामले में तो जोरदार उछाल आया है। 2004-05 में जहां 15 से 49 वर्ष आयु वर्ग की सिर्फ 15 फीसदी महिलाएं अपने बैंक खातों को ऑपरेट करती थीं, वहीं आज इनकी संख्या बढ़कर 53 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। 38.4 फीसदी महिलाओ के पास या तो खुद का मकान या जमीन है या फिर वे संयुक्त रूप से इनकी मालकिन हैं।
इस आयु वर्ग की करीब 46 प्रतिशत महिलाओं के पास मोबाइल फोन हैं और वे खुद उसे इस्तेमाल करती हैं। हालांकि मोबाइल फोन जैसे संचार के आधुनिक संसाधन का इस्तेमाल करने के मामले में ग्रामीण महिलाएं अभी भी काफी पीछे हैं। शहरी क्षेत्र में जहां 61.8 फीसदी महिलाएं इसका उपयोग कर रही हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में यह प्रतिशत लगभग 37 ही है।
महिलाओं की स्थिति के बारे में जब भी बात होती है, स्वास्थ्य के पैमानों पर उन्हें कुछ ज्यादा ही तौला जाता है। और इसमें भी सबसे ज्यादा बात उनके मोटापे की होती है। मोटापे को लेकर महिलाओं में चिंता भी कुछ ज्यादा ही दिखाई देती है। इस मामले में सर्वे के आंकड़े थोड़े निराशाजनक हैं। पिछले दस सालों में महिलाओं में मोटापे की समस्या में काफी इजाफा हुआ है। 2004-05 में जहां 12.6 फीसदी महिलाएं ही अधिक वजन या मोटापे का शिकार थीं, वहीं 2015-16 में इनकी संख्या बढ़कर 20.7 फीसदी हो गई। याने समाज में ‘ताकत’बढ़ने के साथ साथ महिलाओं का ‘वजन’ भी बढ़ा है। लेकिन एक बात पर वे खुश हो सकती हैं कि पुरुष उनकी तुलना में पिछले दस सालों में ज्यादा मोटे हुए हैं। इस अवधि में मोटे पुरुषों का प्रतिशत 9.3 से बढ़कर 18.6 यानी पूरा दुगुना हो गया है।
राष्ट्रीय आंकड़ों की तुलना में आप शायद यह जरूर जानना चाहेंगे कि हमारा ‘लाड़ली लक्ष्मी प्रदेश’ यानी मध्यप्रदेश इन मापदंडों पर कहां खड़ा है। तो परिवार के फैसलों में मध्यप्रदेश में महिलाओं की भागीदारी राष्ट्रीय औसत से 1.2 फीसदी कम यानी 82.8 है। लेकिन जायदाद के मामले में प्रदेश की महिलाएं राष्ट्रीय औसत से 5.1 फीसदी आगे हैं। यहां 43.5 फीसदी महिलाओं के नाम या संयुक्त रूप से मकान अथवा जमीन है। घरेलू हिंसा हमारे प्रदेश में अधिक है। यहां 33 फीसदी महिलाएं पति द्वारा हिंसा की शिकार होती हैं, यानी राष्ट्रीय औसत से 4.2 प्रतिशत ज्यादा।
इसी तरह मोबाइल फोन रखने वाली और उसका इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या प्रदेश में 28.7 प्रतिशत ही है, जबकि इसका राष्ट्रीय औसत 45.9 प्रतिशत है। प्रदेश में सिर्फ 37.3 फीसदी महिलाएं ही बैंक खाते रखती हैं, यानी राष्ट्रीय औसत से 15.7 फीसदी कम।
पर सबसे चिंताजनक मामला तंबाकू व शराब के सेवन का है। देश में जहां 6.8 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू का किसी न किसी रूप में उपयोग करती हैं, तो मध्यप्रदेश में ऐसी महिलाओं की संख्या 10.4 फीसदी है। इसी तरह देश में शराब का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या 1.2 प्रतिशत है, तो मध्यप्रदेश में यह 1.6 प्रतिशत। जाहिर है इन मामलों पर ध्यान देने की ज्यादा जरूरत है।