हां, यह पॉलिटिकल बजट है… कहिए आपको क्‍या कहना है!

मध्‍यप्रदेश का वर्ष 2017-18 का बजट पेश करने के बाद हुई प्रेस कान्‍फ्रेंस में एक सवाल के जवाब में जब राज्‍य के वित्‍त मंत्री जयंत मलैया ने यह कह ही दिया है कि- ‘’हां, यह पॉलिटिकल बजट है…’’, तो फिर इस बजट के बारे में कहने सुनने को कुछ खास बाकी नहीं रह जाता। आमतौर पर बजट को आर्थिक दस्‍तावेज माना जाता है, लेकिन जब वित्‍त मंत्री खुद कहें कि यह राजनीतिक दस्‍तावेज है तो फिर बजट का लेखाजोखा अलग ही दिशा में जाना स्‍वाभाविक है। जब प्रदेश के सामाजिक और आर्थिक बहीखाते को राजनीतिक स्‍याही से लिखा जाए तो अंदाज लगाना ज्‍यादा मुश्किल नहीं होता कि इसका जोड़-बाकी या गुणा-भाग, गणित की कौनसी किताब से सीखा गया होगा।

वित्‍त मंत्री से जो सवाल पूछा गया उसका किस्‍सा भी बहुत दिलचस्‍प है। हुआ यह है कि कुछ सालों से सरकार बजट के बाद होने वाली प्रेस कान्‍फ्रेंस में मीडिया को जो प्रेसनोट बांटती रही है, उसमें अपनी आर्थिक उपलब्धियों को 2003-04 की तुलना के साथ बताती रही है। 2003-04 का साल वह था जब दिग्विजयसिंह के नेतृत्‍व में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। उसके बाद से लगातार प्रदेश में भाजपा ही सरकार बनाती आ रही है। इन सालों में प्रदेश के बजट का आकार आठ गुना बढ़ चुका है। लेकिन पता नहीं क्‍यों सरकार आज भी इस 13 साल पुराने कमजोर आंकड़े से चिपकी है और उसी से खुद की तुलना करके खुश होती रहती है।

मुझे याद है 2003-04 से तुलना करने वाले ये आंकड़े जब पिछले बजट की प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में रखे गए थे, तो मीडिया ने ठीक यही सवाल पूछा था कि सरकार वर्षों पुराने कांग्रेस राज से खुद की तुलना क्‍यों कर रही है, वह अपने प्रतिमान क्‍यों नहीं गढ़ती? पिछले साल तो वित्‍त मंत्री और उनके साथ आए वित्‍त विभाग के अफसरों ने कुछ दाएं-बाएं होते हुए मामले को टाल दिया था। लेकिन इस बार जब फिर से वही सवाल पूछा गया कि क्‍या यह पॉलिटिकल बजट है, तो वित्‍त मंत्री ने सवाल पूछने वाले का एक तरह से मुंह बंद करते हुए दो टूक कहा-‘’हां, यह पॉलिटिकल बजट है।‘’ सवाल मंत्री को घेरने के इरादे से आया था, शायद माना गया कि मंत्री अकबका जाएंगे या कुछ लीपापोती करेंगे, लेकिन मलैया ने ऐसा कुछ नहीं किया। उनके चेहरे और जवाब दोनों से लगा कि सरकार को अब इस तरह के घेरने वाले सवालों से कोई फर्क नहीं पड़ता।

शिवराज सरकार का राजनीतिक आत्‍मविश्‍वास बुधवार को उनके बजट में साफ नजर आ रहा था। मंत्री के साथ साथ वित्‍त विभाग के अफसर भी बड़े कान्फिडेंट नजर आए। एक सवाल दागा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के लिए आपने कितना प्रावधान किया है, तो अफसर बोले हर विभाग अपने हिसाब से इसके लिए काम कर रहा है, अलग से प्रावधान की जरूरत नहीं है।

घेराबंदी का एक और सवाल पूछा गया कि आपने बजट भाषण में कहा है कि-‘’मध्‍यप्रदेश शिक्षा मंडल द्वारा आयोजित बारहवीं की परीक्षा में 85 प्रतिशत से कम अंक पाने वाले छात्र भी यदि राष्‍ट्रीय स्‍तर की प्रतिष्ठित संस्‍थाओं में प्रवेश लेंगे तो उन्‍हें शिक्षण शुल्‍क के बराबर राशि ब्‍याज मुक्‍त ऋण के रूप में दी जाएगी…’’ क्‍या इसका लाभ निजी संस्‍थाओं में पढ़ने वाले बच्‍चों को भी मिलेगा? मलैया बोले- ‘’हमने जो लिखा है आप उसे पढ़ लीजिये।‘’ प्रश्‍नकर्ता ने फिर जोर दिया- लेकिन क्‍या आप प्राइवेट स्‍कूल के बच्‍चों को इस प्रदेश का नहीं मानते, उन्‍हें इस योजना का लाभ क्‍यों नहीं मिलना चाहिए? पर मलैया अपनी जगह अडिग थे- ‘’हमने जो कहा है वह किताब में लिखा है…’’

एक पत्रकार ने तो मलैया और वित्‍त विभाग के अफसरों पर सीधे सीधे मुख्‍यमंत्री की छवि खराब करने का आरोप लगाते हुए सवाल दाग दिया कि एक तरफ तो शिवराज सिंह कृषि क्षेत्र को सबसे ज्‍यादा बढ़ावा देना चाहते हैं और आपने कृषि के ही बजट में कटौती कर दी है। इसके अलावा सहकारिता और उद्योग के बजट में भी काफी कमी की गई है।

वित्‍त विभाग के अफसरों ने जवाब दिया- पिछले साल प्राकृतिक आपदा के कारण किसानों को राहत देनी पड़ी थी, हम ये क्‍यों मानकर चलें कि इस बार भी हमारे किसानों से कुदरत रूठी रहेगी। यही मामला सहकारिता के साथ भी है जहां अल्‍प अवधि के ऋण, मध्‍यम अवधि में तब्‍दील करने पड़े। उद्योग में भी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पिछले साल भूमि अधिग्रहण के एक मामले में हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का मुआवजा दिया गया। वह एक बार का ही भुगतान था, अब वह नहीं होना है, इसलिए उस राशि को नियमित बजट का हिस्‍सा न मानें।

कुल मिलाकर ऐसा लगा कि सरकार फुल फॉर्म में है। अब उसे अपने घिरने-घारने की कोई खास चिंता नहीं है। हां, बस एक ही बात समझ में नहीं आई कि अपने बजट भाषण में वित्‍त मंत्री ने ये लाइनें क्‍यों पढ़ीं-

पंख ही काफी नहीं हैं आसमानों के लिए,

हौसला हम-सा चाहिए ऊंची उड़ानों के लिए

रोक रक्‍खी थी नदी की धार तुमने कहीं,

लेके आए हम ही कुदाली उन मुहानों के लिए

पिछले 13 सालों से तो मध्‍यप्रदेश में भाजपा का ही राज है। तो अब कौन है जो नदी की धार रोक रहा है और ये कुदाली किस मुहाने पर चलाने की जरूरत पड़ रही है…

 

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