वैसे इस मामले में नया कुछ नहीं है। न तो यह किसी एक विशेष इलाके का मामला है, न ही किसी एक राज्य का। यह समस्या गाजर घास की तरह पूरे देश में पसरी हुई है। और इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इस मामले में चोरी की सजा भी ईमानदार भुगत रहे हैं।
यह मामला बिजली चोरी का है। सोमवार को एक खबर पर नजर पड़ी तो इस मामले से जुड़ी कई परतें उघड़ने लगीं। खबर कहती है कि मध्यप्रदेश में बिजली चोरी करते हुए रोज 632 लोग पकड़े जा रहे हैं। यानी हर घंटे 26 लोग! राज्य की बिजली वितरण कंपनियों ने चालू वित्त वर्ष में बिजली चोरी से जुड़े जो आंकड़े हाल ही में जारी किए हैं वे चौंकाने वाले हैं।
प्रदेश में बिजली वितरण का काम मुख्य रूप से तीन कंपनियां देख रही हैं। ये हैं- पश्चिम क्षेत्र, पूर्व क्षेत्र और मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड। इन तीनों कंपनियों ने अप्रैल 2016 से जनवरी 2017 के बीच प्रदेश भर में एक लाख 93 हजार लोगों को बिजली चोरी करते पकड़ा है।
इस अवधि में कंपनियों के विजिलेंस अमले ने 11 लाख 13 हजार 566 मीटर चैक किए जिनमें से पूर्व क्षेत्र में चोरी के 86 हजार 837 मामले सामने आए। पश्चिम क्षेत्र में ऐसे 56 हजार 956 मामले पकड़े गए और मध्य क्षेत्र में 49 हजार 229 मामले। इस संबंध में कोर्ट के सामने बिजली चोरी के 26 हजार 600 मामले प्रस्तुत किए गए और कंपनियों ने 160 करोड़ 89 लाख रुपये की मोटी रकम लोगों से वसूल की। पश्चिम क्षेत्र से 66 करोड़ 61 लाख, पूर्व क्षेत्र से 51 करोड़ 13 लाख और मध्य क्षेत्र से 43 करोड़ 14 लाख रुपए वसूल हुए।
देखने सुनने में ये सिर्फ नंबर हैं, लेकिन यह जानना जरूरी है कि बिजली चोरी से जुड़े ये आंकड़े ईमानदार बिजली उपभोक्ताओं की जेब पर कितना बड़ा बोझ डाल रहे हैं। दरअसल इस चोरी की वजह से प्रदेश में 14 अरब 25 करोड़ 50 लाख यूनिट बिजली का कोई भुगतान ही नहीं मिल पा रहा है। कीमत के हिसाब से यह बिजली 4900 करोड़ रुपए की बैठती है। वैसे तो बिजली कंपनियों के घाटे की सीमा 17 फीसद तक ही तय की गई है, लेकिन वर्तमान में यह 23 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
बिजली कंपनियां हर साल अपने आय-व्यय का लेखा जोखा लेकर, बिजली दरों में संशोधन/परिवर्तन कराने के लिए विद्युत नियामक आयोग के पास जाती हैं। वहां बिजली चोरी से होने वाला यह नुकसान, कंपनियां अपने घाटे के रूप में प्रस्तुत करती हैं और आयोग से मांग करती हैं कि इसकी भरपाई के लिए उन्हें बिजली के रेट बढ़ाने की अनुमति दी जाए। इस तरह चोरी से होने वाला घाटा उन ईमानदार उपभोक्ताओं को बढ़ा हुआ रेट देकर चुकाना पड़ता है, जो समय से बिल जमा करवाते हैं।
बिजली चोरी या सप्लाई की जाने वाली बिजली का भुगतान न होने का मामला शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग अलग है। शहरी या अर्धशहरी क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में ऐसी चोरी ज्यादातर अवैध या झुग्गी बस्तियों में हो रही है। सरेआम बिजली की लाइनों पर तार डालकर ऐसी चोरी की जा रही है, लेकिन मजाल कि कोई वहां जाकर उस बिजली का पैसा वसूल कर सके। चूंकि ऐसी सभी बस्तियां किसी न किसी राजनीतिक दल की वोट बैंक हैं, इसलिए जब भी कार्रवाई की बात उठती है, राजनीतिक हस्तक्षेप आड़े आ जाता है।
दूसरा मामला कृषि क्षेत्र में बिना मीटर के दी जाने वाली बिजली का है। आंकड़े बताते हैं कि कृषि क्षेत्र को सप्लाई की जाने वाली बिजली के सिस्टम में सिर्फ 25 से 30 प्रतिशत ट्रांसफार्मर्स ही मीटरयुक्त हैं। बाकी 70 प्रतिशत बिजली का कोई माई-बाप नहीं है। इस तरह मोटे तौर पर देखें तो प्रदेश में बिजली की समग्र सप्लाई पर प्रति यूनिट लगभग 2 रुपए का घाटा हो रहा है। जबकि कंपनियां प्रति यूनिट औसतन 3.80 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद रही हैं।यानी कंपनियों को आज की तारीख में बिजली करीब 5 रुपए 80 पैसे प्रति यूनिट के हिसाब से पड़ रही है।
ये स्थितियां बताती हैं कि बिजली कंपनियों का घाटा कम करने के लिए राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर सख्त उपाय करना जरूरी है। यह बात सही है कि प्रदेश में उपभोक्ताओं के स्तर पर बिजली चोरी हो रही है। लेकिन यह भी सच है कि कई जगह बिजली कंपनियों के लोग भी इस चोरी-चकारी में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल हैं।
हाल ही में विधानसभा में उपभोक्ताओं के यहां मीटर लगाने और मीटरों की खराबी को लेकर सदस्यों ने बिजली मंत्री पर सवालों की झड़ी लगा दी थी। इसी दौरान एक सदस्य ने बड़ा मौजूं सवाल पूछा था कि जब उपभोक्ता के यहां मीटर खराब है या मीटर लगा ही नहीं है तो आप उसे बिल किस हिसाब से देते हैं? मंत्री की ओर से इसका कोई माकूल जवाब नहीं आया था। यानी समस्या सिर्फ चोरों की ही नहीं, बिजली कंपनी के साहूकारों की भी है। चोरी पकड़ने के साथ-साथ कंपनियों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभी उपभोक्ताओं के यहां मीटर तो लगें। वरना ईमानदार उपभोक्ता चोरी की भरपाई के साथ-साथ कंपनियों की नाकामी का खमियाजा भुगतने को भी मजबूर होते रहेंगे।