IPS के खिलाफ IPS, केरल का अनोखा मामला

आमतौर पर हम लोग खबरों के मामले में अपने प्रदेश तक ही सीमित रहते हैं, बहुत हुआ तो दिल्‍ली से पटकी जाने वाली घटनाओं पर हमारा ध्‍यान चला जाता है। ये घटनाएं भी वे होती हैं जिन्‍हें इलेक्‍ट्रानिक मीडिया अपने अपने कारणों से उठाता गिराता रहता है। ऐसे में भारत को एक देश के रूप में समग्रता से हम बहुत ही कम जान पाते हैं। जबकि घटनाएं तो रोज हर प्रदेश में होती हैं और उनमें से कई ऐसी भी होती हैं जो हमारे सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक चरित्र में आ रहे बदलाव को उजागर करने वाली या उसकी काली परतों को उघाड़ती हैं।

जैसे इन दिनों पांच राज्‍यों में हो रहे चुनाव का ही मामला ले लें। मीडिया में 80 प्रतिशत से भी अधिक जगह तो अकेले यूपी ने खा रखी है। फिर थोड़ा बहुत पंजाब और उत्‍तराखंड को याद कर लिया जाता है। गोवा कभी कभार चर्चा में आता है, लेकिन मणिपुर के बारे में तो लगता ही नहीं कि वहां भी चुनाव जैसी कोई प्रक्रिया चल रही है। खैर…

आज मेरा इरादा न तो चुनाव पर बात करने का है और न ही उन राज्‍यों पर, जहां चुनाव चल रहे हैं। आज बात सुदूर दक्षिण के खूबसूरत राज्‍य केरल की। कल मेरे एक पत्रकार मित्र का फोन आया और उन्‍होंने केरल में चल रहे एक ऐसे घटनाक्रम का जिक्र किया जो अपने आप दिलचस्‍प तो है ही, साथ ही हमारे प्रशासनिक और राजनीतिक हालात पर भी गौर करने को मजबूर करता है।

हुआ यूं कि केरल के सतर्कता एवं भ्रष्‍टाचार निरोध ब्‍यूरो (VACB) ने ब्‍यूरो के डायरेक्‍टर पद पर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी एन.शंकर रेड्डी की नियुक्ति के मामले को जांच में ले लिया। आरोप यह था कि यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) सरकार ने अपने कुछ मंत्रियों को एक खास मामले से बाहर निकालने के लिए शंकर को ब्‍यूरो के डायरेक्‍टर पर पद बैठाया।

जैसे ही ब्‍यूरो ने मामले को जांच के लिए हाथ में लिया, शंकर को नियुक्ति देने वाली पूर्ववर्ती यूडीए सरकार में गृहमंत्री रहे रमेश चैन्निथला ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्‍होंने तर्क दिया कि किस अधिकारी को कहां नियुक्‍त करना है, यह पूरी तरह सरकार का विशेषाधिकार है। इसे भ्रष्‍टाचार कैसे कहा जा सकता है?

हाईकोर्ट ने तीन दिन पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान सख्‍त टिप्‍पणी करते हुए सरकार से कहा कि इस प्रकरण में विजिलेंस को ऐसी खुली छूट देना समझ से परे है। यदि विजिलेंस को ऐसे अधिकार दे दिए गए, तो केरल में एक दिन विजिलेंस राज ही होगा। हाईकोर्ट ने इस मामले में आई शिकायत को मंजूर करने और यह मामला जांच के लिए ब्‍यूरो को सौंपने के लिए, विजिलेंस अदालत की भी तीखी आलोचना की। उसने कहा कि विजिलेंस की स्‍पेशल कोर्ट को अपने अधिकार क्षेत्र के बारे में पता होना चाहिए।

लेकिन मामला यहीं नहीं थमा। आगे का किस्‍सा और भी पेचीदा है… हाईकोर्ट के इस ‘आब्‍जर्वेशन’ के बाद सतर्कता और भ्रष्‍टाचार निरोध ब्‍यूरो ने अपने मुख्‍यालय के नोटिस बोर्ड पर एक नोटिस चस्‍पा कर दिया कि भविष्‍य में वह भ्रष्‍टाचार के बड़े मामलों की शिकायतें स्‍वीकार नहीं करेगा। हालांकि इस पर मीडिया में बवाल मचने के बाद ब्‍यूरो ने अपनी सफाई में कहा कि उसका इरादा किसी की अवमानना का नहीं था।

अब सवाल यह उठता है कि एक तरफ हम प्रशासनिक व्‍यवस्‍थाओं में सुधार के दावे करते हैं और दूसरी तरफ हमारी वैधानिक या प्रशासनिक संस्‍थाएं मनमाना व्‍यवहार कर रही हैं। कल मैंने मध्‍यप्रदेश विधानसभा में सत्‍तारूढ़ दल के एक सदस्‍य द्वारा उठाए गए भ्रष्‍टाचार के मामले का जिक्र किया था। उस मामले में राज्‍य की आर्थिक अपराध शाखा सात साल से जांच कर रही है। स्‍थानीय विधायक ने सदन में आरोप लगाया है कि पूर्व सांसद और एक पूर्व आईएएस अधिकारी ने मिलकर करीब डेढ़ करोड़ रुपए का घोटाला किया है। लेकिन सरकार के हिसाब से न तो अभी तक जांच पूरी हुई है और न ही किसी को कोई सजा मिल सकी है।

केरल का उदाहरण साफ बताता है कि न्‍यायिक संस्‍थाओं से लेकर प्रशासनिक संस्‍थाओं तक को, किस तरह राजनीतिक या आर्थिक हितों के लिए इस्‍तेमाल किया जा रहा है। और यह अकेले केरल का ही मामला नहीं है, देश के हर राज्‍य में ऐसे मामले और ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं। केरल में हाईकोर्ट ने कानून के राज को बनाए रखने की हिदायत दी। लेकिन कई बार न्‍यायिक मंचों से भी ऐसे फैसले आ जाते हैं, जो न्‍याय की दृष्टि से गले उतरने वाले नहीं होते।

हमारे यहां सरकारी तंत्र में भैंस उसी की होती है जिसके हाथ में लाठी हो। और यदि लाठी के साथ सरकार या सत्‍ता की ताकत भी शामिल हो जाए,फिर तो भूल ही जाइए कि आपको न्‍याय मिल सकेगा। केरल तो देश का सबसे पढ़ा लिखा राज्‍य है। वहां यदि यह हालत है तो जरा सोचिए, उन राज्‍यों में क्‍या होता होगा जहां ज्‍यादतर लोग न तो कानून का  जानते हैं, न वकील का … उनके रोजमर्रा जीवन की बारहखड़ी तो रिश्‍वत के रि से शुरू होकर इसी पर खत्‍म हो जाती है। यह रि ही उनके लिए रीति भी है और रिवाज भी…

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here